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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 28
    ऋषिः - ब्रह्मातिथिः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    रथं॒ हिर॑ण्यवन्धुरं॒ हिर॑ण्याभीशुमश्विना । आ हि स्थाथो॑ दिवि॒स्पृश॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रथ॑म् । हिर॑ण्यऽवन्धुरम् । हिर॑ण्यऽअभीशुम् । अ॒श्वि॒ना॒ । आ । हि । स्थाथः॑ । दि॒वि॒ऽस्पृश॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रथं हिरण्यवन्धुरं हिरण्याभीशुमश्विना । आ हि स्थाथो दिविस्पृशम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रथम् । हिरण्यऽवन्धुरम् । हिरण्यऽअभीशुम् । अश्विना । आ । हि । स्थाथः । दिविऽस्पृशम् ॥ ८.५.२८

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 28
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    अथोभयोर्विचरणं कथ्यते।

    पदार्थः

    (अश्विना) हे व्यापकौ ! (हिरण्यवन्धुरम्) सुवर्णमयमुन्नतानतम् (हिरण्याभीशुम्) सुवर्णशृङ्खलम् (दिविस्पृशम्) आकाशगामिनम् (रथम्) यानम् (हि) निश्चयम् (आस्थाथः) आरोहतः ॥२८॥

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    विषयः

    राजकर्त्तव्यमाह ।

    पदार्थः

    हे अश्विना=अश्विनौ ! युवाम् । हिरण्यबन्धुरम्= हिरण्यबन्धनम् । हिरण्याभीशुम्=कनकप्रग्रहम् । दिविस्पृशमाकाशस्पर्शिनमत्युच्चरथम् । हि=निश्चयेन । आस्थाथः=अधितिष्ठथः । ततो यत्रावश्यकता तत्र शीघ्रं गन्तव्यमित्यर्थः ॥२८ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब उक्त दोनों का यान द्वारा विचरना कथन करते हैं।

    पदार्थ

    (अश्विना) हे व्यापकशक्तिवाले ! आप (हिरण्यवन्धुरम्) सुवर्णमय ऊँचे-नीचे (हिरण्याभीशुम्) सुवर्णमय शृङ्खलाओं से बद्ध (दिविस्पृशम्) अत्यन्त ऊँचे आकाश में चलनेवाले (रथम्) यान पर (हि) निश्चय करके (आस्थाथः) चढ़नेवाले हैं ॥२८॥

    भावार्थ

    हे व्यापकशक्तिशील ! आप निश्चय करके यान द्वारा आकाश में विचरनेवाले हैं, जो यान ऊपर-नीचे सुवर्णमय शृङ्खलाओं से बँधा हुआ है ॥२८॥

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    विषय

    राजकर्त्तव्य कहते हैं ।

    पदार्थ

    (अश्विना) हे अश्वयुक्त राजा और नायकादिवर्ग ! आप दोनों (हिरण्यबन्धुरम्) जिसके सब बन्धन सोने के हैं । (हिरण्याभीशुम्) जिसका लगाम सुवर्ण का है (दिविस्पृशम्) जो आकाशस्पर्शी है (रथम्) ऐसे रथ पर सदा (आ+स्थाथः) बैठकर जहाँ आवश्यकता हो, वहाँ शीघ्र जाया करें ॥२८ ॥

    भावार्थ

    प्रजाओं की रक्षा के लिये राजा सदा सन्नद्ध रहे ॥२८ ॥

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    विषय

    उषा और अश्वियुगल। गृहलक्ष्मी उषा देवी। जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों को गृहस्थोचित उपदेश। वीर विद्वान् एवं राजा और अमात्य-राजावत् युगल जनों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (अश्विना ) 'अश्व' अर्थात् वेग से जाने वाले रथ विमान विद्युत, अग्नि, जल आदि के स्वामी, तत्सम्बन्धी कार्यकुशल विद्वान् एवं शिल्पी जनो ! पुरुषो ! आप दोनों ( हिरण्यबन्धुरम् ) सुवर्ण, लोह आदि धातु से सुन्दर, कान्तियुक्त ( हिरण्याभीशुम् ) उत्तम लोहादि धातु की बनी रोक-थाम वाले ( दिवि-स्पृशम् ) आकाश और भूमि दोनों को स्पर्श करने वाले दोनों यथेच्छ जाने वाले, (रथं स्थाथः हि) स्थपर विराजा करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मातिथिः काण्व ऋषिः॥ देवताः—१—३७ अश्विनौ। ३७—३९ चैद्यस्य कर्शोदानस्तुतिः॥ छन्दः—१, ५, ११, १२, १४, १८, २१, २२, २९, ३२, ३३, निचृद्गायत्री। २—४, ६—१०, १५—१७, १९, २०, २४, २५, २७, २८, ३०, ३४, ३६ गायत्री। १३, २३, ३१, ३५ विराड् गायत्री। १३, २६ आर्ची स्वराड् गायत्री। ३७, ३८ निचृद् बृहती। ३९ आर्षी निचृनुष्टुप्॥ एकोनचत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    'हिरण्यवन्धु-हिरण्याभीशु-दिविस्पृश्' रथ

    पदार्थ

    [१] (अश्विना) = हे प्राणापानो! आप (रथम्) = उस शरीर रथ पर (हि) = निश्चय से (आस्थाथः) = अधिष्ठित होते हो जो (दिविस्पृशम्) = प्रकाश का स्पर्श करनेवाला है, प्रकाशमय है। शरीर रथ में बुद्धि ही विद्युद्दीप का काम करती है, प्राणापान ही इस बुद्धि को बड़ा तीव्र बनाते हैं। [२] प्राणापान उस शरीर-रथ पर स्थित होते हैं जो (हिरण्यवन्धुरम्) = ज्योतिर्मय व सुन्दर है, ज्योति के कारण बड़ा सुन्दर है और (हिरण्याभीशुम्) = हितरमणीय मनरूप लगामवाला है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना से यह शरीर रथ 'ज्योतिर्मय सुन्दर, उत्तम मन रूप लगामवाला तथा बुद्धि के कारण उज्ज्वल' बनता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ashvins, you ride a chariot of golden structure and golden control which flies and touches the borders of the regions of light on high.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे व्यापक शक्तिवान! तुम्ही निश्चयपूर्वक यानाने आकाशात विहार करणारे आहात. ते तुमचे यान वरखाली सुवर्णमय शृंखलानी बांधलेले आहे. ॥२८॥

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