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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 9/ मन्त्र 19
    ऋषिः - शशकर्णः काण्वः देवता - अश्विनौ छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    यदापी॑तासो अं॒शवो॒ गावो॒ न दु॒ह्र ऊध॑भिः । यद्वा॒ वाणी॒रनू॑षत॒ प्र दे॑व॒यन्तो॑ अ॒श्विना॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । आऽपी॑तासः । अं॒शवः॑ । गावः॑ । न । दु॒ह्रे । ऊध॑ऽभिः । यत् । वा॒ । वाणीः॑ । अनू॑षत । प्र । दे॒व॒ऽयन्तः॑ । अ॒श्विना॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदापीतासो अंशवो गावो न दुह्र ऊधभिः । यद्वा वाणीरनूषत प्र देवयन्तो अश्विना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । आऽपीतासः । अंशवः । गावः । न । दुह्रे । ऊधऽभिः । यत् । वा । वाणीः । अनूषत । प्र । देवऽयन्तः । अश्विना ॥ ८.९.१९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 19
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 33; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (यत्) यदा (आपीतासः, अंशवः) कृतपानाः सोमरसाः (गावः, ऊधभिः, न) उधोभिः पय इव (दुह्रे) उत्साहं दुहते (यद्वा) अथवा (वाणीः) वेदवाचः (अनूषत) स्तुवन्ति तदा (देवयन्तः) देवानिच्छन्तः (अश्विना) अश्विनौ (प्र) प्ररक्षतः ॥१९॥

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    विषयः

    पुनः प्रभातवर्णनमाह ।

    पदार्थः

    हे मनुष्याः । यदा=यस्मिन् प्रभातकाले । ऊधभिः । दुग्धपूर्णैः स्तनैर्युक्ताः । गावो न=धेनव इव । आपीतासः आसमन्तात् पीतवर्णाः । अंशवः=सोमलतायज्ञार्थम् । दुह्रे=दुहते । यद्वा । यस्मिन् काले । देवयन्तः=देवं परमात्मानं कामयमाना उपासकाः । वाणीः=स्वस्वभाषाः स्तुत्यर्थम् । अनूषत=प्रयुञ्जन्ति । तदैव । अश्विना=अश्विनौ बुद्ध्वा इतस्ततो रक्षार्थं गच्छत इति तयोर्महतीं कृपा व्यज्यते ॥१९ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (यत्) जब (आपीतासः) पिये हुए (अंशवः) सोमरस (गावः, ऊधभिः, न) गौयें जैसे स्तनमण्डल से दूध को, उसी प्रकार (दुहे) उत्साह को दुहते हैं (यद्वा) अथवा (वाणीः) वेदवाणियें (अनूषत) उनकी स्तुति करती हैं, तब (देवयन्तः) देवों को चाहनेवाले (अश्विना) सेनापति सभाध्यक्ष (प्र) प्रजा को सुरक्षित करते हैं ॥१९॥

    भावार्थ

    जब योद्धा लोग सोमरसपान करके आह्लादित होते अथवा वेदवाणियें उनके शूरवीरतादि गुणों की प्रशंसा करतीं हैं, तब वे योद्धा लोग उस समय गौओं के दूध-समान सब अर्थियों के अर्थ पूर्ण करने में समर्थ होते हैं और इसी अवस्था में सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्ष उनको सुरक्षित रखते हैं अर्थात् उत्साहित योद्धा लोग गौओं के दूधसमान बलप्रद होते और उन्हीं को सेनाध्यक्ष सुरक्षित रखकर अपनी विजय से उत्साहित होता है ॥१९॥

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    विषय

    पुनः प्रभातवर्णन कहते हैं ।

    पदार्थ

    हे मनुष्यों ! (यदा) जिस प्रभातकाल में (ऊधभिः) दुग्धपरिपूर्ण स्तनों से युक्त (गावः+न) गौओं के समान (आपीतासः) सर्वथा पीतवर्ण (अंशवः) सोमलताएँ (दुह्रे) यज्ञार्थ दुही जाती हैं (यद्वा) यद्वा (देवयन्तः) ईश्वरोपासक जन (वाणीः) स्वस्व भाषाओं को स्तुतियों में (अनूषत) लगाते हैं, उसी प्रभातसमय (अश्विना) दोनों राजा और अमात्यवर्ग जगकर इतस्ततः जाते हैं, यह उनकी महती कृपा है ॥१९ ॥

