ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 103/ मन्त्र 7
अश्वं॒ न गी॒र्भी र॒थ्यं॑ सु॒दान॑वो मर्मृ॒ज्यन्ते॑ देव॒यव॑: । उ॒भे तो॒के तन॑ये दस्म विश्पते॒ पर्षि॒ राधो॑ म॒घोना॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअश्व॑म् । न । गीः॒ऽभिः । र॒थ्य॑म् । सु॒ऽदान॑वः । म॒र्मृ॒ज्यन्ते॑ । दे॒व॒ऽयवः॑ । उ॒भे इति॑ । तो॒के इति॑ । तन॑ये । द॒स्म॒ । वि॒श्प॒ते॒ । पर्षि॑ । राधः॑ । म॒घोना॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्वं न गीर्भी रथ्यं सुदानवो मर्मृज्यन्ते देवयव: । उभे तोके तनये दस्म विश्पते पर्षि राधो मघोनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठअश्वम् । न । गीःऽभिः । रथ्यम् । सुऽदानवः । मर्मृज्यन्ते । देवऽयवः । उभे इति । तोके इति । तनये । दस्म । विश्पते । पर्षि । राधः । मघोनाम् ॥ ८.१०३.७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 103; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 14; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, lord of glory, ruler and sustainer of the people, generous devotees dedicated to charity and love of divinity, with voices of adoration and prayer, exalt you like the motive power of the chariot of life, and pray: Bring us the holy power and prosperity worthy of the magnificent for our children and grand children.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रभूकडून दिव्य गुणांची अभिलाषा स्वत: दानशील बनूनच केली पाहिजे. दानशीलांनाच सफलतारूपी ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुदानवः) दानभावना द्वारा भावित (देवयवः) अपने लिये दिव्यता के इच्छुक उपासक (गीर्भिः) स्व वाणियों से (रथ्यम्) सुवाहक (अश्वम्) अश्व की भाँति वाहनसमर्थ आपकी (मर्मृज्यन्ते) आराधना करते हैं। वह आप, हे (दस्म) दर्शनीय! (विश्पते) प्रजा पालक! (तोके) पुत्र और (तनये) पौत्र (उभे) दोनों ही में (मघोनाम्) उदारों के (राधः) सफलतारूप ऐश्वर्य को (पर्षि) पहुँचाइये॥७॥
भावार्थ
प्रभु द्वारा दिव्यगुणों की अभिलाषा स्वयं दानशीलता से भावित होकर ही करें; दानशीलों को ही सफलतारूपी ऐश्वर्य मिलता है॥७॥
विषय
भक्तों पर प्रभु की कृपा।
भावार्थ
( रथ्यम् अश्वम् ) रथ योग्य उत्तम अश्व के समान देह के भोक्ता आत्मा को ( सुदानवः ) उत्तम दानशील, ( देवयवः ) देव, प्रभु के उपासक, परमेश्वर को चाहने वाले लोग ( मर्मृज्यन्ते ) सदा स्वच्छ करते रहते हैं, उस को अपने हृदय में चमकाते रहते हैं। हे ( विश्पते ) समस्त प्रजाओं के पालक ! ( हे दस्म ) दर्शनीय ! दरिद्रादि कष्टों के काटने हारे ! ( उभे तोके तनये ) दोनों, पुत्र पौत्रादि के पालनार्थ ( मघोनां राधः पर्षि ) धनवानों का धन प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सोभरि: काण्व ऋषिः॥ १—१३ अग्निः। १४ अग्निर्मरुतश्च देवताः॥ छन्दः—१, ३, १३, विराड् बृहती। २ निचृद् बृहती। ४ बृहती। ६ आर्ची स्वराड् बृहती। ७, ९ स्वराड् बृहती। ६ पंक्तिः। ११ निचृत् पंक्ति:। १० आर्ची भुरिग् गायत्री। ८ निचृदुष्णिक्। १२ विराडुष्णिक्॥
विषय
सुदानवः - देवभवः
पदार्थ
[१] (सुदानवः) = उत्तम दानशील अथवा वासनाओं का खण्डन [दाप् लवने] करनेवाले, (देवयवः) = उस महान् देव प्रभु को अपने साथ जोड़ने की कामनावाले लोग (रथ्यम्) = रथ वहन में उत्तम (अश्वं न) = अश्व के समान प्रभु को (गीर्भी:) = स्तुतिवाणियों के द्वारा (मर्मृज्यन्ते) = अपने अन्दर शुद्ध करते हैं। अपने हृदयों में प्रभु के प्रकाश को देखने का प्रयत्न करते हैं। ये उपासक यह समझते हैं कि प्रभु ने ही उनके शरीर रथ को लक्ष्य - स्थान पर पहुँचाना है। प्रभु का स्तवन करते हुए ये प्रभु को अपने अन्दर देखने का प्रयत्न करते हैं। [२] हे (दस्म) = सब दुःखों के नाशक (विश्पते) = सब प्रजाओं के पालक प्रभो ! आप हमारे (तोके) = पुत्रों में व (तनये) = पौत्रों में (उभे) = दोनों ही में (मघोनाम्) = [मघ-मख] यज्ञशील पुरुषों की (राधः) = सम्पत्ति को (पर्षि) = प्राप्त कराइये। हमारे पुत्र-पौत्र भी ऐश्वर्य को प्राप्त करके यज्ञशील बनें।
भावार्थ
भावार्थ- हम 'सुदान व देवयु' बनकर स्तोमों द्वारा प्रभु के प्रकाश को देखने का प्रयत्न करते हैं। और प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि हमारे पुत्र-पौत्र भी सम्पन्न व यज्ञशील बनें।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal