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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 73 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 73/ मन्त्र 10
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    इ॒हा ग॑तं वृषण्वसू शृणु॒तं म॑ इ॒मं हव॑म् । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒ह । आ । ग॒त॒म् । वृ॒ष॒ण्ऽव॒सू॒ इति॑ वृषण्ऽवसू । शृ॒णु॒तम् । मे॒ । इ॒मम् । हव॑म् । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इहा गतं वृषण्वसू शृणुतं म इमं हवम् । अन्ति षद्भूतु वामव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इह । आ । गतम् । वृषण्ऽवसू इति वृषण्ऽवसू । शृणुतम् । मे । इमम् । हवम् । अन्ति । सत् । भूतु । वाम् । अवः ॥ ८.७३.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 73; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O harbingers of the showers of wealth, honour and excellence, pray come here and listen to my call and adoration. Let your protections and exhortations be with us at the closest in the heart.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजा व राजपुरुषांनी प्रार्थी प्रजेचे दु:ख दूर करण्यासाठी त्यांच्याशी घनिष्ठ संबंध स्थापन करावा. ॥१०॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    राजकर्त्तव्यमाह ।

    पदार्थः

    हे वृषण्वसू ! वृषाणि=वर्षितॄणि=वर्षाकारीणि वसूनि धनानि ययोस्तौ वृषण्वसू=बहुधनदौ ! युवाम् । इह=मम स्थाने । आगतं=आगच्छतम् । आगत्य च मे मम । इमं हवमाह्वानं प्रार्थनाम् । शृणुतम् । अति० ॥१० ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब राजा के कर्त्तव्य को कहते हैं ।

    पदार्थ

    (वृषण्वसू) हे बहुधनदाता राजा और अमात्य ! आप दोनों (इह) इस मेरे स्थान में (आगतम्) आवें और आकर (मे) मेरे (इमम्+हवम्) इस आह्वान=प्रार्थना को (शृणुतम्) सुनें । अन्ति० ॥१० ॥

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    विषय

    स्त्रीपुरुषों को उत्तम उपदेश।

    भावार्थ

    हे (वृषण्वसू) बलयुक्त प्राणापान वाले जनो ! (इह आगतम्) यहां आवो। ( मे इमं हवं शृणुतम् ) मेरे इस आमन्त्रण को श्रवण करो। ( वाम् अवः अन्ति सत् भूतु ) उत्तम ज्ञान आप लोगों का हमारे समीप हो। इत्येकोनविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, २, ४, ५, ७, ९–११, १६—१८ गायत्री। ३, ८, १२—१५ निचृद गायत्री। ६ विराड गायत्री॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    वृषण्वसू [अश्विना]

    पदार्थ

    [१] हे (वृषण्वसू) = सुखसेचक स्वास्थ्य आदि धनों को प्राप्त करानेवाले प्राणापानो! आप (इह आगतम्) = मेरे इस जीवन में प्राप्त होओ। मैं इस जीवन में आपकी साधना करनेवाला बनकर उत्तम स्वास्थ्यधन को प्राप्त करूँ। [२] हे प्राणापानो! (मे) = मेरे लिए (इमं) = इस (हवं शृणुतम्) = प्रभु की पुकार को सुनो। [३] (वाम्) = आपका (अवः) = रक्षण (सत्) = उत्तम है। यह (अन्ति भूतु) = मुझे समीपता से प्राप्त हो।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना [१] स्वास्थ्य आदि धनों को प्राप्त कराके सुखों का सेचन करती है। [२] हमें प्रभु की पुकार को सुनने के योग्य बनाती है।

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