ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 46/ मन्त्र 20
सनि॑त॒: सुस॑नित॒रुग्र॒ चित्र॒ चेति॑ष्ठ॒ सूनृ॑त । प्रा॒सहा॑ सम्रा॒ट् सहु॑रिं॒ सह॑न्तं भु॒ज्युं वाजे॑षु॒ पूर्व्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठसनि॑त॒रिति॑ । सुऽस॑नितः । उग्र॑ । चित्र॑ । चेति॑ष्ठ । सूनृ॑त । प्र॒ऽसहा॑ । सम्ऽरा॒ट् । सहु॑रिम् । सह॑न्तम् । भु॒ज्युम् । वाजे॑षु । पूर्व्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सनित: सुसनितरुग्र चित्र चेतिष्ठ सूनृत । प्रासहा सम्राट् सहुरिं सहन्तं भुज्युं वाजेषु पूर्व्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठसनितरिति । सुऽसनितः । उग्र । चित्र । चेतिष्ठ । सूनृत । प्रऽसहा । सम्ऽराट् । सहुरिम् । सहन्तम् । भुज्युम् । वाजेषु । पूर्व्यम् ॥ ८.४६.२०
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 46; मन्त्र » 20
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O generous lord, most charitable giver, mighty, wonderful, most conscientious and attentive, most truthful, tolerant and courageous, supreme ruler, bring us the mind and material, power and force which is patient and courageous, challenging, useful and of permanent value.
मराठी (1)
भावार्थ
उपासकांच्या हृदयात ईश्वरीय गुण प्रकट व्हावेत यासाठी अनेक विशेषणाद्वारे वर्णन केलेले आहे. ॥२०॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे सनितः=दातः ! हे सुसनितः=परमदातः ! हे उग्र ! हे चित्र ! हे चेतिष्ठ=अतिशयेन चेतयितः ! हे सूनृत ! हे प्रसहा=विघ्नविनाशक शत्रुनिवारक ! हे सम्राट् ! त्वम् । वाजेषु=संसारसंग्रामेषु । सहुरिम्=सहनशीलम् । सहन्तम्= दुःखनिवारकम् । पूर्व्यम्=पुरातनं पूर्णम् । भुज्युं=भोग्यम् । धनं देहीति शेषः ॥२० ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(सनितः) हे दाता (सुसनितः) हे परमदाता (उग्र) हे उग्र (चित्र) हे चित्र आश्चर्य्य (चेतिष्ठ) हे चितानेवाले ज्ञानविज्ञानप्रद (सूनृत) सत्यस्वरूप (प्रसहा) हे विघ्नविनाशक शत्रुनिवारक (सम्राट्) हे महाराज ! तू (सहुरिम्) सहनशील (सहन्तम्) दुःखनिवारक (भुज्युम्) भोग्योचित (पूर्व्यम्) पुरातन पूर्ण धन दे ॥२० ॥
भावार्थ
उपासकों के हृदय में ईश्वरीय गुण प्रविष्ट हों, अतः नाना विशेषणों द्वारा वर्णन होता है ॥२० ॥
विषय
उससे अनेक प्रार्थनाएं।
भावार्थ
हे ( सनितः ) दातः ! हे (सु-सनितः) उत्तम विभक्त करने हारे ! हे ( उग्र ) बलवन् ! हे ( चित्र ) अद्भुत ! हे (चेतिष्ठ) सर्वश्रेष्ठ ज्ञानिन् ! हे (सूनृत) उत्तम धनवान्, ज्ञानवान् ! हे (सम्राट् ) सर्वोपरि विराजमान ! ( सहुरिं ) सबको पराजित करने वाले ( सहन्तं ) सहनशील ( वाजेषु ) संग्रामों में ( पूर्व्यं ) सबसे पूर्व विद्यमान, सर्वश्रेष्ठ, ( भुज्युं ) भोक्ता वा पालक तुम को ( प्र-सहा ) उत्कृष्ट बल से युक्त जान तेरी शरण लेते हैं। इति चतुर्थो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वशोश्व्य ऋषिः॥ देवताः—१—२०, २९—३१, ३३ इन्द्रः। २१—२४ पृथुश्रवसः कानीनस्य दानस्तुतिः। २५—२८, ३२ वायुः। छन्दः—१ पाद निचृद् गायत्री। २, १०, १५, २९ विराड् गायत्री। ३, २३ गायत्री। ४ प्रतिष्ठा गायत्री। ६, १३, ३३ निचृद् गायत्री। ३० आर्ची स्वराट् गायत्री। ३१ स्वराड् गायत्री। ५ निचृदुष्णिक्। १६ भुरिगुष्णिक्। ७, २०, २७, २८ निचृद् बृहती। ९, २६ स्वराड् बृहती। ११, १४ विराड् बृहती। २१, २५, ३२ बृहती। ८ विरानुष्टुप्। १८ अनुष्टुप्। १९ भुरिगनुष्टुप्। १२, २२, २४ निचृत् पंक्तिः। १७ जगती॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
भुज्यु पूर्व्य = शत्रु से अपना रक्षण
पदार्थ
[१] (सनितः) = हे सब धनों के संभक्त, (सुसनितः) = खूब अच्छी प्रकार धनों का संविभाग करनेवाले, (उग्र) = तेजस्विन्, (चित्र) = [चित्] ज्ञान के देनेवाले, (चेतिष्ठ) = चेतानेवाले, (सूनृत) = प्रिय सत्य वाणीवाले प्रभो ! आप सम्राट् शासक हैं, शक्ति से दीप्त हैं। [२] हे प्रभो! आप (वाजेषु) = संग्रामों में (प्रासहा) = उस शत्रु का पराभव करिये जो (सहुरिं) = सबका मर्षण करनेवाला है, (सहन्तं) = सहनेवाला है- शत्रुकृत घाटे से न घबरानेवाला है। (भुज्युं) = अपने भोग को बढ़ानेवाला है तथा (पूव्यम्) = पहले आक्रमण करनेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ही शासक हैं। वे हमारे अपने भोग को बढ़ानेवाले तथा प्रथम आक्रमण करनेवाले शत्रु को कुचलनेवाले हैं।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal