ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 12/ मन्त्र 9
ऋषि: - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ प॑वमान धारय र॒यिं स॒हस्र॑वर्चसम् । अ॒स्मे इ॑न्दो स्वा॒भुव॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । प॒व॒मा॒न॒ । धा॒र॒य॒ । र॒यिम् । स॒हस्र॑ऽवर्चसम् । अ॒स्मे इति॑ । इ॒न्दो॒ इति॑ । सु॒ऽआ॒भुव॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पवमान धारय रयिं सहस्रवर्चसम् । अस्मे इन्दो स्वाभुवम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । पवमान । धारय । रयिम् । सहस्रऽवर्चसम् । अस्मे इति । इन्दो इति । सुऽआभुवम् ॥ ९.१२.९
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 12; मन्त्र » 9
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 39; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 39; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) हे सर्वेषां पावक (इन्दो) परमैश्वर्यशालि परमात्मन् ! (अस्मे) अस्मभ्यं (रयिम्) धनं तथा (सहस्रवर्चसं स्वाभुवम्) अत्यन्तदीप्तिमतो गृहान् (आ धारय) धारयतु ददात्वित्यर्थः ॥९॥ वेदव्याख्यानपुण्येन मोहो मम निवर्त्यताम्। याचेऽहमीशतो ह्येतद्वेदधर्मः प्रवर्तताम् ॥ इति द्वादशं सूक्तमेकोनचत्वारिंशत्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
(पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले (इन्दो) परमैश्वर्यसम्पन्न परमात्मन् ! (अस्मे) आप हमारे लिये (रयिम्) धन को तथा (सहस्रवर्चसं स्वाभुवम्) अत्यन्त दीप्तिवाले गृहों को (आ धारय) धारण कराइये अर्थात् दीजिये ॥९॥
भावार्थ
परमात्मा जिन पुरुषों के कर्मों द्वारा प्रसन्न होता है, उनको अनन्त प्रकार की दीप्तियोंवाले ग्रहों को देता है और नानाविध ऐश्वर्य से उनको सम्पन्न करता है ॥९॥ यह ऋग्वेद के छठे अष्टक में सातवाँ अध्याय और उन्तालीसवाँ वर्ग नवम मण्डल में बारहवाँ सूक्त समाप्त हुआ ॥
English (1)
Meaning
O Soma, pure, purifying and universally flowing, refulgent and glorious, come, bless and bring us wealth, honour and excellence of thousandfold lustre, self-sustaining and abundant.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर ज्या पुरुषांच्या कर्मांद्वारे प्रसन्न होतो त्यांना अनंत प्रकारची दीप्ती असलेली घरे देतो व नाना प्रकारचे ऐश्वर्य देऊन त्यांना संपन्न करतो. ॥९॥
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