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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 53 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 53/ मन्त्र 8
    ऋषिः - मेध्यः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    अ॒हं हि ते॑ हरिवो॒ ब्रह्म॑ वाज॒युरा॒जिं यामि॒ सदो॒तिभि॑: । त्वामिदे॒व तममे॒ सम॑श्व॒युर्ग॒व्युरग्र॑॑ मथी॒नाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒हम् । हि । ते॒ । ह॒रि॒ऽवः॒ । ब्रह्म॑ । वा॒ज॒ऽयुः । आ॒जिम् । यामि॑ । सदा॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । त्वाम् । इत् । ए॒व । तम् । अमे॑ । सम् । अ॒श्व॒ऽयुः । ग॒व्युः । अग्रे॑ । म॒थी॒नाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अहं हि ते हरिवो ब्रह्म वाजयुराजिं यामि सदोतिभि: । त्वामिदेव तममे समश्वयुर्गव्युरग्र मथीनाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अहम् । हि । ते । हरिऽवः । ब्रह्म । वाजऽयुः । आजिम् । यामि । सदा । ऊतिऽभिः । त्वाम् । इत् । एव । तम् । अमे । सम् । अश्वऽयुः । गव्युः । अग्रे । मथीनाम् ॥ ८.५३.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 53; मन्त्र » 8
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord omnipotent, you are the master and controller of the powers and dynamics of the world. Seeker of strength and victory, always by virtue of your protections I go forward to any great battle. Seeker of victory and earthly prosperity, I depend on you only, first and foremost of the warriors of the world.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या देखरेखीखाली जीवनसंघर्षाचा निर्वाह करण्याचा अभिप्राय आहे. त्याच्या आज्ञांनुसार आपले आचरण ठेवावे. परमेश्वराचे आज्ञापालन करणारा मनुष्य कोणत्याही विघ्नबाधांनी त्रस्त होऊ शकत नाही. तो परमेश्वराच्या अग्रणी मित्रांत स्थान प्राप्त करतो. ॥८॥

    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    हे (हरिवः) आकर्षक गुणयुक्त (ब्रह्म) महान् परमात्मा! (हि) निश्चय ही (वाजयुः) ऐश्वर्य की इच्छा करने वाला (अहम्) मैं साधक (सदा) सदैव (ते) आपकी (ऊतिभिः) देखभाल सहित (आजिम्) जीवन संघर्ष में (यामि) पहुँचता हूँ। पुनश्च (अश्वयुः) बलवती कर्मेन्द्रियों का इच्छुक मैं (त्वम् इत्) एवं (तम्) उस आपको ही (प्रथीनाम्) मन्थन करने वालों के (अग्रे) अग्रभाग में (सम् अमे) अपना सखा बनाता हूँ॥८॥

    भावार्थ

    प्रभु की देखभाल में जीवन-संघर्ष के निर्वाह का अभिप्राय है उसकी आज्ञाओं के अनुसार व्यवहार रखना। प्रभु का आज्ञाकारी मानव भला किस विघ्न-बाधा से आतंकित हो सकता है! वह तो प्रभु के अग्रणी मित्रों में स्थान प्राप्त करता है॥८॥ अष्टम मण्डल में त्रेपनवाँ सूक्त व तेईसवाँ वर्ग समाप्त॥

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