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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 101 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 101/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अन्धीगुः श्यावाश्विः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    तं दु॒रोष॑म॒भी नर॒: सोमं॑ वि॒श्वाच्या॑ धि॒या । य॒ज्ञं हि॑न्व॒न्त्यद्रि॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । दु॒रोष॑म् । अ॒भि । नरः॑ । सोम॑म् । वि॒श्वाच्या॑ । धि॒या । य॒ज्ञम् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अद्रि॑ऽभिः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं दुरोषमभी नर: सोमं विश्वाच्या धिया । यज्ञं हिन्वन्त्यद्रिभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । दुरोषम् । अभि । नरः । सोमम् । विश्वाच्या । धिया । यज्ञम् । हिन्वन्ति । अद्रिऽभिः ॥ ९.१०१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 101; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (तम्) पूर्वोक्तम् (दुरोषं) अखण्डनीयं परमात्मानं (नरः) नेतारः (अद्रिभिः) चित्तवृत्तिभिः (अभि हिन्वन्ति) साक्षात्कुर्वन्ति (यज्ञं) यो यज्ञरूपोऽस्ति (सोमं) सर्वोत्पादकश्च तं (विश्वाच्या, धिया) विचित्रबुद्ध्या साक्षात्कुर्वन्ति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (तम्) पूर्वोक्त (दुरोषम्) अखण्डनीय परमात्मा को (नरः) नेता लोग (अद्रिभिः) चित्तवृत्तियों द्वारा (अभिहिन्वन्ति) साक्षात्कार करते हैं, जो परमात्मा (यज्ञम्) यज्ञरूप है और (सोमम्) सर्वोत्पादक है, उसको (विश्वाच्या, धिया) विचित्र बुद्धि से साक्षात्कार करते हैं ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा को वेद में यज्ञ शब्द से कथन किया गया है, जैसा कि “तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे” वर्णन किया है कि सर्वपूज्य परमात्मा से ऋगादि चारों वेद प्रगट हुए, इसी अभिप्राय से यहाँ भी परमात्मा को यज्ञरूप से वर्णन किया है ॥३॥

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    विषय

    आत्मा का शासकवत् प्रतिपादन।

    भावार्थ

    (तम्) उस (दुरोषम्) शत्रुओं के लिये दुःखकारी रोष वाले (सोमं) उत्तम शासक रूप से (विश्वाच्या धिया) सब में स्थित, विश्वजन की वाणी या सत्कर्म से (नरः) नायकजन (अद्रिभिः) आदर सत्कारों से (अभि हिन्वन्ति) बढ़ाते हैं, उसको प्रतिष्ठित करते हैं। (२) इसी प्रकार (नरः) विद्वान् मनुष्य उस आत्मा को (दुरो) जो अग्नि से जल न सके (यज्ञं) और उपासना के योग्य है उसको (विश्वाच्या धिया) विश्व रूप प्रभु से प्राप्त धी, बुद्धि, सत्कर्म और वेदवाणी द्वारा (अभि हिन्वन्ति) उसका प्रतिपादन करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः–१-३ अन्धीगुः श्यावाश्विः। ४—६ ययातिर्नाहुषः। ७-९ नहुषो मानवः। १०-१२ मनुः सांवरणः। १३–१६ प्रजापतिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, ११—१४ निचृदनुष्टुप्। ४, ५, ८, १५, १६ अनुष्टुप्। १० पादनिचृदनुष्टुप्। २ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    दुरोषं सोमं

    पदार्थ

    (नर:) = उन्नतिपथ पर चलनेवाले मनुष्य (तं सोमम्) = उस सोम को (अद्रिभिः) = [adore] उपासनाओं के द्वारा (यज्ञं अभिहिन्वन्ति) = इस जीवन यज्ञ की ओर प्रेरित करते हैं। उपासना के द्वारा सोम सुरक्षित रहता है, वही वस्तुतः जीवन को यज्ञमय बनाता है। उस सोम को ये सुरक्षित करते हैं जो (दुरोषम्) = सब बुराइयों का दहन करनेवाला है। इसलिये इसका रक्षण करते हैं कि (विश्वाच्या धिया) = सम्पूर्ण ज्ञान को प्राप्त करानेवाली [विश्वं ज्ञानं अंचित्या] बुद्धि के हेतु से । सुरक्षित सोम बुद्धि की तीव्रता व सूक्ष्मता का हेतु बनता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - उपासना द्वारा सुरक्षित सोम बुराइयों को दग्ध करके हमें उस तीव्र बुद्धि से प्राप्त कराता है जो सब ज्ञानविज्ञान का ग्रहण करनेवाली होती है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    That blazing unassailable Soma, adorable in yajna, leading lights invoke and impel with universal thought and speech, with controlled mental reflection for self-realisation.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराला वेदात यज्ञ शब्दाने संबोधलेले आहे. जसे -

    टिप्पणी

    ‘‘तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋच: सामानि जज्ञिरे’’ म्हटलेले आहे की सर्व पूज्य परमेश्वराने ऋग् इत्यादी चारही वेद प्रकट केले. याच अभिप्रायाने येथेही परमेश्वराला यज्ञरूपाने वर्णिलेले आहे. ॥३॥

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