ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 54/ मन्त्र 3
आ नो॒ विश्वे॑ स॒जोष॑सो॒ देवा॑सो॒ गन्त॒नोप॑ नः । वस॑वो रु॒द्रा अव॑से न॒ आ ग॑मञ्छृ॒ण्वन्तु॑ म॒रुतो॒ हव॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । विश्वे॑ । स॒ऽजोष॑सः॑ । देवा॑सः । गन्त॑न । उप॑ । नः॒ । वस॑वः । रु॒द्राः । अव॑से । नः॒ । आ । ग॒म॒न् । शृ॒ण्वन्तु॑ । म॒रुतः॑ । हव॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो विश्वे सजोषसो देवासो गन्तनोप नः । वसवो रुद्रा अवसे न आ गमञ्छृण्वन्तु मरुतो हवम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । विश्वे । सऽजोषसः । देवासः । गन्तन । उप । नः । वसवः । रुद्राः । अवसे । नः । आ । गमन् । शृण्वन्तु । मरुतः । हवम् ॥ ८.५४.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 54; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Let all friends and divinities of the world come to us and bless. Let all Vasus such as earth, all Rudras such as pranic energies, come and bless us for our protection and sustenance, and may the Maruts, vibrations of divinity and high priests of yajna, listen to our call and come with gifts of grace.
मराठी (1)
भावार्थ
मूर्तिमान दिव्य पदार्थांच्या गुणांचे अध्ययन करून त्यांचा उपयोग करून घ्यावा. तसेच विद्वानांचा सत्संग करून त्यांच्या उपदेशाचा लाभ घ्यावा. ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(विश्वे) सभी (देवासः) मूर्त तथा अमूर्त देव (नः सजोषसः) हमसे प्रीतियुक्त हुए (नः) हमारे (उप गन्तन) निकट पहुँचें--हमारे अनुकूल हों। (वसवः) अग्नि आदि आठों--सर्व वास दाता--और (रुद्राः) शरीर से निकल जाने पर सम्बन्धियों को रोने पर बाध्य करने वाले ग्यारहों रुद्र देवता (नः) हमारे (अवसे) उपकार के लिए (आ गमन्) आएं और (मरुतः) ऋत्विज, वायु के तुल्य बलिष्ठ वीरजन व अन्य विद्वान् (नः) हमारी (हवम्) प्रार्थना सुनें॥३॥
भावार्थ
मूर्तिमान् दिव्य वस्तुओं के गुणों को समझ कर हम उन्हें अपना निकटस्थ बनाएं और उन्हें उपयोग में लाएं तथा विद्वानों का सत्संग कर उनके उपदेशों से लाभान्वित हों॥३॥
विषय
परमेश्वर की स्तुति प्रार्थनाएं।
भावार्थ
हे ( विश्वे देवासः ) समस्त विद्वान् पुरुषो ! आप ( विश्वे ) सब लोग ( नः ) हम से ( सजोषसः ) प्रीतियुक्त होकर ( नः उप गन्तन ) हमें प्राप्त होवें। ( वसवः ) रक्षक, ( रुद्राः ) दुष्टों को रुलाने वाले, प्राणवत् प्रिय पुरुष, (नः) हमें (अवसे) रक्षार्थ ( आगमन् ) प्राप्त हों। और ( मरुतः ) वे बलवान् पुरुष ( नः हवम् शृण्वन्तु ) हमारा आह्वान, हमारी पुकार सुनें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मातरिश्वा काण्व ऋषिः॥ १, २, ५—८ इन्द्रः । ३, ४ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, ५ निचृत् बृहती। ३ बृहती। ७ विराड बृहती। २, ४, ६, ८ निचृत् पंक्तिः॥
विषय
वसवः, रुद्राः, मरुतः
पदार्थ
[१] (नः) = हमारे प्रति (सजोषसः) = समानरूप से प्रीतिवाले होते हुए (विश्वे) = सब (देवासः) = देव (आ) = सब ओर से (नः उपगन्तन) = हमारे समीप प्राप्त हों। हम सदा देवों के संग को प्राप्त करें। [२] (वसवः) = अपने निवास को उत्तम बनानेवाले, (रुद्रः) = सब रोगों को दूर भगानेवाले विद्वान् (नः अवसे) = हमारे रक्षण के लिए (आगमन्) = हमें प्राप्त हों। (मरुतः) = प्राणसाधना में प्रवृत्त साधक लोग (हवम् शृण्वन्तु) = हमारी पुकार को सुनें। इनके सम्पर्क में हम भी 'वसु-रुद्र व मरुत्' बन पाएँ ।
भावार्थ
भावार्थ- सब दिव्यगुण हमें प्राप्त हों। हम वसु, रुद्र व मरुतों के सम्पर्क में आकर उत्तम निवासवाले, नीरोग व प्राणशक्तिसम्पन्न बनें।
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