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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 10
    ऋषिः - पुनर्वत्सः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्रीणि॒ सरां॑सि॒ पृश्न॑यो दुदु॒ह्रे व॒ज्रिणे॒ मधु॑ । उत्सं॒ कव॑न्धमु॒द्रिण॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रीणि॑ । सरां॑सि । पृश्न॑यः । दु॒दु॒ह्रे । व॒ज्रिणे॑ । मधु॑ । उत्स॑म् । कव॑न्धम् । उ॒द्रिण॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रीणि सरांसि पृश्नयो दुदुह्रे वज्रिणे मधु । उत्सं कवन्धमुद्रिणम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रीणि । सरांसि । पृश्नयः । दुदुह्रे । वज्रिणे । मधु । उत्सम् । कवन्धम् । उद्रिणम् ॥ ८.७.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 10
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (2)

    विषयः

    अथ मातरः पुत्रान् योद्धुं सन्नद्धान् कुर्वन्तीति कथ्यते।

    पदार्थः

    (पृश्नयः) योद्धृमातरः (वज्रिणे) वज्रशक्तिमते स्वपुत्राय (त्रीणि, सरांसि) त्रीणि पात्राणि (दुदुह्रे) दुहन्ति, कानि (मधु) मधुरम् (उत्सम्) उत्साहम् (कबन्धम्) धृतिम् (उद्रिणम्) स्नेहं च ॥१०॥

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    विषयः

    पुनस्तमर्थमाह ।

    पदार्थः

    त्रीणि सरांसि=कर्मेन्द्रियज्ञानेन्द्रियान्तरिन्द्रियवृत्तय एव तानि त्रीणि सरांसि । ताश्च वृत्तयः सुष्ठु प्रयुक्ता मधुरायन्ते । वज्री=दण्डधारी जीवात्मा । अथ ऋगर्थः । पृश्नयः=मातरः=आन्तरिकशक्तयः । इन्द्रियाणि वा । वज्रिणे=आत्मने=इन्द्राय । त्रीणि सरांसि । मधु=मधुरं वस्तु । दुदुह्रे=दुदुहिरे=दुहन्ति । तानि कानि । उत्समुत्स्रवणशीलमेकम् । द्वितीयं कवन्धम्=के=शरीरे बद्धम् । तृतीयमुद्रिणमुत्पतनशीलम् ॥१० ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब माताओं का पुत्रों के लिये युद्धार्थ सन्नद्ध करना कथन करते हैं।

    पदार्थ

    (पृश्नयः) योधाओं की माताएँ (वज्रिणे) वज्रशक्तिवाले अपने पुत्रों के लिये (त्रीणि, सरांसि) तीन पात्रों को (दुदुह्रे) दुहती हैं, वे कौन (मधु, उत्सं) मधुर उत्साहपात्र (कबन्धम्) धृतिपात्र (उद्रिणम्) स्नेहपात्र ॥१०॥

    भावार्थ

    उक्त विद्युत् शस्त्रवाले वज्री योद्धाओं की माताएँ मीठे वचनों से युद्ध की शिक्षायें देतीं और उत्साह बढ़ाकर तथा जाति में स्नेह बढ़ाकर युद्ध के लिये सन्नद्ध करती हैं ॥१०॥

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    विषय

    पुनः उसी अर्थ को कहते हैं ।

    पदार्थ

    (पृश्नयः) आन्तरिक शक्तियाँ अथवा प्राकृत जगत् (वज्रिणे) महादण्डधारी जीवात्मा के लिये (त्रीणि+सरांसि) तीन सरोवर (मधु) मधुर पदार्थ (दुदुह्रे) दुहते हैं एक (उत्सम्) बहनेवाला, दूसरा (कवन्धम्) शरीर में बंधा हुआ और तीसरा (उद्रिणम्) उड़नेवाला ॥१० ॥

