ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 15/ मन्त्र 6
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒ष वसू॑नि पिब्द॒ना परु॑षा ययि॒वाँ अति॑ । अव॒ शादे॑षु गच्छति ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । वसू॑नि । पि॒ब्द॒ना । परु॑षा । य॒यि॒ऽवान् । अति॑ । अव॑ । शादे॑षु । ग॒च्छ॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष वसूनि पिब्दना परुषा ययिवाँ अति । अव शादेषु गच्छति ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । वसूनि । पिब्दना । परुषा । ययिऽवान् । अति । अव । शादेषु । गच्छति ॥ ९.१५.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 15; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 6
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 5; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एषः) असौ परमात्मा (वसूनि) ऐश्वर्याणि (पिब्दना) अपहरतः (परुषा) दारुणान् राक्षसान् (अति ययिवान्) अतिक्रम्य (शादेषु) युद्धेषु भक्तान् (अवगच्छति) बहुविधज्ञानादीनि साधनानि प्रदाय रक्षति ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एषः) यह पूर्वोक्त परमात्मा (वसूनि) ऐश्वर्यों को (पिब्दना) छीननेवाले (परुषा) कठोर राक्षसों को (अति ययिवान्) अतिक्रमण करके (शादेषु) युद्धों में भक्तों की (अवगच्छति) अनेक प्रकार से ज्ञानादिकों को देकर रक्षा करता है ॥६॥
भावार्थ
जो पुरुष अपने पवित्र भावों से परमात्मपरायण होते हैं, परमात्मा उनकी अवश्यमेव रक्षा करता है ॥६॥
विषय
वसु प्राप्ति
पदार्थ
[१] (एषः) = यह सोम (परुषा) = अति कठोर [प्रबल] (पिब्दना) = पीड़ित करनेवाले राक्षसी भावों को (अति ययिवान्) = लाँघकर गति करता हुआ, (शादेशु) = [शद् शातने] शत्रुओं का शातन होने पर (वसूनि) = सब वसुओं को निवास के लिये आवश्यक पदार्थों को (अवगच्छति) = अन्दर प्राप्त कराता है [जानता है] । [२] सोमरक्षण से क्रूर आसुरी भाव विनष्ट होते हैं। उत्तम दिव्य भावों का विकास होता है । ये भाव ही जीवन को सुन्दर बनानेवाले वसु हैं। इनकी प्राप्ति होती तभी है जब कि हम काम-क्रोध आदि शत्रुओं को विनष्ट कर पाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण अशुभ भावों को विनष्ट करता है । सब वसुओं को प्राप्त कराता है।
विषय
उसके कर्त्तव्य।
भावार्थ
(एषः) वह (परुषा) कठोर स्वभाव के (पिब्दना) पीड़ित करने योग्य, दुष्ट जनों को (अति ययिवान्) अतिक्रमण करके जाने वाला होकर (शादेषु) शत्रु का नाश करने वाले सैन्यों के आश्रय पर (वसूनि) नाना ऐश्वर्य (अव गच्छति) प्राप्त करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ३ - ५, ८ निचृद गायत्री। २, ६ गायत्री॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
It moves and overcomes hard and rough places of hidden hoarded wealth of negative powers and goes over to protect the powers that observe divine discipline in the battles of life.
मराठी (1)
भावार्थ
जे पुरुष आपल्या पवित्र भावनेने परमात्म परायण असतात, परमात्मा त्यांचे रक्षण करतो. ॥६॥
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