ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 54/ मन्त्र 6
ऋषिः - मातरिश्वा काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
आजि॑पते नृपते॒ त्वमिद्धि नो॒ वाज॒ आ व॑क्षि सुक्रतो । वी॒ती होत्रा॑भिरु॒त दे॒ववी॑तिभिः सस॒वांसो॒ वि शृ॑ण्विरे ॥
स्वर सहित पद पाठआजि॑ऽपते । नृ॒ऽप॒ते॒ । त्वम् । इत् । हि । नः॒ । वाजे॑ । आ । व॒क्षि॒ । सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो । वी॒ती । होत्रा॑भिः । उ॒त । दे॒ववी॑तिऽभिः । स॒स॒ऽवांसः॑ । वि । शृ॒ण्वि॒रे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आजिपते नृपते त्वमिद्धि नो वाज आ वक्षि सुक्रतो । वीती होत्राभिरुत देववीतिभिः ससवांसो वि शृण्विरे ॥
स्वर रहित पद पाठआजिऽपते । नृऽपते । त्वम् । इत् । हि । नः । वाजे । आ । वक्षि । सुक्रतो इति सुऽक्रतो । वीती । होत्राभिः । उत । देववीतिऽभिः । ससऽवांसः । वि । शृण्विरे ॥ ८.५४.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 54; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Guide and protector of our struggles and our people in struggle for advancement, ruler of the human nation, inspirer of noble acts of charity, you alone conduct us successfully through our battles for progress. Seekers of honour and excellence win fame and glory by cherished yajnic performers and their service and devotion to the divinities of nature and humanity.
मराठी (1)
भावार्थ
प्रजा राजाच्या साह्याने युद्ध इत्यादीमध्ये विजय प्राप्त करते व यज्ञ इत्यादी सत्कर्म आणि विद्वानांच्या नीतीचे अवलंबन करून संपन्न होऊन विशेष प्रसिद्ध होते. ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(आजिपते) युद्ध इत्यादि संघर्षों में हमारा पालन करने वाले (सुक्रतो) शुभ प्रज्ञा वाले एवं कर्मवान्; (नृपते) राजन्! (त्वम् इत् हि) आप ही (नः) हमें (वाजे) युद्ध इत्यादि में (आ वक्षि) वहन करते हैं; (वीती) कामना सहित किये गये (होत्राभिः) दानादान रूप सत्कर्मों से और (देववीतिभिः) विद्वानों की विशेष नीतियों का सहारा लेकर (ससवांसः) अन्न आदि ऐश्वर्य प्राप्त करते हुए हम प्रजाजन (विशृण्विरे) विशेष रूप से प्रसिद्धि पाते हैं॥६॥
भावार्थ
प्रजा राजा की मदद से युद्ध में विजय पाता है और यज्ञ इत्यादि सत्कर्मों व विद्वानों की नीतियों का अवलम्बन करके सम्पन्न व परिणामतः प्रसिद्धि पाता है॥६॥
विषय
परमेश्वर की स्तुति प्रार्थनाएं।
भावार्थ
हे ( आजिपते ) युद्धों के पालक ! हे ( नृपते ) मनुष्यों के पालक ! हे ( सुक्रतो ) उत्तम प्रज्ञावान् ! ( त्वम् इत् हि नः ) तू ही हमें ( वाजे आवक्षि ) संग्राम में धारण कर। ( देव-वीतिभिः ) विद्वानों या शुभ गुणों के प्रकाश करने वाली ( वीती ) ज्ञानयुक्त ( होत्राभिः ) वाणियों से ( ससवांसः ) स्तुति करते हुए विद्वान् जन (वि शृणिवरे) विविध प्रकार से सुने जावें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
मातरिश्वा काण्व ऋषिः॥ १, २, ५—८ इन्द्रः । ३, ४ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्दः—१, ५ निचृत् बृहती। ३ बृहती। ७ विराड बृहती। २, ४, ६, ८ निचृत् पंक्तिः॥
विषय
आजिपति-नृपति
पदार्थ
[१] हे (आजिपते) = युद्धों के रक्षक, (नृपते) = उन्नतिपथ पर चलनेवालों के रक्षक, (सुक्रतो) = उत्तम प्रज्ञान व शक्तिवाले प्रभो ! (त्वम् इत् हि) = आप ही (नः) = हमें (वाजे) = शक्ति में आवक्षि धारण करते हो, अर्थात् आप ही हमें सब सामर्थ्यो को देते हो। [२] आपके उपासक (वीती) = [वी असने] अन्धकार को परे फेंकने के द्वारा (होत्राभिः) = दानपूर्वक अदन की प्रक्रियाओं से, अर्थात् यज्ञशेष के सेवन से तथा (देववीतिभिः) = दिव्यगुणों की प्राप्तियों से (ससवांसः) = प्रभु का संभजन करते हुए (विशृण्वरे) = विशिष्ट ख्याति को प्राप्त करते हैं। वास्तव में प्रभु के सम्पर्क से ये युद्धों में विजयी बनते हैं और नर बनकर आगे बढ़ते हैं।
भावार्थ
भावार्थ:- प्रभु हमें शक्ति देते हैं। यज्ञशेष के सेवन व दिव्यगुणों की प्राप्ति से ही वस्तुतः प्रभुसंभजन होता है। प्रभु हमें संग्राम में विजयी बनाते हैं।
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