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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 20/ मन्त्र 23
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - ककुबुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    मरु॑तो॒ मारु॑तस्य न॒ आ भे॑ष॒जस्य॑ वहता सुदानवः । यू॒यं स॑खायः सप्तयः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मरु॑तः । मारु॑तस्य । नः॒ । आ । भे॒ष॒जस्य॑ । व॒ह॒त॒ । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । यू॒यम् । स॒खा॒यः॒ । स॒प्त॒यः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मरुतो मारुतस्य न आ भेषजस्य वहता सुदानवः । यूयं सखायः सप्तयः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मरुतः । मारुतस्य । नः । आ । भेषजस्य । वहत । सुऽदानवः । यूयम् । सखायः । सप्तयः ॥ ८.२०.२३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 20; मन्त्र » 23
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 40; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (मरुतः) हे योद्धारः ! (यूयम्) यूयं सर्वे (सखायः) अस्माकं मित्राणि (सप्तयः) सर्वत्र सर्पणशीलाश्च (सुदानवः) सम्यग्दानशीलाश्च अतः (नः) अस्मान् (मारुतस्य) स्वरक्षया समुत्सृष्टं दूरदेशस्थमपि (भेषजस्य) भेषजमन्नादि अवग्रहकाले “कर्मणि षष्ठी” (आवहत) आनीय प्रापयत ॥२३॥

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    विषयः

    पुनस्तमर्थमाह ।

    पदार्थः

    हे सुदानवः । हे सखायः । हे सप्तयः=रक्षायै इतस्ततः सर्पणशीलाः । मरुतः ! यूयम् । नः । मारुतस्य=स्वसम्बन्धिनः । भेषजस्य । आवहत=आनयत । भेषजमानयतेत्यर्थः ॥२३ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (मरुतः) हे योद्धाओ ! (यूयम्) आप लोग (सखायः) हम सबके मित्र हैं तथा (सप्तयः) सर्वत्र जाने में समर्थ हैं और (सुदानवः) प्रजाओं को देने के स्वभाववाले भी हैं इससे (नः) हमको अनावृष्टि आदि आपत्ति पड़ने पर (मारुतस्य) स्वरक्षा द्वारा सम्पन्न किये हुए अन्यदेशीय (भेषजस्य) अन्नादि भेषज को “मारुतस्य भेषजस्य” यह कर्म में षष्ठी है (आवहत) लाकर प्राप्त कराएँ ॥२३॥

    भावार्थ

    हे शूर वीर योद्धाओ ! आप हम प्रजाजनों के मित्र और सर्वत्र जाने में समर्थ अर्थात् आप लोग अव्याहतगतिवाले हैं, अतएव अनावृष्टि तथा अन्य विपत्ति पड़ने पर दूसरे देशों से अन्नादि खाद्य पदार्थ लाकर हमारी रक्षा करें, जिससे हम अकाल द्वारा पीड़ित न हों ॥२३॥

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    विषय

    पुनः वही विषय कहते हैं ।

    पदार्थ

    (सुदानवः) हे शोभनदानयुक्त (सखायः) हे मित्रों (सप्तयः) रक्षार्थ इतस्ततः गमनशील (मरुतः) मरुद्गण ! (यूयम्) आप (मारुतस्य) स्वसम्बन्धी (भेषजस्य) विविध प्रकार की औषध (नः) हम लोगों के उपकारार्थ (आ+वहत) लावें ॥२३ ॥

    भावार्थ

    सैनिकजनों को प्रजाओं के उपकारार्थ विविध औषधों का भी प्रस्तुत करना एक मुख्य काम है ॥२३ ॥

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    विषय

    उत्तम अध्यक्ष मरुद्-गण।

    भावार्थ

    वायुएं जिस प्रकार हमें प्राण सम्बन्धी रोगनाशक सामर्थ्य प्रदान करते हैं उसी प्रकार हे ( मरुतः ) वीर और विद्वान् पुरुषो! ( सखायः ) परस्पर मित्र, ( सप्तयः ) वेग से जाने आने वाले, अश्ववत् तीव्रगामी, ( सु-दानवः ) उत्तम दानशील होकर ( मारुतस्य ) मरुत् अर्थात् वायुओं से प्राप्त होने योग्य, ( भेषजस्य ) रोग दूर करने वाले उपाय के समान ( मारुतस्य भेषजस्य ) वीर पुरुषों से प्राप्त होने योग्य शत्रुनाशक उपाय को ( नः आवहत ) हमें प्राप्त कराओ। इसी प्रकार प्राण के अभ्यासी विद्वान् लोग हमें मनुष्योपयोगी भेषज औषधादि प्राप्त करावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोभरिः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्द:—१, ५, ७, १९, २३ उष्णिक् ककुम् । ९, १३, २१, २५ निचृदुष्णिक् । ३, १५, १७ विराडुष्णिक्। २, १०, १६, २२ सतः पंक्ति:। ८, २०, २४, २६ निचृत् पंक्ति:। ४, १८ विराट् पंक्ति:। ६, १२ पादनिचृत् पंक्ति:। १४ आर्ची भुरिक् पंक्ति:॥ षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'मारुत भेषज'

    पदार्थ

    [१] शरीर में प्राण ही सब रोगों का औषध हैं। ये ही सब रोगों का उच्छेद करनेवाले हैं। हे (सुदानवः) = उत्तमता से रोगों का दान [दापू लवने] छेदन करनेवाले (मरुतः) = प्राणो ! (नः) = हमारे लिये (मारुतस्य भेषजस्य) = इस प्राणसम्बन्धी औषध का (आवहत) = प्रापण करो। हमारे लिये इस (मारुत) = औषध को प्राप्त कराओ। इस आपकी औषध ने ही तो सब रोगों को मारना है। [२] (यूयम्) = आप ही हमारे (सखायः) = सच्चे मित्र हैं, (सप्तयः) = शरीर की प्रत्येक नाड़ी में सर्पणशील हैं। आपने ही सब मलों का उच्छेदन करके शोधन करना है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राण ही सब रोगों के मुख्य औषध हैं। प्राणशक्ति के अभाव हमें सब अन्य औषध व्यर्थ हैं। ये प्राण ही हमारे सखा हैं, शरीर में सर्वत्र संचारवाले हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Maruts, sojourners of lands and skies, moving in formations of seven coursers, noble and generous friends of the community, bring in for us medicaments of the air for our health and environment.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रजेवर उपकार करण्यासाठी विविध औषधी उपलब्ध करून देणे हेही सैनिकांचे मुख्य कर्तव्य आहे. ॥२३॥

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