ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 94/ मन्त्र 6
ता वां॑ गी॒र्भिर्वि॑प॒न्यव॒: प्रय॑स्वन्तो हवामहे । मे॒धसा॑ता सनि॒ष्यव॑: ॥
स्वर सहित पद पाठता । वा॒म् । गीः॒ऽभिः । वि॒प॒न्यवः॑ । प्रय॑स्वन्तः । ह॒वा॒म॒हे॒ । मे॒धऽसा॑ता । स॒नि॒ष्यवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ता वां गीर्भिर्विपन्यव: प्रयस्वन्तो हवामहे । मेधसाता सनिष्यव: ॥
स्वर रहित पद पाठता । वाम् । गीःऽभिः । विपन्यवः । प्रयस्वन्तः । हवामहे । मेधऽसाता । सनिष्यवः ॥ ७.९४.६
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 94; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 6
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सनिष्यवः) आत्मानमुन्निनीषवः (विपन्यवः) साहित्यमिच्छन्तश्च वयं (प्रयस्वन्तः) प्रयत्नवन्तो भूत्वा (ता, वाम्) कर्मज्ञानोभययोगिनं (मेधसाता) स्वयज्ञेषु (गीर्भिः) स्वनम्रवाग्भिः (हवामहे) आह्वयामः सदुपदेशार्थम् ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सनिष्यवः) अभ्युदय चाहनेवाले (विपन्यवः) साहित्य चाहनेवाले हम (प्रयस्वन्तः) अनुष्ठानी बन कर (ता, वां) कर्मयोगी और ज्ञानयोगी को (मेधसाता) अपने यज्ञों में (गीर्भिः) अपनी नम्र वाणियों से (हवामहे) बुलाते हैं, ताकि वे आकर हमको सदुपदेश करें ॥६॥
भावार्थ
संसार में अभ्युदय और शोभन साहित्य उन्हीं लोगों का बढ़ता है, जो लोग अपने यज्ञों में सदुपदेष्टा कर्मयोगी और ज्ञानयोगियों को बुलाकर सदुपदेश सुनते हैं ॥६॥
विषय
नायक नायिका जनों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हम ( विपन्यवः ) विविध व्यवहारों वाले और ( प्रयस्वन्तः ) उत्तम २ प्रयास वा उद्योग करने वाले और अन्यों को ( सनिष्यवः ) वृत्ति देने वाले जन भी मिलकर ( ता वां ) उन आप दोनों इन्द्र, अग्नि जनों को ही ( मेघ-साता ) अन्नलाभ, यज्ञ और संग्राम के लिये ( गीर्भिः ) नाना वाणियों से ( हवामहे ) आदरपूर्वक बुलाते हैं। अर्थात् व्यवहारकुशल व्यापारी, प्रयासी, श्रमी और वृत्तिदाता सत्ताधारी सभी मिलकर यज्ञ, संग्राम और अन्न के लिये उनको ही पुकारें । इति सप्तदशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः—१, ३, ८, १० आर्षी निचृद् गायत्री । २, ४, ५, ६, ७, ९ , ११ आर्षी गायत्री । १२ आर्षी निचृदनुष्टुप् ॥ द्वादर्शं सूक्तम्॥
विषय
राष्ट्र की समृद्धि
पदार्थ
पदार्थ- हम (वपन्यवः) = विविध व्यवहारोंवाले, (प्रयस्वन्तः) = प्रयास वा उद्योगशील और अन्यों को (सनिष्यवः) = वृत्तिदाता (ता वां) = उन आप दोनों इन्द्र, अग्नि जनों को ही (मेघ-साता) = यज्ञ और संग्राम के लिये (गीर्भिः) = नाना वाणियों से (हवामहे) = बुलाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- राजा अपने राष्ट्र में विविध प्रकार के उद्योगों व सरकारी सेवा के अवसरों को बढ़ावे। राष्ट्र में यज्ञों के आयोजन तथा सैनिक प्रशिक्षण भी बहुलता से कराए जावें।
इंग्लिश (1)
Meaning
With songs of praise, bearing homage and havi for the holy fire, we invoke and invite you to our yajna in search of higher initiative and further self advancement.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक आपल्या यज्ञात सदुपदेष्टा कर्मयोगी व ज्ञानयोग्यांना आमंत्रित करून सदुपदेश ऐकतात त्याच लोकांचा जगात अभ्युदय होतो व शोभनीय साधने वाढतात. ॥६॥
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