    भावार्थ

    प्रातःकाल ही यज्ञ कर्त्तव्य हैं, राजा भी प्रातः ही उठकर स्वकार्य में अपने को लगावे ॥१९ ॥

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    विषय

    शिक्षा, आतिथ्य और ज्ञानप्राप्ति सम्बन्धी अनेक उपदेश ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( गावः ऊधभिः दुहे ) गौवें स्तन-मण्डलों से दूध देती हैं उसी प्रकार ( यत् ) जब ( आपीतासः ) ईषत् पिंगल वर्ण के, वा ज्ञान को सब प्रकार से पान किये हुए प्रदान करते और जब ( देवयन्तः ) देव, प्रभु की कामना करते हुए ( प्र अनूषत ) वाणियों का उच्चारण करती हैं उस समय हे (अश्विना) जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषो ! आप दोनों भी उसका उत्तम लाभ लो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शशकर्ण: काण्व ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१, ४, ६ बृहती। १४, १५ निचृद् बृहती। २, २० गायत्री। ३, २१ निचृद् गायत्री। ११ त्रिपाद् विराड् गायत्री। ५ उष्णिक् ककुष् । ७, ८, १७, १९ अनुष्टुप् ९ पाद—निचृदनुष्टुप्। १३ निचृदनुष्टुप्। १६ आर्ची अनुष्टुप्। १८ वराडनुष्टुप् । १० आर्षी निचृत् पंक्तिः। १२ जगती॥ एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    सोमरक्षण व ज्ञानवाणियों का उच्चारण

    पदार्थ

    [१] (यद्) = जब (आपीतासः) = शरीर में समन्तात् पिये गये (अंशवः) = सोमकण, (ऊधभिः गावः न) = अपने ऊधसों से गौवों की तरह (दुह्रे) = ज्ञान दुग्ध का हमारे अन्दर दोहन करते हैं। सोमरक्षण से ही बुद्धि की तीव्रता होकर, ज्ञान की वृद्धि होती है। [२] (यद् वा) = और जब (अश्विना) = प्राणापानों के द्वारा [भ्याम् आ] (देवयन्तः) = दिव्यगुणों की कामनावाले लोग (वाणी:) = इन ज्ञान की वाणियों का (प्र अनूषत) = प्रकर्षेण उच्चारण करते हैं। तभी गत मन्त्र के अनुसार यह प्राणापान का रथ उस मार्ग पर चलता है, जो मनुष्यों का रक्षण करनेवाला होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना से सोमरक्षण होकर बुद्धि की तीव्रता प्राप्त होती है। उसी समय ज्ञान की वाणियों का उच्चारण होता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    When the stout stalks of lotus receive their drink of green vitality from the sun as cows draw and receive their milk with the udders from nature, and just when the stalks yield pranic energy as cows yield milk, and when the voices of humanity rise in adoration of the Ashvins in prayer.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा योद्धे सोमरसाचे पान करून आल्हादित होतात. अथवा वेदवाणी त्यांच्या शूरवीरता इत्यादी गुणांची प्रशंसा करते तेव्हा ते योद्धे त्यावेळी गायीच्या दुधाप्रमाणे सर्व अर्थीचा अर्थ पूर्ण करण्यासाठी समर्थ होतात व याच अवस्थेत सभाध्यक्ष व सेनाध्यक्ष त्यांना सुरक्षित ठेवतात. अर्थात उत्साहित योद्धे गायीच्या दुधाप्रमाणे बलवान असतात व त्यानांच सेनाध्यक्ष सुरक्षित ठेवून आपल्या विजयाने उत्साहित होतो. ॥१९॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Night time security patrolling

    Word Meaning

    Night time security patrolling

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