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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 73 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 73/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    नि॒मिष॑श्चि॒ज्जवी॑यसा॒ रथे॒ना या॑तमश्विना । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नि॒मिषः॑ । चि॒त् । जवी॑यसा । रथे॑न । आ । या॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    निमिषश्चिज्जवीयसा रथेना यातमश्विना । अन्ति षद्भूतु वामव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    निमिषः । चित् । जवीयसा । रथेन । आ । यातम् । अश्विना । अन्ति । सत् । भूतु । वाम् । अवः ॥ ८.७३.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 73; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Within a wink of the eye, come by the chariot of instant speed. Let your protections be with us at the closest.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजा व त्याच्या अमात्यांनी प्रजारक्षणासाठी सदैव तयार राहावे. ॥२॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमर्थमाह ।

    पदार्थः

    हे अश्विना=अश्विनौ प्रशस्ताश्वयुक्तौ ! निमिषश्चिद्= निमेषादपि क्षणादपि । ऋतायते जनाय । जवीयसा= अतिशयवेगवता । रथेन । युवाम् । आयातं=आगच्छतम् । अन्तिप्रभृति गतम् ॥२ ॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी अर्थ को कहते हैं ।

    पदार्थ

    (अश्विना) हे प्रशस्ताश्वयुक्त राजा और मन्त्री ! (निमेषः+चित्) क्षणमात्र में आप सत्याचारी पुरुष के लिये (जवीयसा+रथेन) अतिशय वेगवान् रथ के द्वारा (आ+यातम्) आइये । (अन्ति) अन्ति इत्यादि का अर्थ प्रथम मन्त्र में देखो ॥२ ॥

    भावार्थ

    इसका स्पष्ट है, अतः लिखा नहीं गया ॥२ ॥

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    विषय

    स्त्रीपुरुषों को उत्तम उपदेश।

    भावार्थ

    ( नि-मिषः चित् जवीयसा ) पलक की झपक से भी अधिक वेग वाले ( रथेन ) रथ से हे (अश्विना) अश्व चालन में चतुर जनो ! आप लोग ( आ यातम् ) आवो। ( वाम् अवः सत् अन्तिभूतु ) आप दोनों की सत् रक्षा हमें सदा प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, २, ४, ५, ७, ९–११, १६—१८ गायत्री। ३, ८, १२—१५ निचृद गायत्री। ६ विराड गायत्री॥ अष्टादशर्चं सूक्तम्॥

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