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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 15 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 15/ मन्त्र 4
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ष शृङ्गा॑णि॒ दोधु॑व॒च्छिशी॑ते यू॒थ्यो॒३॒॑ वृषा॑ । नृ॒म्णा दधा॑न॒ ओज॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । शृङ्गा॑णि । दोधु॑वत् । शिशी॑ते । यू॒थ्यः॑ । वृषा॑ । नृ॒म्णा । दधा॑नः । ओज॑सा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष शृङ्गाणि दोधुवच्छिशीते यूथ्यो३ वृषा । नृम्णा दधान ओजसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । शृङ्गाणि । दोधुवत् । शिशीते । यूथ्यः । वृषा । नृम्णा । दधानः । ओजसा ॥ ९.१५.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 15; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (एषः) उक्त ईश्वरः (शृङ्गाणि) अखिललोकान् (दोधुवत्) चालयति (शिशीते) सर्वत्रगोऽस्ति (यूथ्यः) सर्वपतिः (वृषा) कामनाप्रदः (ओजसा) स्वतेजसा (नृम्णा) कृत्स्नमैश्वर्यं (दधानः) धारयन् तिष्ठति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (एषः) उक्त परमात्मा (शृङ्गाणि) सब ब्रह्माण्डों को (दोधुवत्) गतिशील करता है (शिशीते) सर्वव्यापक है (यूथ्यः) सबका पति है (वृषा) कामनाओं की वृष्टि करनेवाला है (ओजसा) अपने पराक्रम से (नृम्णा) सब ऐश्वर्यों को (दधानः) धारण कर रहा है ॥४॥

    भावार्थ

    वही परमात्मा कोटानुकोटि ब्रह्माण्डों का चलानेवाला है और उसी ने इन ब्रह्माण्डों में विद्युत् आदि शक्तियों को उत्पन्न करके अनेक प्रकार के आकर्षण विकर्षण आदि गुणों को उत्पन्न किया है। एकमात्र उसकी उपासना करने से मनुष्य सद्गति को लाभ कर सकता है ॥४॥

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    विषय

    ऐश्वर्य-शक्ति व उत्साह

    पदार्थ

    [१] जैसे (यूथ्यः) = यूथ का, गोसमूह का रक्षण करनेवाला (वृषा) = बैल (शृंगाणि) = अपने सींगों को (दोधुवत्) = कम्पित करता हुआ (शिशीते) = तीव्र करता है उसी प्रकार यह सोम (यूथ्यः) = कर्मेन्द्रिय ज्ञानेन्द्रिय व प्राण आदि के यूथों को रक्षित करनेवाला है, (वृषा) = उनमें शक्ति का सेचन करनेवाला है । यह अपने श्रृंगाणि रोगकृमि विनाशक शक्तियों को (दोधुवत्) = गतिमय करता है और उन शत्रुनाशक शक्तियों को (शिशीते) = तीव्र करता है । [२] यह (ओजसा) = अपनी ओजस्विता के द्वारा (नृम्णा) = हमारे लिये आवश्यक धनों को [wealth] व शक्ति [strength] व उत्साह [courage] को (दधानः) = धारण करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम के अन्दर रोग व वासना रूप शत्रुओं के नाश का गुण है। यह ओजस्विता के द्वारा ऐश्वर्य-शक्ति व उत्साह को प्राप्त कराता है।

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    विषय

    यूथपति नर वृष के समान सदा सैन्यबल रखने का उपदेश।

    भावार्थ

    (यूथ्यः वृषा) यूथपति नर जिस प्रकार (श्रङ्गाणि दोधुवत् शिशीते) सींगों को कंपाता और तीक्ष्ण किये रखता है उसी प्रकार (एषः) वह (ओजसा) बल पराक्रम से (नृम्णा) नाना धनैश्वर्यों को धारण करता हुआ, (यूथ्यः) अपने यूथ में सब से श्रेष्ठ (वृषा) बलवान् उत्तम प्रबन्ध कर्त्ता, (शृङ्गाणि) शत्रु को हनन करने के साधन, अस्त्र शस्त्रों वा सैन्यों को (दोधुवत्) प्रयोग में लावे और (शिशीते) उनको सदा तीक्ष्ण बनाये रक्खे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३ - ५, ८ निचृद गायत्री। २, ६ गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This Soul, vibrating on top of the highest bounds of the universe, abides in repose in the world of existence, one with all in the multitudinous world, generous and virile, bearing and ruling the entire wealth and powers of the universe by its power and splendour.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा कोटी कोटी ब्रह्मांडाचा स्वामी आहे व त्याने त्या ब्रह्मांडात विद्युत इत्यादी शक्ती उत्पन्न करून अनेक प्रकारचे आकर्षण विकर्षण इत्यादी गुणांना उत्पन्न केलेले आहे. एकमेव त्याची उपासना करण्याने माणूस सद्गतीचा लाभ घेऊ शकतो. ॥४॥

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