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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 8
    ऋषिः - पुनर्वत्सः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    सृ॒जन्ति॑ र॒श्मिमोज॑सा॒ पन्थां॒ सूर्या॑य॒ यात॑वे । ते भा॒नुभि॒र्वि त॑स्थिरे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सृ॒जन्ति॑ । र॒श्मिम् । ओज॑सा । पन्था॑म् । सूर्या॑य । यात॑वे । ते । भा॒नुऽभिः॑ । वि । त॒स्थि॒रे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सृजन्ति रश्मिमोजसा पन्थां सूर्याय यातवे । ते भानुभिर्वि तस्थिरे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सृजन्ति । रश्मिम् । ओजसा । पन्थाम् । सूर्याय । यातवे । ते । भानुऽभिः । वि । तस्थिरे ॥ ८.७.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 8
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (2)

    विषयः

    अथ सम्राजो महत्त्वं कथ्यते।

    पदार्थः

    (ते) ते योधाः (सूर्याय, यातवे) सूर्यसदृशसम्राजो गमनाय (ओजसा) स्वपराक्रमेण (रश्मिम्, पन्थाम्) सप्रकाशं मार्गम् (सृजन्ति) निर्मान्ति (भानुभिः) स्वतेजोभिः (वितस्थिरे) अधिष्ठिताः ॥८॥

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    विषयः

    प्राणायामफलमाह ।

    पदार्थः

    ये आभ्यन्तरप्राणाः । सूर्याय=सूर्य्यस्य=सूर्य्यदैवतस्य चक्षुषः । यातवे=यातुम्=गन्तुम् । ओजसा=बलेन । रश्मिम्=ज्योतिः । पन्थाम्=गतिञ्च । सृजन्ति=उत्पादयन्ति । ते=मरुतः । भानुभिः=प्रकाशैः दीप्तिभिः । वितस्थिरे=विराजन्ते ॥८ ॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    अब सम्राट् का महत्त्व कथन करते हैं।

    पदार्थ

    (ते) वे योद्धा लोग (सूर्याय, यातवे) सूर्यसदृश सम्राट् के जाने के लिये (ओजसा) अपने पराक्रम से (रश्मिम्, पन्थाम्) प्रकाशयुक्त मार्ग को (सृजन्ति) बना देते हैं (भानुभिः) और अपने तेजों से (वितस्थिरे) अधिष्ठाता बन जाते हैं ॥८॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार सूर्य में प्रभामण्डल पड़ता है अर्थात् उसकी रश्मियें प्रभा से सूर्य के मुख को ढापे रहती हैं, इसी प्रकार जिस सम्राट् के स्वरूप को उसके सैनिकों का तेज देदीप्यमान हुआ आच्छादित करता है, वही सम्राट् प्रशंसनीय होता है ॥८॥

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    विषय

    प्राणायाम का फल कहते हैं ।

    पदार्थ

    जो मरुत् अर्थात् आभ्यन्तर प्राण (सूर्य्याय) सूर्य्यदैवत नयन के स्वविषय में (यातवे) चलने के लिये (ओजसा) बलपूर्वक (रश्मिम्) ज्योति तथा (पन्थाम्) गति (सृजन्ति) पैदा करते हैं (ते) वे (भानुभिः) दीप्ति के साथ (वि+तस्थिरे) विराजमान हैं ॥८ ॥

    भावार्थ

    प्राणायाम करने से प्रत्येक इन्द्रिय में स्व-स्व प्रकाश की वृद्धि होती है । नयन यहाँ उपलक्षणमात्र है । प्राण स्वयं प्रकाशवान् वस्तु हैं, उनमें अधिक बल है, जैसे बाह्य वायु में देखते हैं । सूर्य=ऐसे-२ स्थल में सूर्य्य शब्द से नयन का ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि प्राणायाम का विषय है, इस शरीर में मानो, नयन सूर्य्य है, यदि सूर्य्य न हो तो नेत्र व्यर्थ हो जाय, इत्यादि अर्थ पर यहाँ ध्यान देना चाहिये ॥८ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    By their might and lustre they carve bright paths for the radiations of vital energies of the sun and stand guard all over the places by their strength and the beams of light.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या प्रकारे सूर्यात प्रभामंडल असते. अर्थात त्याच्या रश्मी प्रभेने सूर्याचे मुख झाकलेले असते. त्याचप्रकारे ज्या सम्राटाच्या स्वरूपाला त्यांच्या सैनिकांचे तेज देदीप्यमान बनून आच्छादित करते तोच सम्राट प्रशंसनीय असतो. ॥८॥

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