ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 101/ मन्त्र 7
ऋषिः - नहुषो मानवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
अ॒यं पू॒षा र॒यिर्भग॒: सोम॑: पुना॒नो अ॑र्षति । पति॒र्विश्व॑स्य॒ भूम॑नो॒ व्य॑ख्य॒द्रोद॑सी उ॒भे ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । पू॒षा । र॒यिः॑ । भगः॑ । सोमः॑ । पु॒ना॒नः । अ॒र्ष॒ति॒ । पतिः॑ । विस्व॑स्य । भूम॑नः । वि । अ॒ख्य॒त् । रोद॑सी॒ इति॑ । उ॒भे इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं पूषा रयिर्भग: सोम: पुनानो अर्षति । पतिर्विश्वस्य भूमनो व्यख्यद्रोदसी उभे ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । पूषा । रयिः । भगः । सोमः । पुनानः । अर्षति । पतिः । विस्वस्य । भूमनः । वि । अख्यत् । रोदसी इति । उभे इति ॥ ९.१०१.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 101; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अयं) अयमुक्तपरमात्मा (पूषा) सर्वपोषकः (भगः) सर्वैश्वर्यदाता (सोमः) सर्वोत्पादकः (पुनानः) सर्वेषां पावयिता (भूमनः, विश्वस्य) महतोऽस्य ब्रह्माण्डस्य (पतिः) स्वाम्यस्ति (रयिः) सम्पूर्णधनस्य हेतुः (उभे, रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (व्यख्यत्) निर्माति परमात्मा स्वप्रभुत्वेन (अर्षति) सर्वत्र विराजते ॥७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अयम्) वह उक्त परमात्मा (पूषा) सबका पोषक है (भगः) ऐश्वर्य्य देनेवाला है (सोमः) सर्वोत्पादक है (पुनानः) सबको पवित्र करनेवाला है, (भूमनः, विश्वस्य) इस बृहद् ब्रह्माण्ड का (पतिः) स्वामी है और (रयिः) सम्पूर्ण धनों का हेतु है (उभे, रोदसी) द्युलोक और पृथिवीलोक को (व्यख्यत्) निर्माण करनेवाला है, उक्तगुणसम्पन्न परमात्मा अपनी विभुता से (अर्षति) सर्वत्र विराजमान हो रहा है ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में द्युलोक और पृथिवीलोक का प्रकाशक परमात्मा को कथन किया है। इससे स्पष्ट सिद्ध है कि सोम शब्द के अर्थ यहाँ सृष्टिकर्ता परमात्मा के हैं, किसी जड़ वस्तु के नहीं ॥७॥
विषय
पूषा प्रभु और पूषा आत्मा।
भावार्थ
(अयम्) यह (पूषा) सर्वपोषक, (रयिः) सब का सर्वस्व धन, (भगः) सब ऐश्वर्यो-सुखों का स्वामी, (पुनानः अर्षति) सब को पवित्र परिष्कृत होकर प्राप्त है। वह (विश्वस्य भूमनः) बड़े भारी विश्व का (पतिः) पालक है। वह (उभे रोदसी वि अख्यत्) दोनों लोकों को प्रकाशित करता है। (२) यह आत्मा देहपोषक होने से पूषा, देहवान् होने से रयि, सुखभोक्ता होने से भग, भूमा आत्मा का पालक, इह, पर दोनो लोकों को प्रकाशित करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः–१-३ अन्धीगुः श्यावाश्विः। ४—६ ययातिर्नाहुषः। ७-९ नहुषो मानवः। १०-१२ मनुः सांवरणः। १३–१६ प्रजापतिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, ११—१४ निचृदनुष्टुप्। ४, ५, ८, १५, १६ अनुष्टुप्। १० पादनिचृदनुष्टुप्। २ निचृद् गायत्री। ३ विराड् गायत्री॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥
विषय
पूषा
पदार्थ
(अयम्) = यह सोम (पूषा) = हमारा पोषण करनेवाला है। (रयिः) = यह वास्तविक ऐश्वर्य है। (भगः) = यह भजनीय-सेवनीय है, सब सौभाग्यों का कारण बनता है । (सोमः) = यह सोम (पुनानः) = पवित्र करता हुआ (अर्षति) = शरीर में गतिवाला होता है। यह सोम (विश्वस्य भूमनः) = सब प्राणियों का (पति:) = रक्षक है । यह (उभे रोदसी) = दोनों द्यावापृथिवी को, मस्तिष्क व शरीर को (व्यख्यद्) = तेज व ज्ञान से प्रकाशित करता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम 'पूषा रयि व भग' है। यह सब का रक्षक तथा 'मस्तिष्क व शरीर' का प्रकाशक है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
It is Pusha, life-sustaining and nourishing protector, wealth and honour of the world, power and the glory, Soma that is pure and purifying, ever going forward with the world. It is the master, sustainer and ruler of the vast expansive universe and illuminates both heaven and earth.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात द्युलोक व पृथ्वी लोकाचा प्रकाशक अशा परमेश्वराचे कथन केलेले आहे. यावरून हे स्पष्ट सिद्ध होते की, सोम शब्दाचा अर्थ येथे सृष्टिकर्त्या परमेश्वराचा आहे. एखाद्या जड वस्तूचा नाही. ॥७॥
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