ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 16/ मन्त्र 4
ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
यस्यानू॑ना गभी॒रा मदा॑ उ॒रव॒स्तरु॑त्राः । ह॒र्षु॒मन्त॒: शूर॑सातौ ॥
स्वर सहित पद पाठयस्य॑ । अनू॑नाः । ग॒भी॒राः । मदाः॑ । उ॒रवः॑ । तरु॑त्राः । ह॒र्षु॒ऽमन्तः॑ । शूर॑ऽसातौ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्यानूना गभीरा मदा उरवस्तरुत्राः । हर्षुमन्त: शूरसातौ ॥
स्वर रहित पद पाठयस्य । अनूनाः । गभीराः । मदाः । उरवः । तरुत्राः । हर्षुऽमन्तः । शूरऽसातौ ॥ ८.१६.४
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 16; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(यस्य) यस्य परमात्मनः (शूरसातौ) शूरेभ्यो दानाय (मदाः) उत्साहशक्तयः (अनूनाः) अन्यूनाः (गभीराः) गाम्भीर्यवत्यः (उरवः) विस्तीर्णाः (तरुत्राः) तारयित्र्यः (हर्षुमन्तः) आह्लादप्रदाः ॥४॥
विषयः
पुनरपि इन्द्रः स्तूयते ।
पदार्थः
हे मनुष्याः । मदाः=माद्यन्ति क्रीडन्ति जीवा अत्रेति मदा ईशररचितानि विविधानि जगन्ति । यस्येन्द्रस्य । मदाः । अनूनाः=अन्यूनाः=पूर्णाः । पुनः । गभीराः=दुर्बोधतया गाम्भीर्य्योपेताः । पुनः । उरवः । सर्वत्र विस्तीर्णा जालवत् । पुनः । तरुत्राः=तारकाः साधूनाम् । पुनः । शूरसातौ=शूरसंभजनीये संग्रामे जीवनयात्रायाम् । हर्षुमन्तः=हर्षयुक्ताः सन्ति । तमेव सेवध्वमिति शिक्षते ॥४ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(यस्य) जिसकी (शूरसातौ) शूरों को देने के लिये (मदाः) उत्साहादि शक्तियें (अनूनाः) कम न होनेवाली (गभीराः) अगाध (उरवः) विस्तीर्ण (तरुत्राः) शत्रुओं से पार करनेवाली (हर्षुमन्तः) और आह्लाद उत्पन्न करनेवाली हैं ॥४॥
भावार्थ
वह महान् बलसम्पन्न परमात्मा, जिसकी शक्तियें शूरवीरों को उत्साह तथा आह्लादजनक हैं, वे ही शत्रुओं को विजय करानेवाली, सर्वत्र विस्तीर्ण और अगाध हैं अर्थात् जिनका पारावार नहीं, परमात्मा अपने उपासक योद्धाओं को उक्त शक्ति प्रदान कर विजय प्राप्त कराते हैं, अत एव विजय की कामनावाले योद्धाओं को निरन्तर उसकी उपासना में प्रवृत्त रहना चाहिये ॥४॥
विषय
पुनः इन्द्र की स्तुति कहते हैं ।
पदार्थ
(यस्य) जिस ईश्वर के (मदाः) विविध आनन्दप्रद जगत् (अनूनाः) अन्यून अर्थात् पूर्ण (गम्भीराः) अत्यन्त गम्भीर (उरवः) जालवत् विस्तीर्ण (तरुत्राः) सन्तों के तारक और (शूरसातौ) जीवनयात्रा में (हर्षुमन्तः) आनन्दयुक्त हैं । हे मनुष्यों ! उसकी सेवा करो ॥४ ॥
भावार्थ
मदाः=ईशरचित विविध संसार का नाम मद है, क्योंकि इसमें ही जीव क्रीड़ा करते हैं । वह न्यून, गम्भीर, उरु और रक्षक है । शूरसाति=संग्राम । जिसमें शूरवीर पुरुष ही लाभ उठा सकते हैं । देखते हैं कि इस जीवनयात्रा में भी वे ही कृतकृत्य होते हैं, जो मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक तीनों बलों में सुपुष्ट हैं ॥४ ॥
विषय
ज्येष्टराज प्रभु ।
भावार्थ
( यस्य ) जिस प्रभु के ( मदाः ) आनन्दमय विकास वा ( मदाः ) आनन्ददायक व्यवहार, तृप्तिदायक जलाशयवत् रस सागर और आनन्द युक्त पुरुष ( अनूना: ) किसी प्रकार भी न कम, परिपूर्ण, ( गभीराः ) गंभीर, ( उरवः ) बड़े २ और ( तरुत्राः ) वृक्षों के इर्द गिर्द लगे बाड़ के समान समस्त प्राणियों की रक्षा करनेवाले, वा इस संसार से पार उतारने वाले और ( शुर-सातौ ) शूरवीरों के प्राप्ति के अवसर, संग्रामादि में भी ( हर्षुमन्तः ) अति हर्षयुक्त हैं वही परमेश्वर राजा के समान सबका पालक है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
इरिम्बठिः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ९—१२ गायत्री। २—७ निचृद् गायत्री। ८ विराड् गायत्री॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
प्रभु-दर्शन का अद्भुत आनन्द
पदार्थ
[१] उस प्रभु का मैं उत्तम स्तुति से पूजन करता हूँ (यस्य मदाः) = जिसके उल्लास, जिसके दर्शन से भक्त हृदय में उत्पन्न हुए हुए उल्लास (अनूना:) = सब न्यूनताओं से रहित होते हैं, (गभीराः) = गाम्भीर्य को लिये हुए होते हैं। ये उल्लास (उरवः) = विशाल व (तरुत्राः) = वासनाओं से तरानेवाले होते हैं। [२] ये प्रभु-दर्शन जनित उल्लास (शूरसातौ) = शूरों से सम्भजनीय संग्रामों में (हर्षुमन्तः) = हर्ष को प्राप्त करानेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु-दर्शन जनित उल्लास न्यूनताओं को दूर करनेवाले, गाम्भीर्य को लिये हुए, विशाल व वासनाओं से तरानेवाले व संग्रामों में हर्ष को देनेवाले होते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
Faultless are his joyous exploits, deep and grave, vast and wide, saviours across the seas of life and givers of victory in the battles of the brave.
मराठी (1)
भावार्थ
मदा: - ईशरचित विविध संसाराचे नाव मद आहे. कारण यातच जीव क्रीडा करतात. तो न्यूनता नसलेला, गंभीर, उरु, रक्षक आहे. शूरसाति = संग्राम, ज्यात शूरवीर पुरुषच लाभ उठवू शकतात. या जीवनयात्रेत तेच कृतकृत्य होतात. जे मानसिक, आध्यात्मिक व शारीरिक तीनही बलांनी सुपुष्ट असतात. ॥४॥
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