ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 2/ मन्त्र 14
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चाङ्गिरसः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - आर्षीगायत्री
स्वरः - षड्जः
उ॒क्थं च॒न श॒स्यमा॑न॒मगो॑र॒रिरा चि॑केत । न गा॑य॒त्रं गी॒यमा॑नम् ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒क्थम् । च॒न । श॒स्यमा॑नम् । अगोः॑ । अ॒रिः । आ । चि॒के॒त॒ । न । गा॒य॒त्रम् । गी॒यमा॑नम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उक्थं चन शस्यमानमगोररिरा चिकेत । न गायत्रं गीयमानम् ॥
स्वर रहित पद पाठउक्थम् । चन । शस्यमानम् । अगोः । अरिः । आ । चिकेत । न । गायत्रम् । गीयमानम् ॥ ८.२.१४
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 14
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(अगोः, अरिः) वाणीरहितस्यासत्यवादिनः (अरिः) शत्रुरिन्द्रः (शस्यमानं, उक्थं, चन) स्तूयमानं शस्त्रमपि (आचिकेत) जानाति (न) सम्प्रति (गीयमानं) उच्यमानं (गायत्रं) स्तोत्रं जानाति अतः कृतज्ञत्वात्स्तोतव्यः ॥१४॥
विषयः
स आस्तिकनास्तिकयोर्द्वयोरपि भाषणं शृणोति ।
पदार्थः
यदा । अरिः=इन्द्रः । इयर्त्ति=सर्वत्र गच्छति व्याप्नोतीत्यरिः सर्वव्यापकः । यद्वा । अरिः=शत्रुः । ऋ सृ गतौ । अगोः=नास्तिकादेः । गायतीति गौः=स्तोता, न गौः, अगौः अस्तोता तस्य अगोः । चन=अप्यर्थः । अस्तोतुरपि नास्तिकादेः । शस्यमानम्=उच्चार्य्यमाणम् । उक्थम्=वक्तव्यं वचनम् । आचिकेत=आजानाति । कित ज्ञाने, छान्दसो लिट् । यद्वा । अगोः=स्तुतिरहितस्य नास्तिकस्य । अरिः=शत्रुरिन्द्रः । उक्थं चिकेतेत्यन्वयः । तदा । गीयमानम्=भक्तजनैः मनसा पठ्यमानम् । गायत्रम्=परमपवित्रं छन्दोबद्धं गायत्रं साम न जानातीति कथं सम्पद्येत ॥१४ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(अगोः, अरिः) प्रशस्त वाणीरहित असत्यवादी का शत्रु कर्मयोगी (शस्यमानं, उक्थं, चन) स्तुत्यर्ह शस्त्र को भी (आचिकेत) जानता है (न) सम्प्रति किये हुए (गीयमानं) कहे हुए (गायत्रं) स्तोत्र को भी जानता है, अतः कृतज्ञ होने से स्तोतव्य है ॥१४॥
भावार्थ
इस मन्त्र का भाव यह है कि जिस पुरुष की वाणी प्रशस्त नहीं अर्थात् जो अनृतवादी और अकर्मण्य है, वह कर्मयोगी के सन्मुख नहीं ठहर सकता, क्योंकि कर्मयोगी स्तुत्यर्ह स्तोत्रों का ज्ञाता होने से परमात्मा की आज्ञा का पूर्णतया पालन करनेवाला होता है ॥१४॥
विषय
वह आस्तिक और नास्तिक दोनों का भाषण सुनता है ।
पदार्थ
जब (अरिः) सर्वव्यापक वह इन्द्र (अगोः) नास्तिक आदिकों का (चन) भी (शस्यमानम्) उच्चार्य्यमाण (उक्थम्) भाषण (आ+चिकेत) अच्छे प्रकार जानता है तब (गीयमानम्) भक्तजनों के द्वारा मन से गीयमान (गायत्रम्) परमपवित्र सामगान को (न) वह न जानता हो, यह कैसे हो सकता है अथवा (अगोः) स्तुतिरहित नास्तिक जन का (अरिः) शत्रु इन्द्र (शस्यमानम्) इत्यादि पूर्ववत् ॥१४ ॥
भावार्थ
वह इन्द्र सबको जानता है, अतः छल कपट त्याग और उसमें विश्वास जमा श्रद्धा भक्ति से उसकी स्तुति प्रार्थना करो ॥१४ ॥
विषय
प्रजा की प्रार्थना ।
भावार्थ
( अरिः ) व्यापक, स्वामी प्रभु ( अगोः ) वाणीरहित, मूक जन के भी ( शस्यमानम् उक्थं चन ) न कहे गये स्तुति के वचन को ( आचिकेत ) भली प्रकार जान लेता है उसी प्रकार ( न गायमानं गायत्रं च) न गाये गये गायत्र स्तोम, गान योग्य गीत को भी जानता है । भगवान् मूक की भी कही या अनुक्त वाणी को सुनता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मेध्यातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चांगिरसः । ४१, ४२ मेधातिथिर्ऋषिः ॥ देवता:—१—४० इन्द्रः। ४१, ४२ विभिन्दोर्दानस्तुतिः॥ छन्दः –१– ३, ५, ६, ९, ११, १२, १४, १६—१८, २२, २७, २९, ३१, ३३, ३५, ३७, ३८, ३९ आर्षीं गायत्री। ४, १३, १५, १९—२१, २३, २४, २५, २६, ३०, ३२, ३६, ४२ आर्षीं निचृद्गायत्री। ७, ८, १०, ३४, ४० आर्षीं विराड् गायत्री। ४१ पादनिचृद् गायत्री। २८ आर्ची स्वराडनुष्टुप्॥ चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
'मूक स्तवन के भी श्रोता' प्रभु
पदार्थ
[१] (अरिः) = [ऋ गतौ] सर्वत्र प्राप्त वे प्रभु (अगो:) = [गौ-वाणी] वाक्शक्ति रहित मूक पुरुष के (चन) = भी (शस्यमानम्) = हृदय में शंसन किये जाते हुए (उक्थम्) = स्तोत्र को (आचिकेत) = सम्यक् जानते हैं। मूक पुरुष से किये जाते हुए मूक स्तवन को भी वे समझते हैं। [२] इसी प्रकार (न गीयमानम्) = स्वरपूर्वक न गाये जाते हुए (गायत्रम्) = गायत्र स्तोभ को भी वे जानते ही हैं। अर्थात् यदि एक स्तोता गायन न कर सका, तो उसका स्तोत्र न सुना जायेगा ऐसी बात नहीं है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु मूक स्तवन को भी सुनते ही हैं। 'बिना गायन के उच्चरित स्तोत्रों को प्रभु न सुनेंगे' यह बात नहीं है।
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord of power and piety, the man attached to divinity in faith and opposed to doubt and disloyalty knows the words of praise spoken by a man of doubtful faith as much as he knows the songs of adoration sung by a man of faith (and makes a distinction between the two).
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्राचा भाव असा आहे, की ज्या माणसाची वाणी प्रशंसनीय नाही अर्थात् जो अनृतवादी व अकर्मण्य आहे तो कर्मयोग्याच्या समोर थांबू शकत नाही, कारण कर्मयोगी स्तुती करण्यायोग्य स्तोत्राचा ज्ञाता असल्यामुळे परमेश्वराच्या आज्ञेचे पालन करणारा असतो. ॥१४॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal