ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 66/ मन्त्र 2
न यं दु॒ध्रा वर॑न्ते॒ न स्थि॒रा मुरो॒ मदे॑ सुशि॒प्रमन्ध॑सः । य आ॒दृत्या॑ शशमा॒नाय॑ सुन्व॒ते दाता॑ जरि॒त्र उ॒क्थ्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठन । यम् । दु॒ध्राः । वर॑न्ते । न । स्थि॒राः । मुरः॑ । मदे॑ । सु॒ऽशि॒प्रम् । अन्ध॑सः । यः । आ॒ऽदृत्य॑ । श॒श॒मा॒नाय॑ । सु॒न्व॒ते । दाता॑ । ज॒रि॒त्रे । उ॒क्थ्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
न यं दुध्रा वरन्ते न स्थिरा मुरो मदे सुशिप्रमन्धसः । य आदृत्या शशमानाय सुन्वते दाता जरित्र उक्थ्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठन । यम् । दुध्राः । वरन्ते । न । स्थिराः । मुरः । मदे । सुऽशिप्रम् । अन्धसः । यः । आऽदृत्य । शशमानाय । सुन्वते । दाता । जरित्रे । उक्थ्यम् ॥ ८.६६.२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 66; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 48; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 48; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra whom none can stop in his state of ecstasy and abundant charity, neither the impetuous, nor the constant, nor demon nor mortal, Indra who is the giver of cherished wealth and joy to the celebrant, the creator of soma and the zealous worshipper with deep reverence and homage.
मराठी (1)
भावार्थ
आशय हा आहे की, जे शुभ कर्मात मग्न असतात ते त्या परमेशाच्या कृपेने सुखी राहतात.॥२॥
संस्कृत (1)
विषयः
ईशः स्वतन्त्रः कर्तास्तीत्यनया दर्शयति ।
पदार्थः
हे मनुष्याः । अन्धसः+मदे=धनस्य मदे=धनं दातुमित्यर्थः । यमीशम् । दुध्राः=दुर्धराः । न+वरन्ते= निवारयितुं न शक्नुवन्ति । स्थिराः+मुरः=मुरा मर्त्या अपि न वरन्ते । कीदृशम् । सुशिप्रम्=शिष्टजनानां सुपूरकम् । यश्च । आदृत्य=आदरं कृत्वा श्रद्धया सह । शशमानाय=तमेव प्रशंसमानाय । सुन्वते=शुभकर्मसु आसक्ताय । जरित्रे=स्तुतिकर्त्रे । उक्थ्यम्=वक्तव्यं वचनम् । दाता भवति ॥२ ॥
हिन्दी (3)
विषय
ईश्वर स्वतन्त्रकर्ता है, इस ऋचा से दिखलाते हैं ।
पदार्थ
हे मनुष्यों ! (अन्धसः+मदे) धन देने से (यम्) जिस इन्द्र को (दुध्राः) दुर्धर राजा महाराजा आदि (न+वरन्ते) न रोक सकते (स्थिराः) स्थिर (मुराः+न) मनुष्य भी जिसको न रोक सकते । जो (सुशिप्रम्) शिष्टजनों को धनादिकों से पूर्ण करनेवाला है और जो (आदृत्य) श्रद्धा भक्ति और प्रेम से आदर करके उसकी (शशमानाय) कीर्ति की प्रशंसा करनेवाले जन को (सुन्वते) शुभकर्मी को और (जरित्रे) स्तुतिकर्ता को (उक्थ्यम्) वक्तव्यवचन, धन और पुत्रादिक पवित्र वस्तु (दाता) देता है ॥२ ॥
भावार्थ
आशय यह है कि जो शुभकर्म में निरत हैं, वे उसकी कृपा से सुखी रहते हैं ॥२ ॥
विषय
सर्वोपरि बलशाली प्रभु।
भावार्थ
( यं सु-शिप्रम्) जिस उत्तम बलशाली को ( दुध्राः न वरन्ते) दुर्धर अर्थात् बड़े २ बलशाली भी वारण नहीं कर सकते ( न स्थिराः मुरः ) स्थिर, अचल शत्रुमारक बली भी जिसको वारण नहीं कर सकते, उसके किये को नहीं बदल सकते, ( यः ) जो ( अन्धसः मदे ) अन्नवत् ज्ञान-जीवन के आनन्द में ( शशमानाय ) प्रशंसा करते हुए, ( सुन्वते ) उपासना करते हुए, ( जरित्रे ) स्तोता जन के हितार्थ, ( आदृत्य दाता ) आदर करके प्रेमपूर्वक दान देता है, उस ( उक्थ्यम् ) स्तुत्य प्रभु की मैं उपासना करूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कलिः प्रागाथ ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१ बृहती। ३, ५, ११, १३ विराड् बृहती। ७ पादनिचृद् बृहती। २, ८, १२ निचृत् पंक्तिः। ४, ६ विराट् पंक्ति:। १४ पादनिचृत् पंक्ति:। १० पंक्तिः। ९, १५ अनुष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
शशमानाय सुन्वते जरित्रे
पदार्थ
[१] (यं) = जिस (सुशिप्रं) = शोभन शिरस्त्राणवाले सर्वशक्तिमान् प्रभु को (दुध्राः) = दुर्धर अर्थात् बड़े-बड़े शक्तिशाली भी (न वरन्ते) = रोक नहीं सकते (स्थिरा मुर:) = स्थिर शत्रुमारक बली भी (न) = रोक नहीं पाते, वे प्रभु वे हैं (यः) = जो (अन्धसः मदे) = सोमपानजनित उल्लास में शशमानाय प्लुत गतिवाले - स्फूर्ति से कार्य करनेवाले, (सुन्वते) = यज्ञशील (उक्थ्यं) = स्तुत्य प्रभु का (जरित्रे) = स्तवन करनेवाले के लिए (आदृत्य) = आदरपूर्वक (दाता) = सब कुछ देनेवाले हैं। प्रभु इस स्तोता को सम्मान भी प्राप्त कराते हैं, धन भी।
भावार्थ
भावार्थ- - प्रभु का वारण 'असुर, देव, मनुष्य' कोई भी नहीं कर पाते - 'न दुध, न स्थिर और न मुर्' । ये प्रभु सोम का रक्षण करनेवाले, अतएव उल्लासमय, शीघ्र गतिवाले यज्ञशील स्तोता को मानसहित धन प्राप्त कराते हैं।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal