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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 84 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 84/ मन्त्र 6
    ऋषिः - उशना काव्यः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अधा॒ त्वं हि न॒स्करो॒ विश्वा॑ अ॒स्मभ्यं॑ सुक्षि॒तीः । वाज॑द्रविणसो॒ गिर॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑ । त्वम् । हि । नः॒ । करः॑ । विश्वाः॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । सु॒ऽक्षि॒तीः । वाज॑ऽद्रविणसः । गिरः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधा त्वं हि नस्करो विश्वा अस्मभ्यं सुक्षितीः । वाजद्रविणसो गिर: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध । त्वम् । हि । नः । करः । विश्वाः । अस्मभ्यम् । सुऽक्षितीः । वाजऽद्रविणसः । गिरः ॥ ८.८४.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 84; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And you alone will provide happy homes and peaceful establishment for all our people and bless us with vitality, power, wealth and victory in response to our prayer.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वानांनी साधकांना असा उपदेश करावा, की ज्यानुसार जीवन यज्ञ करणाऱ्या उपासकाला आपल्या निवासाची सर्व साधने उपलब्ध व्हावीत. पुत्रपौत्र इत्यादी प्रजा व्हावी व विज्ञान इत्यादी ऐश्वर्यही प्राप्त व्हावे. ॥६॥

    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (अधा) इसके बाद (त्वं हि) निश्चय ही आप विद्वान् (अस्मभ्यम्) हमारे हेतु (विश्वाः) सब की सब वे (गिरः) वाणियाँ अर्थात् उपदेश (करः) कीजिये कि जो (सुक्षितीः) हमें सुखदायी बसने के साधन दें अथवा मानव दें और जो (वाजद्रविणसः) ज्ञान, वेग व अन्य सुखदाता व्यवहार रूप समृद्धि व धन का स्रोत सिद्ध हो॥६॥

    भावार्थ

    विद्वानों को साधकों को ऐसे उपदेश देने चाहिये कि जिनसे जीवन यज्ञ करने वाले उपासक को अपने बसने के सभी साधन मिलें; पुत्रपौत्रादि प्राप्त हों और विज्ञान आदि ऐश्वर्य भी मिलें॥६॥

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