    भावार्थ

    तीन सरोवर=कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय और अन्तरिन्द्रिय अर्थात् मन आदि भीतर के इन्द्रिय । इन तीनों की जो वृत्तियाँ, वे ही तीन सरोवर हैं । इनकी वृत्तियाँ यदि शुभकर्म में लगाई जाएँ, तो वे मधुर फल देती हैं । वे तीनों तीन प्रकार की हैं । ज्ञानेन्द्रिय उत्स अर्थात् इतश्चेतश्च बहनेवाले हैं । कर्मेन्द्रिय कबन्ध अर्थात् शरीर में ही बद्ध हैं और अन्तःकरण मन आदि उद्रिण अर्थात् उड़नेवाले हैं । हे मनुष्यों ! इनको वश में करके मधुरफल चाखो ॥१० ॥

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    विषय

    उन की तुलना से सज्जनों, वीरों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( पृश्नयः ) जल वर्षण करने वाले सूर्य के रश्मि गण ( वज्रिणे ) वज्र अर्थात् विद्युत् से युक्त मेध के लिये ( त्रीणि सरांसि ) तीनों तालाबों के तुल्य भूमि, अन्तरिक्ष और बृहदाकाश तीनों से ( मधु दुदुह्रे ) प्रभूत जल ग्रहण करते हैं । वे ही ( उत्सं ) ऊपर से बहने वाले ( उद्रिणम् ) जल से युक्त मेघ से ( कबन्धम् ) जल को भी ( दुदु ) प्रदान करते हैं । उसी प्रकार ( पृश्नयः ) विद्वान् जन ( वज्रिणे ) शक्तिशाली राष्ट्रपति के लिये ( त्रीणि सरांसि मधु दु दुह्रे ) तीनों लोकों से मधुर ऐश्वर्य को प्राप्त करें । और उत्तम मेघ, जलाशय तथा ( उत्सं ) ऊपर से बहने वाले झरने आदि से राष्ट्र के लिये ( कबन्धम् ) धाराबद्ध जल को भी प्राप्त करें, उससे यन्त्र, फ़ौवारे आदि चला दें ।

    टिप्पणी

    अन्नं वै देवाः पृश्नीति वदन्ति। ताण्ड्य०। इयं वै पृश्निः। पृश्नयो ऋषयः। इत्येकोनविंशो वर्गः॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    त्रीणि सरान्सि

    पदार्थ

    [१] हे प्राण 'पृश्नयः' कहलाते हैं क्योंकि ज्ञानदीप्ति का ये कारण बनते हैं। ये प्राण (वज्रिणे) = क्रियाशील पुरुष के लिये (त्रीणि सरांसि) = 'प्रकृति, जीव व परमात्म' सम्बन्धी तीन ज्ञान प्रवाहों को (दुदुह्रे) = प्रपूरित करते हैं। इन ज्ञान प्रवाहों के द्वारा वे इसके जीवन में (मधु) = माधुर्य का दोहन करते हैं। [२] ये प्राण उस (उद्रिणम्) = ज्ञान जल से पूर्ण (उत्सम्) = स्रोत को प्रपूरित करते हैं जो (कवन्धम्) = हमारे जीवनों में उस आनन्दमय [क] प्रभु को हमारे साथ बाँधने [वन्ध] वाला होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना से 'प्रकृति, जीव व परमात्मा' का ज्ञान प्राप्त करके हम अपने जीवनों को मधुर बना पाते हैं और अन्ततः यह ज्ञान हमें प्रभु का सम्पर्क प्राप्त कराता हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Mothers of the Maruts distil the nectar drink of life for them from three reservoirs: the solar region of light or the sattva element of nature, the cloudy sky or the rajas element of nature, and the earth or the tamas element of nature’s balance and firmness, and they feed their children on the light of knowledge and culture, energy of the winds and generosity of rain showers, and the sweetness and stability of the earth.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    वरील विद्युतशस्त्रवान वज्री योद्ध्यांच्या माता मधुर बोलण्याने युद्धाचे शिक्षण देतात व उत्साह वाढवून, जातीत स्नेह वाढवून, युद्धासाठी सन्नद्ध करतात. ॥१०॥

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