ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 93/ मन्त्र 31
उप॑ नो॒ हरि॑भिः सु॒तं या॒हि म॑दानां पते । उप॑ नो॒ हरि॑भिः सु॒तम् ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । नः॒ । हरि॑ऽभिः । सु॒तम् । या॒हि । म॒दा॒ना॒म् । प॒ते॒ । उप॑ । नः॒ । हरि॑ऽभिः । सु॒तम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उप नो हरिभिः सुतं याहि मदानां पते । उप नो हरिभिः सुतम् ॥
स्वर रहित पद पाठउप । नः । हरिऽभिः । सुतम् । याहि । मदानाम् । पते । उप । नः । हरिऽभिः । सुतम् ॥ ८.९३.३१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 93; मन्त्र » 31
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord and protector of the joys of life, come to us to taste the soma of life prepared by us with our mind, imagination and senses in your honour, come to us for the soma distilled by our heart and mind for you.
मराठी (1)
भावार्थ
शुद्ध मनाने साधना करणाऱ्या भक्ताची इन्द्रिये अशा दिव्य शक्ती असतात, की त्या ईश्वराच्या सृष्टीच्या प्रत्येक पदार्थामध्ये दिव्य आनंदाचा अनुभव करवितात. ॥३१॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे (मदानाम्) दिव्य आनन्द के (पते) संरक्षक हमारे हृदय! अथवा मेरे आत्मा! (नः हरिभिः) जीवन निर्वाह करने वाली हमारी शक्तियों द्वारा (सुतम्) निष्पन्न ज्ञानरस को (उप याहि) प्राप्त हो; उस (हरिभिः सुतम्) इन्द्रियों के द्वारा उत्पादित ज्ञानरस का (उप याहि) भोग कर॥३१॥
भावार्थ
शुद्ध हृदय से साधना रत भक्त की इन्द्रियाँ ही ऐसी दिव्य शक्तियाँ हैं कि वे प्रभु की सृष्टि के प्रत्येक पदार्थ में दिव्य आनन्द पाती हैं॥३१॥
विषय
पक्षान्तर में परमेश्वर के गुण वर्णन।
भावार्थ
हे ( मदानां पते ) हर्षजनक और तृपतिजनक, ऐश्वर्यों और अन्नों के पालक स्वामिन् ! तू ( हरिभिः ) विद्वान् प्रजास्थ मनुष्यों के द्वारा ( नः ) हमारे बीच ( सुतं उप याहि ) अभिषेक या ऐश्वर्य पद को प्राप्त हो और ( नः हरिभिः सुतम् उप याहि ) हमारे जनों के साहाय्य से ही उत्तम ऐश्वर्य को प्राप्त कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सुकक्ष ऋषिः॥ १—३३ इन्द्रः। ३४ इन्द्र ऋभवश्च देवताः॥ छन्दः—१, २४, ३३ विराड़ गायत्री। २—४, १०, ११, १३, १५, १६, १८, २१, २३, २७—३१ निचृद् गायत्री। ५—९, १२, १४, १७, २०, २२, २५, २६, ३२, ३४ गायत्री। १९ पादनिचृद् गायत्री॥
विषय
मदानां पति
पदार्थ
[१] हे (मदानां पते) = आनन्द के जनक सोमकणों के रक्षक प्रभो! आप (नः) = हमें (हरिभिः) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वों के हेतु से (सुतम्) = शरीर में उत्पन्न सोम को (उपयाहि) = [अन्तर्भावितण्यर्थ ] समीपता से प्राप्त कराइये। इस सोम के रक्षण से ही सब इन्द्रियाँ सशक्त बनेंगी। [२] हे प्रभो! आप अवश्य ही (नः) = हमें (हरिभिः) = इन्द्रियाश्वों के हेतु से (सुतम्) = इस उत्पन्न सोम को (उप) = समीपता से प्राप्त कराइये।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु की आराधना से सोम का रक्षण होकर हमारी सब इन्द्रियाँ प्रशस्त बनती हैं।
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