ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 54/ मन्त्र 4
ऋषिः - मातरिश्वा काण्वः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - निचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
पू॒षा विष्णु॒र्हव॑नं मे॒ सर॑स्व॒त्यव॑न्तु स॒प्त सिन्ध॑वः । आपो॒ वात॒: पर्व॑तासो॒ वन॒स्पति॑: शृ॒णोतु॑ पृथि॒वी हव॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठपू॒षा । विष्णुः॑ । हव॑नम् । मे॒ । सर॑स्वती । अव॑न्तु । स॒प्त । सिन्ध॑वः । आपः॑ । वातः॑ । पर्व॑तासः । वन॒स्पतिः॑ । शृ॒णोतु॑ । पृ॒थि॒वी । हव॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पूषा विष्णुर्हवनं मे सरस्वत्यवन्तु सप्त सिन्धवः । आपो वात: पर्वतासो वनस्पति: शृणोतु पृथिवी हवम् ॥
स्वर रहित पद पाठपूषा । विष्णुः । हवनम् । मे । सरस्वती । अवन्तु । सप्त । सिन्धवः । आपः । वातः । पर्वतासः । वनस्पतिः । शृणोतु । पृथिवी । हवम् ॥ ८.५४.४
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 54; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
May Pusha, sun and other powers of nourishment, Vishnu, omnipresent divine power, Sarasvati, divine vibrations of cosmic awareness, and the seven seas attend to my call, honour it and protect me. May Apah, nature’s flow of liquid energies, Vatah, the winds, mountains and the clouds, herbs and trees and the earth perceive my call and help.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उदाहरणरूपाने काही प्रमुख जड दिव्य पदार्थांची नावे आहेत. त्यांच्या गुणांचे जवळून अध्ययन करावे. त्यांचे गुण जाणून त्यांच्याकडून उपकार घ्यावा. ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पूषा) सर्व पोषक सूर्य, (विष्णुः) व्यापक वायु, सरस्वती-वाणी व (सप्त सिन्धवः) सात जगहों पर स्थित जल [भूमि, समुद्र, नदी, कूप और सरोवर--इन चार स्थानों में स्थित; तथा अन्तरिक्ष में निकट, मध्य व दूर पर स्थित] (मे हवम्) मेरे आह्वान को (अवन्तु) मानें। इसी प्रकार (आपः) व्यापक अन्तरिक्ष (वातः) वायु (पर्वतासः) मेघ, (वनस्पतिः) वृक्ष, लता इत्यादि, (पृथिवी) भूमि (हवम्) मेरी पुकार (शृणोतु) सुनें॥४॥
भावार्थ
यहाँ उदाहरण रूप से कुछ प्रमुख जड़ दिव्य पदार्थों का नाम है। इनके गुणों का गहरा अध्ययन ही इनका आह्वान करना है; मनुष्य को चाहिये कि उनके गुण जानकर इनसे यथोचित उपकार ग्रहण करे॥४॥
विषय
परमेश्वर की स्तुति प्रार्थनाएं।
भावार्थ
( पूषा ) सर्वपोषक, सूर्य ( विष्णुः ) व्यापक वायु, ( सरस्वती ) उत्तम ज्ञान से सम्पन्न वाणी, और ( सप्त सिन्धवः ) शरीरस्थ सातों गतिशील और शरीर को बांधने वाले प्राण, (आपः) जल, (वातः) वायु, ( पर्वतासः ) मेघगण ( वनस्पतिः ) वनस्पति वृक्षादि, ये सब ( मे हवनं अवन्तु ) मेरे यज्ञाहुति को प्राप्त हों। ( पृथिवी मे हवम् शृणोतु ) समस्त पृथिवी मेरे कथन या दान यज्ञादि को श्रवण करे। मेरी प्रसिद्धि हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मातरिश्वा काण्व ऋषिः॥ १, २, ५—८ इन्द्रः । ३, ४ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, ५ निचृत् बृहती। ३ बृहती। ७ विराड बृहती। २, ४, ६, ८ निचृत् पंक्तिः॥
विषय
सम्पूर्ण आधिदैविक जगत् की अनुकूलता
पदार्थ
[१] (पूषा) = पोषक सूर्य, (विष्णुः) = सर्वव्यापक प्रभु, (सरस्वती) = ज्ञान की अधिष्ठात्री देवता, (सप्त सिन्धवः) = सात छन्दों में प्रवाहित होनेवाले सात ज्ञान प्रवाह [ स्यन्द] (मे) = मेरे (हवनम् अवन्तु) = [हु दानादनयोः] दानपूर्वक अदन को रक्षित करें। इन सबके अनुग्रह से मैं दानपूर्वक अन करनेवाला बनूँ। [२] (आप:) = जल (वातः) = वायु (पर्वतासः) = पर्वत और (वनस्पतिः) = वनस्पति तथा (पृथिवी) = यह भूमिमाता (हवम्) = मेरी पुकार को (शृणोतु) = सुनें। इन सबकी हमारे लिए अनुकूलता हो। इनकी अनुकूलता में हम पूर्ण स्वास्थ्य को प्राप्त करें।
भावार्थ
भावार्थ- 'पूषा, विष्णु, सरस्वती व सप्त सिन्धुओं' की कृपा से मैं त्यागपूर्वक अदन करनेवाला बनूँ। जल, वायु, पर्वत, वनस्पति व पृथिवी की अनुकूलता में मैं स्वस्थ बनूँ।
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