ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 14/ मन्त्र 6
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - ककुम्मतीगायत्री
स्वरः - षड्जः
अति॑ श्रि॒ती ति॑र॒श्चता॑ ग॒व्या जि॑गा॒त्यण्व्या॑ । व॒ग्नुमि॑यर्ति॒ यं वि॒दे ॥
स्वर सहित पद पाठअति॑ । श्रि॒ती । ति॒र॒श्चता॑ । ग॒व्या । जि॒गा॒ति॒ । अण्व्या॑ । व॒ग्नुम् । इ॒य॒र्ति॒ । यम् । वि॒दे ॥
स्वर रहित मन्त्र
अति श्रिती तिरश्चता गव्या जिगात्यण्व्या । वग्नुमियर्ति यं विदे ॥
स्वर रहित पद पाठअति । श्रिती । तिरश्चता । गव्या । जिगाति । अण्व्या । वग्नुम् । इयर्ति । यम् । विदे ॥ ९.१४.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 14; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अति श्रिती) अनन्याधारः परमात्मा (अण्व्या) अणुभिः (तिरश्चता) तीक्ष्णाभिः (गव्या) इन्द्रियवृत्तिभिः (जिगाति) प्रकाश्यते (यम्) यम् (वग्नुम्) शब्दप्रमाणं (विदे) जिज्ञासवे (इयर्ति) प्रकटयति अन्यस्मै न ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अति श्रिती) ‘श्रितिमतिकान्तः अतिश्रिती” जो किसी अन्य वस्तु के आश्रित न हो, उसका नाम अतिश्रिती अर्थात् सबका आश्रय परमात्मा (अण्व्या) सूक्ष्म (तिरश्चता) तीक्ष्ण (गव्या) इन्द्रिय की वृत्तियों से (जिगाति) प्रकाश को प्राप्त होता है (यम्) जिसको (वग्नुम्) शब्दप्रमाण (विदे) जिज्ञासु के लिये (इयर्ति) प्रकट करता है ॥६॥
भावार्थ
जब धारणा-ध्यानादि योगाङ्गों से चित्त की वृत्तियें निर्मल होती हैं, तो उक्त परमात्मा को विषय करती हैं। जो पुरुष शब्दप्रमाण पर विश्वास करते हैं, वे साधनसम्पन्न वृत्तियों के द्वारा उसका अनुभव करते हैं, अन्य नहीं ॥६॥
विषय
प्रभु प्राप्ति
पदार्थ
[१] सोमरक्षण से बुद्धि सूक्ष्म बनती है । इस (अण्व्या) = सूक्ष्म बुद्धि के द्वारा (गव्या) = [गव्यानि] वेदवाणी गौ से प्राप्य ज्ञानदुग्धों को (अति श्रिती) = [श्रयणार्थम्] अतिशयेन सेवन करने के लिये (तिरश्चता) = [तिरस् अञ्च् ] तिरोहित रूप से गति करनेवाले, रुधिर में ही व्याप्त होकर गति करते हुए सोम से (जिगाति) = यह गतिमय होता है । सोम को शरीर में ही सुरक्षित करने पर यह सोम रुधिर व्याप्त हुआ-हुआ दिखता नहीं। इस सोम के द्वारा हमें वेदवाणी रूप गौ के ज्ञानदुग्ध का पान करनेवाली सूक्ष्म बुद्धि प्राप्त होती है । [२] इस ज्ञानदुग्ध का पान करनेवाला व्यक्ति (वग्नुम्) = वेदज्ञान देनेवाले उस प्रभु को इयर्ति प्राप्त होता है। उस प्रभु को (यम्) = जिसको (विदे) = जानने के लिये साधन रूप से इस सोम का शरीर में स्थापन हुआ है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से वह सूक्ष्म बुद्धि प्राप्त होती है जो कि हमें वेदज्ञान को प्राप्त कराने में सहायक होती है और हमें प्रभु का साक्षात्कार करानेवाली होती है ।
विषय
उसकी लोकप्रिय प्रकृति।
भावार्थ
वह (अण्व्या) सूक्ष्म या मनुष्यों के हितार्थ (गव्या) वाणी से (श्रिती) आश्रय प्राप्त करने के लिये (तिरश्चता) प्राप्त जनों को भी (अति जिगाति) अपने गुणों से वश कर लेता है और उसको भी वश कर लेता है (यं) जिसके प्रति (विदे) जानने के लिये (वग्नुम् इयर्ति) वचन-उपदेश भी कह देता है। अर्थात् वह सर्वलोकप्रिय हो जाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः-१-३,५,७ गायत्री। ४,८ निचृद् गायत्री। ६ ककुम्मती गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Pure and absolute, free from any mode or medium, it reveals itself by the subtlest and most pointed intelligential awareness of the devotee, and this confirms the truth of the Vedic words of revelation for the seeker of divinity and knowledge.
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा धारण ध्यान इत्यादी योगांनी चित्ताच्या वृत्ती निर्मल होतात तेव्हा परमात्माच लक्ष्य ठरतो. जे पुरुष शब्दप्रमाणावर विश्वास ठेवतात ते साधनसंपन्न वृत्तींद्वारे त्याचा अनुभव घेतात, अन्य नाही. ॥६॥
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