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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 73 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 73/ मन्त्र 11
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    किमि॒दं वां॑ पुराण॒वज्जर॑तोरिव शस्यते । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    किम् । इ॒दम् । वा॒म् । पु॒रा॒ण॒ऽवत् । जर॑तोःऽइव । श॒स्य॒ते॒ । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    किमिदं वां पुराणवज्जरतोरिव शस्यते । अन्ति षद्भूतु वामव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    किम् । इदम् । वाम् । पुराणऽवत् । जरतोःऽइव । शस्यते । अन्ति । सत् । भूतु । वाम् । अवः ॥ ८.७३.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 73; मन्त्र » 11
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    What sort of talk is this going round about you in the old outmoded style that you are nothing more than growing in years? O youthful harbingers of new light and freshness, let your protections and inspirations be with us at the closest and newest.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाने आळशी राहता कामा नये. त्याने प्रजेच्या कार्यात सदैव जागृत असावे. ॥११॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमर्थमाह ।

    पदार्थः

    सदाऽनलसेन नृपेण भाव्यं प्रजाकार्य्येषु सदा जागरितव्यमिति शिक्षते । यथा हे अश्विनौ ! वां=युवयोर्विषये । पुराणवत्=पुराणयोः । जरतोः=जीर्णयोः पुरषयोरिव । किमिदमयोग्यं वस्तु शस्यते प्रजाभिरुच्यते । यथा जीर्णौ वृद्धौ पुरुषौ पुनः पुनराहूतावपि चलनासामर्थ्यान्न कुत्रापि शीघ्रं गच्छतस्तथैव युवयोर्विषये किम्वदन्ती वर्तते इति महदाश्चर्य्यम् । अन्ति० ॥११ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी अर्थ को कहते हैं ।

    पदार्थ

    राजा को सदा निरालस्य होना चाहिये । वे प्रजाकार्य्यों में सदा जागरित होवें, यह शिक्षा इससे दी जाती है । यथा−हे राजा और अमात्य ! (वाम्) आप दोनों के विषय में (पुराणवत्) अतिवृद्ध (जरतोः+इव) जराजीर्ण दो पुरुषों के समान (इदम्, किम्) यह क्या अयोग्य वस्तु (शस्यते) कही जाती है । जैसे अतिवृद्ध जीर्ण पुरुष वारंवार आहूत होने पर भी कहीं नहीं जाते, तद्वत् आप दोनों के सम्बन्ध में यह क्या किम्वदन्ती है । इसको दूर कीजिये ॥११ ॥

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    विषय

    स्त्रीपुरुषों को उत्तम उपदेश।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! ( इदं वां पुराणवत् किम् ) यह आप दोनों का पुरातन, सदातन का वेद-ज्ञान किस प्रकार का है ? जो ( जरतोः इव ) वृद्ध वा उपदेष्टा जनों के वचन के समान उपदेश किया जाता है ( अव: सत् वाम् अन्ति भूतु ) आप लोगों के उत्तम ज्ञान सदा समीप रहे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, २, ४, ५, ७, ९–११, १६—१८ गायत्री। ३, ८, १२—१५ निचृद गायत्री। ६ विराड गायत्री॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'प्राणापान का विलक्षण रक्षण'

    पदार्थ

    [१] हे प्राणापानो! (वाम्) = आपका (इदं) = यह रक्षण (पुराणवत्) = उस पुराणपुरुष के रक्षण की तरह (किम्) = क्या ही विलक्षण है? आपका यह रक्षण उसी प्रकार (शस्यते) = स्तुति किया जाता है, (इव) = जैसे (जरतो:) = उस वृद्ध-पुराणपुरुष प्रभु का रक्षण प्रशंसित होता है। प्रभु का रक्षण अद्भुत है। प्राणापानों का रक्षण भी कम अद्भुत नहीं । वस्तुतः प्रभु प्राणापान के द्वारा ही तो हमारा रक्षण करते हैं। [२] (वाम् अवः) = आपका रक्षण (सत्) = उत्तम है। वह हमें (अन्ति भूतु) = समीपता से प्राप्त हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणापान का रक्षण प्रभु के रक्षण की तरह अद्भुत है। यह रक्षण हमें प्राप्त हो ।

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