ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 2/ मन्त्र 38
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चाङ्गिरसः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - आर्षीगायत्री
स्वरः - षड्जः
गा॒थश्र॑वसं॒ सत्प॑तिं॒ श्रव॑स्कामं पुरु॒त्मान॑म् । कण्वा॑सो गा॒त वा॒जिन॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठगा॒थऽश्र॑वसम् । सत्ऽप॑तिम् श्रवः॑ऽकामम् । पु॒रु॒ऽत्मान॑म् । कण्वा॑सः । गा॒त । वा॒जिन॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
गाथश्रवसं सत्पतिं श्रवस्कामं पुरुत्मानम् । कण्वासो गात वाजिनम् ॥
स्वर रहित पद पाठगाथऽश्रवसम् । सत्ऽपतिम् । श्रवःऽकामम् । पुरुऽत्मानम् । कण्वासः । गात । वाजिनम् ॥ ८.२.३८
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 38
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
विषयः
अथ कर्मयोगिनः स्तुतिः कथ्यते।
पदार्थः
(कण्वासः) हे विद्वांसः ! (गाथश्रवसं) गातव्यकीर्तिं (सत्पतिं) सतां पालकं (श्रवस्कामं) यशसः कामयितारं (पुरुत्मानं) बहुविधरूपधारकं (वाजिनं) वाचां स्वामिनं (गात) स्तुत ॥३८॥
विषयः
अनयेन्द्रं विशिनष्टि ।
पदार्थः
हे कण्वासः=कण्वाः । कणतिः शब्दकर्मा । कणन्ति स्तुवन्ति ये ते कण्वाः स्तुतिपाठका विद्वांसः । यूयम् । गाथश्रवसम्=गातव्ययशसम् । गाथं गानीयं श्रवो यशो यस्य तं गाथश्रवसम् । सत्पतिम् । श्रवस्कामम्=जनानां श्रवःसु यशःसु कामो यस्य तम् । पुरुत्मानम्=पुरूणां सर्वेषां प्राणिनामात्मानम् । यद्वा । बहुषु प्रदेशेषु अतन्तं सततं गच्छन्तम् । पुनः । वाजिनम्=ज्ञानमयम् । ईदृशमिन्द्रम् । गात=गायत । ईश्वरस्य विभूतिमुद्दिश्य गायतेत्यर्थः ॥३८ ॥
हिन्दी (4)
विषय
अब कर्मयोगी की स्तुति करना कथन करते हैं।
पदार्थ
(कण्वासः) हे विद्वानो ! (गाथश्रवसं) वर्णनीय कीर्तिवाले (सत्पतिं) सञ्जनों के पालक (श्रवस्कामं) यश को चाहनेवाले (पुरुत्मानं) अनेक रूपोंवाले (वाजिनं) वाणियों के प्रभु कर्मयोगी की (गात) स्तुति करो ॥३८॥
भावार्थ
विद्वान् याज्ञिक पुरुषों को उचित है कि वह विस्तृत कीर्तिवाले, सञ्जनों के पालक, यशस्वी और सब विद्याओं के ज्ञाता कर्मयोगी की स्तुति करें, ताकि वह प्रसन्न होकर सब विद्वानों की कामनाओं को पूर्ण करे ॥३८॥
विषय
इससे इन्द्र के विशेषण कहे जाते हैं ।
पदार्थ
(कण्वासः१) हे स्तुतिपाठक विद्वानो ! (गाथश्रवस२म्) जिसके यश गाने योग्य हैं, जो (सत्पतिम्) सज्जनों का पालक है, जो (श्रवस्कामम्) मनुष्यों का यशोऽभिलाषी है, जो (पुरुत्मा३नम्) सबका आत्मा है । यद्वा जो सबमें व्यापक है और जो (वाजिनम्) परमज्ञानी है, (गात) उसकी विभूतियों को गाओ ॥३८ ॥
भावार्थ
हे विद्वानो ! परमात्मा की विभूति अनन्ता मनोहारिणी महामहाश्चर्य्या और सुखविधायिनी है, उसको गाओ । वह महादेव सन्तों का पति है । सब यशस्वी हों, यह वह चाहता है और सर्वत्र स्थित होकर वह सबको आनन्द पहुँचा रहा है । उसकी उपासना करो ॥३८ ॥
