ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 15/ मन्त्र 3
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒ष हि॒तो वि नी॑यते॒ऽन्तः शु॒भ्राव॑ता प॒था । यदी॑ तु॒ञ्जन्ति॒ भूर्ण॑यः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । हि॒तः । वि । नी॒य॒ते॒ । अ॒न्तरिति॑ । शु॒भ्रऽव॑ता । प॒था । यदि॑ । तु॒ञ्जन्ति॑ । भूर्ण॑यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष हितो वि नीयतेऽन्तः शुभ्रावता पथा । यदी तुञ्जन्ति भूर्णयः ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । हितः । वि । नीयते । अन्तरिति । शुभ्रऽवता । पथा । यदि । तुञ्जन्ति । भूर्णयः ॥ ९.१५.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यदि भूर्णयः) यद्युपासकाः (तुञ्जन्ति) तदाज्ञां पालयन्ति तदा (शुभ्रावता) शुभेन (पथा) मार्गेण (एषः हितः) तं हितकरम् (अन्तः विनीयते) अन्तःकरणे सुस्थापयन्ति ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यदि भूर्णयः) यदि उपासक लोग (तुञ्जन्ति) उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, तो (शुभ्रावता) शुभ (पथा) मार्ग द्वारा (एषः हितः) उस हितकारक परमात्मा को (अन्तः विनीयते) अन्तःकरण में स्थिर करते हैं ॥३॥
भावार्थ
जो लोग यम-नियमों का पालन करते हैं, वे अपने अन्तःकरण में परमात्मा का साक्षात्कार करते हैं और परम पद को लाभ करते हैं ॥३॥
विषय
शुभ्र मार्ग से
पदार्थ
[१] (यद् ई) = जब निश्चय से (भूर्णयः) = उत्तम भरण करनेवाले पुरुष (तुञ्जन्ति) = [ To kill ] काम-क्रोध-लोभ आदि शत्रुओं का संहार कर पाते हैं तो (एषः) = यह (अन्तः हितः) = शरीर के अन्दर स्थापित हुआ हुआ (शुभ्रावता पथा) = उत्तम शोभावाले मार्ग से (विनीयते) = लक्ष्य -स्थान की ओर, ब्रह्म की ओर ले जाया जाता है। [२] जब मनुष्य भूर्णि बनता है, स्वार्थ से ऊपर उठकर परार्थ में चलता हुआ सब का भरण करनेवाला बनता है, तो वह लोभ आदि आसुर वृत्तियों को समाप्त कर पाता है। इससे यह सोम का रक्षण करने में समर्थ होता है। रक्षित सोम के द्वारा इसका जीवन मार्ग उत्तम बनता है और यह प्रभु की ओर चलता हुआ अन्ततः प्रभु को प्राप्त करनेवाला बनता है ।
भावार्थ
भावार्थ- स्वार्थ से ऊपर उठकर परार्थ में प्रवृत्त होकर हम काम-क्रोध आदि शत्रुओं को नष्ट करके सोम का रक्षण करें। इससे हम शुभ्र मार्ग का आक्रमण करते हुए प्रभु को प्राप्त करनेवाले होंगे।
विषय
राजा को सत् शिक्षण।
भावार्थ
(एषः) वह (हितः) स्थापित वा कार्य से बद्ध होकर (अन्तः) अन्तःकरण में (शुभ्रवता पथा) शुद्ध भाव से युक्त मार्ग द्वारा (वि नीयते) विशेष रूप से ले जाया जावे और शिक्षित हो (यदि) जब कि (भूर्गयः) पालक पोषक जन (तुञ्जन्ति) उसे शिक्षा दें वा वे दुष्टों का हनन करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३ - ५, ८ निचृद गायत्री। २, ६ गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This divine Spirit is attained and internalised in the core of the heart and soul by the brilliant path of clairvoyance, when the passionate seekers surrender themselves in obedience to it.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक यम नियमांचे पालन करतात ते आपल्या अंत:करणात परमात्मसत्तेचा साक्षात्कार करतात व परम पदाचा लाभ करून घेतात. ॥३॥
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