ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 103/ मन्त्र 6
परि॒ सप्ति॒र्न वा॑ज॒युर्दे॒वो दे॒वेभ्य॑: सु॒तः । व्या॒न॒शिः पव॑मानो॒ वि धा॑वति ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑ । सप्तिः॑ । न । वा॒ज॒ऽयुः । दे॒वः । दे॒वेभ्यः॑ । सु॒तः । वि॒ऽआ॒न॒शिः । पव॑मानः । वि । धा॒व॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
परि सप्तिर्न वाजयुर्देवो देवेभ्य: सुतः । व्यानशिः पवमानो वि धावति ॥
स्वर रहित पद पाठपरि । सप्तिः । न । वाजऽयुः । देवः । देवेभ्यः । सुतः । विऽआनशिः । पवमानः । वि । धावति ॥ ९.१०३.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 103; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 6; मन्त्र » 6
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 6; मन्त्र » 6
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(देवः) दिव्यस्वरूपः परमात्मा (देवेभ्यः, सुतः) विद्वद्भ्यः संस्कृतो यः (वाजयुः) ऐश्वर्यसम्पन्नश्च (व्यानशिः) सर्वव्यापकः (पवमानः) पावयिता स परमात्मा (सप्तिः, न) विद्युदिव (परिधावति) सर्वत्र विराजते ॥६॥
भावार्थः
इति त्र्युत्तरैकशततमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
(देवः) उक्त दिव्यस्वरूप परमात्मा (देवेभ्यः, सुतः) जो विद्वानों के लिये संस्कृत है और (वाजयुः) ऐश्वर्यसम्पन्न (व्यानशिः) सर्वव्यापक (पवमानः) सबको पवित्र करनेवाला वह परमात्मा (सप्तिः) विद्युत् के (न) समान (परिधावति) सर्वत्र विराजमान हो रहा है ॥६॥
भावार्थ
इसमें परमात्मा की व्यापकता को विद्युत् के दृष्टान्त से स्पष्ट किया है ॥६॥ यह १०३ वाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Like universal energy, the glorious Soma, all victorious, brilliant, realised by sages in its original nature and character, pervades vibrant here, there, everywhere and beyond, transcending.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्युतच्या दृष्टान्ताने परमात्म्याच्या व्यापकतेचे स्पष्ट वर्णन केलेले आहे. ॥६॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal