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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 104 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 104/ मन्त्र 5
    ऋषिः - पर्वतनारदौ द्वे शिखण्डिन्यौ वा काश्यप्यावप्सरसौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृदुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    स नो॑ मदानां पत॒ इन्दो॑ दे॒वप्स॑रा असि । सखे॑व॒ सख्ये॑ गातु॒वित्त॑मो भव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । म॒दा॒ना॒म् । प॒ते॒ । इन्दो॒ इति॑ । दे॒वऽप्स॑राः । अ॒सि॒ । सखा॑ऽइव । सख्ये॑ । गा॒तु॒वित्ऽत॑मः । भ॒व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नो मदानां पत इन्दो देवप्सरा असि । सखेव सख्ये गातुवित्तमो भव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । नः । मदानाम् । पते । इन्दो इति । देवऽप्सराः । असि । सखाऽइव । सख्ये । गातुवित्ऽतमः । भव ॥ ९.१०४.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 104; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इन्दो)  हे प्रकाशस्वरूप  परमात्मन् ! (मदानांपते) आनन्दानां स्वामिन् !(सः) प्रसिद्धो भवान् (देवप्सराः) दिव्यरूपः  (असि)  अस्ति  (नः)  अस्मभ्यं  (सखेव, सख्ये) यथा सखा स्वमित्रं (गातुवित्तमः) मार्गं दर्शयति एवं भवानपि  मार्गदर्शकः (भव) भवतु ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (मदानां, पते) आनन्दपते परमात्मन् ! (सः) पूर्वोक्त गुणसम्पन्न आप (देवप्सराः) दिव्यरूप (असि) हो (नः) हमारे लिये (सखेव, सख्ये) जैसे मित्र अपने मित्र के लिये (गातुवित्तमः) मार्ग दिखलाता है, इसी प्रकार आप भी रास्ता दिखलानेवाले (भव) हों ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा सबको सन्मार्ग दिखलानेवाला है और जिस प्रकार मित्र अपने मित्र का हितचिन्तन करता है, इस प्रकार परमात्मा सबका हित चिन्तन करनेवाला है ॥५॥

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    विषय

    मार्गदर्शी ज्ञानी प्रभु है।

    भावार्थ

    हे (मदानां पते) समस्त आनन्दों के पालक (इन्दो) हे तेजस्विन् ! हे रसस्वरूप ! तू (सः नः) वह हमारे में (देवप्सराः असि) देवरूप है। तू (सख्ये सखा इव) मित्र के लिये मित्र के तुल्य (नः गातु-वित्-तमः भव) उत्तम उपदेश, उत्तम भूमि वा आश्रय और उत्तम मार्ग प्राप्त कराने वाला और हमारी (गातु-वित्तमः) वाणी को सब से अधिक जानने वाला तू ही है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पर्वत नारदौ द्वे शिखण्डिन्यौ वा काश्यप्यावप्सरसौ ऋषी॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः–१, ३, ४ उष्णिक्। २, ५, ६ निचृदुष्णिक्॥

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    विषय

    देवप्सराः

    पदार्थ

    हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! (सः) = वह तू (नः) = हमारे लिये, हे (मदानां पते) = सब उल्लासों की रक्षा करनेवाले सोम! (देवप्सराः असि) = देवरूप है। सुरक्षित होने पर हमारे जीवनों को दिव्य गुणोंवाला बनाता है। तेरे रक्षण से हम देवरूप हो जाते हैं । हे सोम ! तू (सख्ये) = मित्र के लिये (सखा इव) = एक मित्र की तरह (गातुवित्तमः भव) = अतिशयेन मार्ग को प्राप्त करानेवाला हो । तेरे रक्षण से तीव्र बुद्धि होकर हम कर्तव्याकर्तव्य विवेक कर सकें। तथा तेरे रक्षण से ही पवित्र हृदय होकर हम अन्तः स्थित प्रभु की प्रेरणा को सुननेवाले बनें ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम 'उल्लास, दिव्यता व मार्गदर्शक ज्ञान' प्राप्त कराता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O spirit of beauty, brightness and bliss, controller, protector and promoter of life’s joys, divine and heavenly indeed is your power and presence. We pray be the guide and pioneer as a friend and spirit of love for friends.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा सर्वांना मार्ग दाखविणारा आहे व ज्या प्रकारे मित्र आपल्या मित्राचे हितचिंतन करतो, त्या प्रकारे परमात्मा सर्वांचे हितचिंतन करणारा आहे. ॥५॥

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