ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 73/ मन्त्र 14
आ नो॒ गव्ये॑भि॒रश्व्यै॑: स॒हस्रै॒रुप॑ गच्छतम् । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । गव्ये॑भिः । अश्व्यैः॑ । स॒हस्रैः॑ । उप॑ । ग॒च्छ॒त॒म् । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो गव्येभिरश्व्यै: सहस्रैरुप गच्छतम् । अन्ति षद्भूतु वामव: ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । गव्येभिः । अश्व्यैः । सहस्रैः । उप । गच्छतम् । अन्ति । सत् । भूतु । वाम् । अवः ॥ ८.७३.१४
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 73; मन्त्र » 14
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Come with a thousandfold wealth of cows, lands and cultures and horses and achievements of progressive victories. Let your protections and promotions be ever closest with us.
मराठी (1)
भावार्थ
राजाने प्रजेचे हित करण्यात धन खर्च करावे व देशाला धनधान्याने समृद्ध करावे. प्रजा कधी दुर्भिक्षाने त्रस्त होता कामा नये. ॥१४॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे राजामात्यौ ! सहस्रैरनन्तैः । गव्येभिः=गोसमूहैः । अश्व्यैः=अश्वसमूहैर्धनैः । नोऽस्मान् । आसमन्तात् । उप+आगच्छतं=समीपमागच्छतम् । राजा बहूनि धनानि प्रजाहितेषु कार्य्येषु नियोजयेदिति शिक्षते ॥१४ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
हे राजा और अमात्य ! आप दोनों (सहस्रः) बहुत (गव्येभिः) गो-समूहों और (अश्व्यैः) अश्व-समूहों के साथ अर्थात् हम लोगों को देने के लिये बहुत सी गौवों को और घोड़ों को लेकर (नः) हमारे निकट (उपागच्छतम्) आवें । राजा को उचित है कि वह प्रजाहित-साधक कार्य्यों में बहुत धन लगावे ॥१४ ॥
भावार्थ
राजा देश को धन-धान्य से पूर्ण रक्खे, प्रजा में कभी दुर्भिक्षादि पीड़ा न हो ॥१४ ॥
विषय
स्त्रीपुरुषों को उत्तम उपदेश।
भावार्थ
आप लोग ( गव्येभिः अश्व्येभिः सहस्रैः ) हजारों गौओं और हजारों अश्वों से ( नः आ उप गच्छतम् ) हमें प्राप्त होवो। ( वाम् सद् अवः अन्ति भूतु ) आप दोनों का उत्तम रक्षण सामर्थ्य सदा हमें प्राप्त होवे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, २, ४, ५, ७, ९–११, १६—१८ गायत्री। ३, ८, १२—१५ निचृद गायत्री। ६ विराड गायत्री॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
उत्तम ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियाँ
पदार्थ
[१] हे प्राणापानो! आप (नः) = हमें (सहस्त्रैः) = [सहस्] आनन्दयुक्त - विकसित शक्तियोंवाले (गव्येभिः) = ज्ञानेन्द्रिय समूहों से तथा (अश्व्यैः) = कर्मेन्द्रिय समूहों से (उप आगच्छतम्) = समीपता से प्राप्त होओ। प्राणसाधना के द्वारा ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियाँ विकसित शक्तिवाली बनें। [२] हे प्राणापानो! (वाम् अवः) = आपका रक्षण (सत्) = उत्तम है। यह रक्षण हमें (अन्ति भूतु) = समीपता से प्राप्त हो।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणसाधना के द्वारा इन्द्रियों के दोष दूर होते हैं और ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियाँ विकसित शक्तिवाली बनती हैं।
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