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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 12/ मन्त्र 28
    ऋषिः - पर्वतः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    य॒दा ते॑ हर्य॒ता हरी॑ वावृ॒धाते॑ दि॒वेदि॑वे । आदित्ते॒ विश्वा॒ भुव॑नानि येमिरे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒दा । ते॒ । ह॒र्य॒ता । हरी॒ इति॑ । व॒वृ॒धाते॒ इति॑ । दि॒वेऽदि॑वे । आत् । इत् । ते॒ । विश्वा॑ । भुव॑नानि । ये॒मि॒रे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदा ते हर्यता हरी वावृधाते दिवेदिवे । आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदा । ते । हर्यता । हरी इति । ववृधाते इति । दिवेऽदिवे । आत् । इत् । ते । विश्वा । भुवनानि । येमिरे ॥ ८.१२.२८

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 12; मन्त्र » 28
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (यदा) यत्र काले (हर्यता) कमनीये (ते) तव (हरी) धारणपोषणशक्ती (दिवेदिवे) प्रतिदिनं (ववृधाते) वर्धेते (आत्, इत्) अनन्तरम् (ते) तव (विश्वा, भुवनानि) सर्वे लोकाः (नियेमिरे) नियम्यन्ते ॥२८॥

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    विषयः

    महत्त्वं दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! यदा=यस्मिन् काले । ते=तवौत्पादितौ । हर्यता=सर्वैः कमनीयौ । हरी=हरणशीलौ द्विविधौ संसारौ । दिवेदिवे=दिने दिने=प्रतिदिनम् । वावृधाते=शनैः शनैः वर्धेते विकासेते । आदित्=तदन्तरमेव । ते=त्वया । विश्वा=सर्वाणि । भुवनानि=लोकान् भूतानि च । येमिरे=नियम्यन्ते नियमे स्थाप्यन्ते ॥२८ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (यदा) जब (हर्यता) कमनीय (ते) आपकी (हरी) धारणपोषणशक्ति (दिवेदिवे) प्रतिदिन (ववृधाते) प्रवृद्ध रहती हैं (आत्, इत्) इसी से (ते) आपके (विश्वा, भुवनानि) सब लोक (नियेमिरे) नियमित रहते हैं ॥२८॥

    भावार्थ

    हे सबकी कामनाओं को पूर्ण करनेवाले परमात्मन् ! आप सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों को धारण किये हुए हैं और प्रतिदिन सबका पालन, पोषण तथा रक्षण करते हैं, इसी से सब लोक-लोकान्तर नियमबद्ध रहते हैं अर्थात् संसार का धारण करना तथा पोषणरूप शक्तियें भी आप ही के अधीन हैं ॥२८॥

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    विषय

    उसका महत्त्व दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    हे इन्द्र ! (यदा) जिस काल में (ते) तेरे (हर्य्यता) सर्व कमनीय (हरी) परस्पर हरणशील स्थावर जङ्गमरूप द्विविध संसार (दिवेदिवे) प्रतिदिन=क्रमशः शनैः-२ (वावृधाते) बढ़ते जाते हैं अर्थात् शनैः-२ अपने-२ स्वरूप में विकसित होते जाते हैं (आद्+इत्) तब ही (ते) तुझसे (विश्वा) सम्पूर्ण (भुवनानि) लोक-लोकान्तर और प्राणिजात (येमिरे) नियम में स्थापित किए जाते हैं । ज्यों-ज्यों सृष्टि का विकाश हो जाता है, त्यों-त्यों तू उनको नियम में बाँधता जाता है ॥२८ ॥

    भावार्थ

    ज्यों-२ इसके गूढ़ नियम मालूम होते हैं, त्यों-त्यों उपासक का ईश्वर में विश्वास होता जाता है ॥२८ ॥

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( यदा ) जब ( हर्यता हरी ) कान्ति युक्त मनोहर सूर्य और भूमि ( ते ) तेरे बल से ( दिवे-दिवे ) दिनों दिन ( ववृधाते ) बढ़ते हैं ( आत इत् ) अनन्तर ही ( विश्वा भुवनानि ) समस्त लोक ( येमिरि ) नियम में बंधते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पर्वतः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, २, ८, ९, १५, १६, २०, २१, २५, ३१, ३२ निचृदुष्णिक्। ३—६, १०—१२, १४, १७, १८, २२—२४, २६—३० उष्णिक्। ७, १३, १९ आर्षीविराडुष्णिक्। ३३ आर्ची स्वराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    इन्द्रिय संयम द्वारा भुवन संयम -

    पदार्थ

    [१] (यदा) = जब (ते) = तेरे ये (हर्यता हरी) = गतिशील इन्द्रियाश्व (दिवे दिवे) = प्रतिदिन (वावृधाते) = वृद्धि को प्राप्त होते हैं, अर्थात् इन इन्द्रियाश्वों को जब तू वश में करके दिन व दिन आगे और आगे बढ़ता है। (आत् इत्) = तब ही शीघ्र (ते) = तेरे द्वारा (विश्वा भुवनानि) = सब भुवन येमिरे नियम में किये जाते हैं। [२] जितेन्द्रिय पुरुष ही सब भुवन को वश में करने में समर्थ होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- जब इन्द्रियों के संयम के द्वारा हम आगे और आगे बढ़ते हैं तो सब भुवनों का संयम करनेवाले बनते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Since the radiations of your dynamic forces expand day by day, the entire worlds of the expansive universe are sustained in order in obedience to your law.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसजसे त्याचे गूढ नियम कळतात तसतसा उपासकाचा ईश्वरावर विश्वास वाढतो ॥२८॥

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