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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 12/ मन्त्र 30
    ऋषिः - पर्वतः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    य॒दा सूर्य॑म॒मुं दि॒वि शु॒क्रं ज्योति॒रधा॑रयः । आदित्ते॒ विश्वा॒ भुव॑नानि येमिरे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒दा । सूर्य॑म् । अ॒मुम् । दि॒वि । शु॒क्रम् । ज्योतिः॑ । अधा॑रयः । आत् । इत् । ते॒ । विश्वा॑ । भुव॑नानि । ये॒मि॒रे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदा सूर्यममुं दिवि शुक्रं ज्योतिरधारयः । आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदा । सूर्यम् । अमुम् । दिवि । शुक्रम् । ज्योतिः । अधारयः । आत् । इत् । ते । विश्वा । भुवनानि । येमिरे ॥ ८.१२.३०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 12; मन्त्र » 30
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (यदा) यत्र काले (दिवि) द्युलोके (अमुम्) एतम् (शुक्रम्, ज्योतिः) निर्मलं तेजः (सूर्यम्) सूर्यरूपम् (अधारयः) धारयसि (आदित्) अनन्तरमेव (विश्वा, भुवनानि) सर्वे लोकाः (येमिरे) नियताः ॥३०॥

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    विषयः

    महिमानं दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र परमदेव ! यदा त्वम् । दिवि=आकाशे । अमुम्=दूरे दृश्यमानम् । सूर्यम्=सूर्य्यरूपम् । शुक्रम्=शुद्धं देदीप्यमानं ज्योतिः । अधारयः स्थापयः स्थापितवान् । आदित्ते । सर्वं गतम् ॥३० ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (यदा) जो आप (दिवि) द्युलोक में (शुक्रम्, ज्योतिः) निर्मल ज्योति (सूर्यम्) सूर्य को (अधारयः) धारण करते हो (आदित्) इसी से (विश्वा, भुवनानि) सम्पूर्ण लोक (येमिरे) नियमित रहते हैं ॥३०॥

    भावार्थ

    हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! आप द्युलोकस्थ सूर्य्य की विस्तृत निर्मल ज्योति को धारण कर रहे हैं, इसी कारण सब लोक-लोकान्तर नियमबद्ध हुए स्थित हैं, यह आपकी महान् शक्ति है, क्योंकि सूर्य्य के विना सम्पूर्ण प्रजाओं का स्थित रहना असम्भव है ॥३०॥

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    विषय

    महिमा दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    हे इन्द्र परमैश्वर्य देव ! (यदा) जब तूने (दिवि) आकाश में (अमुम्) इस दूर में दृश्यमान (सूर्यम्) सूर्यरूप (शुक्रम्) शुद्ध देदीप्यमान (ज्योतिः) ज्योति को (अधारयः) स्थापित किया (आदित्) तब ही सम्पूर्ण भुवन नियमबद्ध हो गए ॥३० ॥

    भावार्थ

    सूर्य की स्थापना से इस जगत् को अधिक लाभ पहुँच रहा है ॥३० ॥

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! प्रभो ! ( यदा ) जब तू ( अमुं सूर्यम् ) उस सूर्य को और ( दिवि ) सूर्य में ( शुक्रं ज्योतिः ) शुद्ध तेज और अन्तरिक्ष में जल और विद्युत् आदि को ( अधारयः ) स्थापित करता है, ( आत् इत् ) फलतः ( ते ) तेरे ही अधीन, तेरी ही व्यवस्था में ( विश्वा भुवनानि ) समस्त लोक ( येमिरे ) नियन्त्रित हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पर्वतः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, २, ८, ९, १५, १६, २०, २१, २५, ३१, ३२ निचृदुष्णिक्। ३—६, १०—१२, १४, १७, १८, २२—२४, २६—३० उष्णिक्। ७, १३, १९ आर्षीविराडुष्णिक्। ३३ आर्ची स्वराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    ज्ञानसूर्योदय

    पदार्थ

    [१] (यदा) = जब (अमुम्) = उस (सूर्यम्) = ज्ञानसूर्य को (दिवि) = मस्तिष्करूप द्युलोक में (शुक्रं ज्योतिः) = देदीप्यमान ज्ञान ज्योति को (अधारयः) = धारण करता है। (आत् इत्) = तब शीघ्र ही (ते) = तेरे द्वारा (विश्वा भुवनानि) = सब भुवन (येमिरे) = वश में किये जाते हैं। [२] ज्ञानसूर्योदय के होने पर सब अन्धकार विनष्ट हो जाता है। उस अन्धकार के विनाश के साथ सब वासनाओं का विलय हो जाता है, इस वासना विलय से मनुष्य पूर्ण संयमी होकर सब भुवनों को वश में कर पाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम मस्तिष्करूप द्युलोक में ज्ञानसूर्य का धारण करें। यह ज्ञानसूर्य हमें सब भुवनों को वशीभूत करने में समर्थ करे। अथवा ज्ञान-सूर्योदय के होने पर हम आत्मसंयम के द्वारा सर्वसंयमी बनते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Since you have sustained that sun, radiant light, pure and powerful, the entire worlds of existence observe your divine law.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सूर्याच्या स्थापनेने या जगाला अधिक लाभ पोचत आहे. ॥३०॥

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