ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 90/ मन्त्र 6
तमु॑ त्वा नू॒नम॑सुर॒ प्रचे॑तसं॒ राधो॑ भा॒गमि॑वेमहे । म॒हीव॒ कृत्ति॑: शर॒णा त॑ इन्द्र॒ प्र ते॑ सु॒म्ना नो॑ अश्नवन् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । नू॒नम् । अ॒सु॒र॒ । प्रऽचे॑तसम् । राधः॑ । भा॒गम्ऽइ॑व । ई॒म॒हे॒ । म॒हीऽइ॑व । कृत्तिः॑ । श॒र॒णा । ते॒ । इ॒न्द्र॒ । प्र । ते॒ । सु॒म्ना । नः॒ । अ॒श्न॒व॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमु त्वा नूनमसुर प्रचेतसं राधो भागमिवेमहे । महीव कृत्ति: शरणा त इन्द्र प्र ते सुम्ना नो अश्नवन् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । ऊँ इति । त्वा । नूनम् । असुर । प्रऽचेतसम् । राधः । भागम्ऽइव । ईमहे । महीऽइव । कृत्तिः । शरणा । ते । इन्द्र । प्र । ते । सुम्ना । नः । अश्नवत् ॥ ८.९०.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 90; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 13; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord of vibrant energy and power, we look forward to you as our partner, enlightened ruler and master, and competent giver of reward for our action and endeavour. Your very presence is our shelter, a very home like the great mother earth, and we pray we may ever enjoy the favour of your good will and benevolence.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर निश्चयपूर्वक सफलता देणाऱ्या ऐश्वर्याचा धनी आहे. आम्ही कराच्या रूपात त्याच्याकडून ऐश्वर्याची कामना करावी. अर्थात् आपल्या स्वत:ला खऱ्या उत्तराधिकाऱ्याचा पुत्र समजावे व एका उत्तराधिकाऱ्याच्या रूपात ऐश्वर्याची इच्छा करावी. ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (असुर) प्राणवान्! शक्तियुक्त! (तम् उ) उसी (प्रचेतसम्) प्रकृष्ट ज्ञानवान् (त्वा) आप से, (नूनम्) निश्चय ही (राधः) सफलता देने वाले ऐश्वर्य को (भागम् इव) अपने दायभाग तुल्य मान (ईमहे) आपसे माँगते हैं, हे (इन्द्र) इन्द्र (ते) आपकी, (कृत्तिः) कीर्ति (मही) बड़ी (शरणा इव) आश्रय-स्थली के सरीखी है; (ते) आप के (सुम्ना) सुख (नः) हमें (प्र अनश्वन्) प्रकृष्ट रूप में व्याप्त हों॥६॥
भावार्थ
भगवान् निश्चय ही सफलतादाता ऐश्वर्यसम्पन्न है; इस दाय भाग के रूप में उससे ऐश्वर्य की याचना करें अर्थात् स्वयं को उसका सच्चा उत्तराधिकारी पुत्र समझें; और एक उत्तराधिकार के रूप में ऐश्वर्य की इच्छा करें॥६॥ अष्टम मण्डल में नब्बेवाँ सूक्त व तेरहवाँ वर्ग समाप्त॥
विषय
पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन।
भावार्थ
हे ( असुर ) प्राण, जीवन के देने वाले ! हे बलशालिन् ! (प्र-चेतसं ) उत्कृष्ट चित्त वाले ( त्वा ) तुझ से (भागम् इव राधः ईमहे ) अपने पिता से प्राप्तव्य भाग के समान ही हम धन की याचना करते हैं। (ते) तेरा ( कृत्तिः ) श्रमपूर्वक काट कर संग्रह करने योग्य खेती ( ते शरणा ) तेरी शरणदायिनी सम्पदा ( मही इव ) यह बड़ी भारी भूमि है हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! ( ते सुम्ना नः प्राश्नवन् ) तेरे दिये नाना सुख हमें खूब प्राप्त हो। इति त्रयोदशो वर्गः।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नृमेधपुरुमेधावृषी॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१ निचृद् बृहती। ३ विराड् बृहती। ५ पादनिचृद् बृहती। २, ४ पादनिचृत् पंक्तिः। ६ निचृत् पंक्तिः॥ षडृचं सूकम्॥
विषय
प्रभु की शरण-शत्रुओं का महान् छेदन
पदार्थ
[१] हे (असुर) = प्राणशक्ति का संचार करनेवाले प्रभो ! (प्रचेतसम्) = प्रकृष्ट ज्ञानवाले (तं त्वा उ) = उन आपको ही (भागं इव) = जैसे पुत्र पिता से भजनीय [अपने भागरूप] धन को माँगता है, उसी प्रकार (नूनम्) = निश्चय से (राधः ईमहे) = कार्यसाधक धन की याचना करते हैं। आपने ही हमारे लिये इन धनों को प्राप्त कराना है। [२] हे (इन्द्र) = शत्रुविद्रावक प्रभो ! (ते) = आपकी (शरणा) = शरणागति (मही कृत्तिः इव) = अतिमहान् शत्रुछेदन के समान है। आपकी शरण में आने पर हमारे सब शत्रुओं का छेदन हो जाता है। इसलिए हम तो यही चाहते हैं कि (ते सुम्ना) = आपके स्तोत्र (नः) = हमें (प्र अश्नवन्) = प्रकर्षेण व्याप्त करनेवाले हों। हम आपका स्तवन करते हुए आपकी शक्ति से शक्तिसम्पन्न होकर सब शत्रुओं का छेदन व विद्रावण करनेवाले बनें।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु से कार्यसाधक धन की याचना करें। प्रभु की शरण हमारे शत्रुओं का छेदन करती है। सो हम सदा प्रभुस्तवन करते हुए प्रभु की शरण में रहने का प्रयत्न करें। 'काम, क्रोध व लोभ' रूप शत्रुओं को दूर करके यह 'आत्रेयी' [अविद्यमानाः त्रयो यस्याः] बनती है। शत्रुओं को दूर [अप] रोकने के कारण [अल] यह 'अपाला' कहलाती है । यही अगले सूक्त की ऋषिका है-
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