टिप्पणी
१−कण्व=शब्दार्थक कण धातु से कण्व बनता है जो परमात्मा के यशों का गान करे, वह कण्व । एक कण्व ऋषि भी सुप्रसिद्ध हुए हैं, उनका ग्रहण यहाँ नहीं है । २−गाथश्रवः=गाथ=गानीय=गाने योग्य । श्रवस्=यश, कीर्त्ति, श्रुति, वेद, विज्ञान आदि । ३−पुरुत्मा=पुरु+आत्मा । यहाँ आकार का लोप हो गया है ॥३८ ॥
विषय
स्तुत्य प्रभु । उससे प्रार्थनाएं ।
भावार्थ
हे ( कण्वासः ) विद्वान्, बुद्धिमान् पुरुषो ! आप लोग ( गाथ-श्रवसं ) जिसका यश और श्रोतव्य ज्ञान वा स्वरूप गान करने योग्य है, उस ( सत्-पतिं ) सज्जनों और सत् पदार्थों के पालक, ( श्रवः-कामं ) श्रवणीय अभिलाषा वा संकल्प वाले, ( पुरु-त्मानम् ) इन्द्रियों के बीच आत्मा के समान बहुत जनों के बीच आत्मावत् प्रिय ( वाजिनम् ) ऐश्वर्यवान् ज्ञानवान् प्रभु की ( गात ) स्तुति करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मेध्यातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चांगिरसः । ४१, ४२ मेधातिथिर्ऋषिः ॥ देवता:—१—४० इन्द्रः। ४१, ४२ विभिन्दोर्दानस्तुतिः॥ छन्दः –१– ३, ५, ६, ९, ११, १२, १४, १६—१८, २२, २७, २९, ३१, ३३, ३५, ३७, ३८, ३९ आर्षीं गायत्री। ४, १३, १५, १९—२१, २३, २४, २५, २६, ३०, ३२, ३६, ४२ आर्षीं निचृद्गायत्री। ७, ८, १०, ३४, ४० आर्षीं विराड् गायत्री। ४१ पादनिचृद् गायत्री। २८ आर्ची स्वराडनुष्टुप्॥ चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
'गाथश्रवस्-श्रवस्काम' प्रभु
पदार्थ
[१] (कण्वासः) = हे मेधावी पुरुषो! उस (वाजिनम्) = शक्तिशाली प्रभु का गात गायन करो, जो प्रभु (गाथश्रवसम्) = गायन योग्य यशवाले हैं। (सत्पतिम्) = सज्जनों के रक्षक हैं। [२] रक्षण के उद्देश्य से ही (श्रवस्कामम्) = हमारे लिये ज्ञान की कामनावाले हैं और (पुरुत्मानम्) = पालक व पूरक स्वरूपवाले हैं [पृ पालनपूरणयोः] ।
भावार्थ
भावार्थ- हम उन प्रभु का गायन करें जो गेययशवाले हैं, सज्जनों के रक्षक हैं, हमारे लिये ज्ञान की कामनावाले हैं, पालन व पूरण के स्वभाववाले हैं और प्रशस्त शक्तिवाले हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
O men of knowledge and wisdom, sing in praise of the lord celebrated in song, defender of truth and the truthful, lover of honour and excellence, versatile in form and spirit and instantly victorious in action.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वान याज्ञिक पुरुषांनी अत्यंत कीर्तिवान, सज्जनांचे पालक यशस्वी व सर्व विद्यांचा ज्ञाता असलेल्या कर्मयोग्याची स्तुती करावी. त्याने प्रसन्न होऊन सर्व विद्वानांची कामना पूर्ण करावी. ॥३८॥
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