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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 7
    ऋषिः - पुनर्वत्सः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उदु॒ त्ये अ॑रु॒णप्स॑वश्चि॒त्रा यामे॑भिरीरते । वा॒श्रा अधि॒ ष्णुना॑ दि॒वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ऊँ॒ इति॑ । त्ये । अ॒रु॒णऽप्स॑वः । चि॒त्राः । यामे॑भिः । ई॒र॒ते॒ । वा॒श्राः । अधि॑ । स्नुना॑ । दि॒वः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदु त्ये अरुणप्सवश्चित्रा यामेभिरीरते । वाश्रा अधि ष्णुना दिवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । ऊँ इति । त्ये । अरुणऽप्सवः । चित्राः । यामेभिः । ईरते । वाश्राः । अधि । स्नुना । दिवः ॥ ८.७.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 7
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (त्ये) ते (अरुणप्सवः) अरुणवर्णाः (चित्राः) आश्चर्य्यभूताः (वाश्राः) शब्दायमानाः (यामेभिः) यानैः (दिवः, अधि) अन्तरिक्षमध्ये (ष्णुना) उपरिष्टात् भागेन (उदीरते, उ) उद्गच्छन्ति ॥७॥

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    विषयः

    पुनः प्राणायामं दर्शयति ।

    पदार्थः

    त्ये=ते । अरुणप्सवः=प्राणायामाभ्यासाद् अरुणवर्णरूपाः । चित्राः=चायनीया आश्चर्य्यभूताः । पुनः । वाश्राः= शब्दकारिणः । एवंभूता मरुतः । यामेभिः=यामैः=प्राणायामैः । दिवः+अधि=शिरसः+अधि=शिरस उपरि । स्नुना= सानुना=श्रेणीभूतेन शरीरपर्वणा । उदीरते=ऊर्ध्वं गच्छन्ति ॥७ ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (त्ये) वह पूर्वोक्त (अरुणप्सवः) अरुण वर्णवाले (चित्राः) आश्चर्यरूप (वाश्राः) शब्दायमान योद्धा लोग (यामेभिः) यानों द्वारा (दिवः, अधि) अन्तरिक्ष में (ष्णुना) ऊपर के भाग से (उदीरते, उ) चलते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में क्षात्रधर्मप्रधान योद्धाओं के रक्तवर्ण का वर्णन किया है कि वे देदीप्यमान सुन्दर वर्णवाले योद्धा लोग यानों द्वारा अन्तरिक्ष में विचरते हैं ॥७॥

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    विषय

    पुनः प्राणायाम का वर्णन करते हैं ।

    पदार्थ

    (त्ये) जो वे प्राण (अरुणप्सवः) प्राणायाम के वारंवार अभ्यास से रक्तवर्ण (चित्राः) आश्चर्यभूत और (वाश्राः) शब्दकारी होते हैं । वे ही (स्नुना) शिखर अर्थात् शरीर के आरोहरूप सीढ़ी से (दिवः+अधि) शिर के ऊपर (उदीरते) चढ़ते हैं ॥७ ॥

    भावार्थ

    इसका आशय यह है कि प्राणायामकाल में शरीर के भीतर अनेक प्रकार के शब्द होते हैं और वे प्राण धीरे-२ शिर पर चढ़ते हैं । भौतिकार्थ में भी इन मन्त्रों को लगाना चाहिये ॥७ ॥

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    विषय

    मेघ और वृष्टि लाने वाले वायुगण का वर्णन ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार जलवर्षी वायुगण, ( वाश्राः ) शब्द करते ( अरुणप्सवः ) सूर्य की दीप्तियों को मानो खाजाते हैं, उनको अपने में विलीन कर लेते हैं, ( चित्राः ) अद्भुत रूप के होकर ( यामेभिः ) वायु के मार्गों से ( उत् ईरते ) ऊपर उठकर आकाश से जाते हैं वे ( षणुना अधि दिवः ) पर्वत शिखर के साथ २ आकाश में चले जाते हैं उसी प्रकार ( त्ये मरुतः ) वे विद्वान् और वीर मनुष्य भी ( अरुणप्सवः ) कान्तिदायक तेजोवर्धक पदार्थ का भोजन करने वाले हों, वे ( चित्राः ) अद्भुत कर्म करने वाले ( यामेभिः ) रथों से वा उत्तम नियम व्यवस्थाओं से ( उत् ईरते ) उठें, उन्नति करें, शत्रु पर जा चढ़ें। वे ( वाश्राः ) उपदेश और गर्जन करते हुए ( स्नुना ) उपभोग्य ऐश्वर्य के साथ ही ( दिवः अधि ) भूमि पर अधिकार करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पुनर्वत्सः काण्व ऋषिः॥ मरुतो देवताः॥ छन्दः—१, ३—५, ७—१३, १७—१९, २१, २८, ३०—३२, ३४ गायत्री । २, ६, १४, १६, २०,२२—२७, ३५, ३६ निचृद् गायत्री। १५ पादनिचृद् गायत्री। २९, ३३ आर्षी विराड् गायत्री षट्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And those ardent red wonderful stormy troops of heroes fly by their chariots roaring over mountain tops and over and across the skies.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    यज्ञात क्षात्रधर्मप्रधान योद्ध्यांच्या रक्तवर्णाचे वर्णन केलेले आहे. ते देदीप्यमान सुंदर वर्णयुक्त योद्धे यानांद्वारे अंतरिक्षात विहार करतात. ॥७॥

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