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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 94 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 94/ मन्त्र 6
    ऋषिः - बिन्दुः पूतदक्षो वा देवता - मरूतः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    उ॒तो न्व॑स्य॒ जोष॒माँ इन्द्र॑: सु॒तस्य॒ गोम॑तः । प्रा॒तर्होते॑व मत्सति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒तो इति॑ । नु । अ॒स्य॒ । जोष॑म् । आ । इन्द्रः॑ । सु॒तस्य॑ । गोऽम॑तः । प्रा॒तः । होता॑ऽइव । म॒त्स॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतो न्वस्य जोषमाँ इन्द्र: सुतस्य गोमतः । प्रातर्होतेव मत्सति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उतो इति । नु । अस्य । जोषम् । आ । इन्द्रः । सुतस्य । गोऽमतः । प्रातः । होताऽइव । मत्सति ॥ ८.९४.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 94; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 28; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And surely the delight and exhilaration of this soma, Indra, the soul, inspirited with the power of brilliance and awareness, like a yajaka at dawn, experiences, and celebrates the ecstasy in dance and song.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा माणसाला सृष्टीच्या विविध पदार्थांचा बोध होतो व तो ते सस्नेह ग्रहण करतो तेव्हा त्याला एक प्रकारचा अलौकिक आनंद प्राप्त होतो. ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (उतो नु) और निश्चित रूप से ही (अस्य) इन (सुतस्य) सम्पादित (गोमतः) प्रशस्तज्ञानयुक्त व्यवहार-बोध का (जोषम्) प्रीतिपूर्वक सेवन कर (इन्द्रः) आत्मा ( प्रातः होता इव) प्रातःकाल आहुतिदाता के जैसा ही (मत्सति) प्रसन्न हो उठता है॥६॥

    भावार्थ

    जब मानव को सृष्टि के विविध पदार्थों का ज्ञान होता है और वह उसे सस्नेह ग्रहण करता है, तब उसे एक प्रकार का अलौकिक आनन्द मिलता है।॥६॥

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    विषय

    उन के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    ( उतो नु ) और ( अस्य गोमतः सुतस्य ) इस भूमि से युक्त, ऐश्वर्य के साथ ( जोषम् ) प्रेम करके ( इन्द्रः ) सूर्यवत् तेजस्वी पुरुष ( प्रातः ) प्रातःकाल में ( होता इव ) आहुति दाता विद्वान् के समान ( मत्सति ) बड़ा आनन्द अनुभव करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बिन्दुः पूतदक्षो वा ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्दः—१, २, ८ विराड् गायत्री। ३, ५, ७, ९ गायत्री। ४, ६, १०—१२ निचृद् गायत्री॥

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    विषय

    प्रातः होता इव

    पदार्थ

    [१] (उत) = और (उ) = निश्चय से (नु) = अब (इन्द्रः) = एक जितेन्द्रिय पुरुष (अस्य) = इस (गोमतः) = प्रशस्त ज्ञान की वाणियोंवाले (सुतस्य) = सोम के (जोषम्) = प्रीतिपूर्वक सेवन के अनुपात में ही (आमत्सति) = इस प्रकार आनन्दित होता है, (इव) = जैसे (प्रातः होता) = प्रातःकाल होता आनन्द का अनुभव करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ-सोम का रक्षण हमारे जीवन को इस प्रकार आनन्दमय बनाता है जैसे प्रात:काल अग्निहोत्र करनेवाला आनन्दित होता है।

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