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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 17/ मन्त्र 7
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तमु॑ त्वा वा॒जिनं॒ नरो॑ धी॒भिर्विप्रा॑ अव॒स्यव॑: । मृ॒जन्ति॑ दे॒वता॑तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । वा॒जिन॑म् । नरः॑ । धी॒भिः । विप्राः॑ । अ॒व॒स्यवः॑ । मृ॒जन्ति॑ । दे॒वऽता॑तये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमु त्वा वाजिनं नरो धीभिर्विप्रा अवस्यव: । मृजन्ति देवतातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । ऊँ इति । त्वा । वाजिनम् । नरः । धीभिः । विप्राः । अवस्यवः । मृजन्ति । देवऽतातये ॥ ९.१७.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 17; मन्त्र » 7
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 7
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे परमेश्वर ! (अवस्यवः) रक्षामिच्छवः (विप्राः नरः) विद्वांसो जनाः (देवतातये) यज्ञाय (तम् उ) पूर्वोक्तगुणसम्पन्नम् (वाजिनम्) अन्नाद्यैश्वर्यस्य दातारं (त्वा) भवन्तं (धीभिः) बुद्धिभिः (मृजन्ति) स्वज्ञानविषयं कुर्वन्ति ॥७॥

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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    हे परमेश्वर ! (अवस्यवः) रक्षा चाहनेवाले (विप्राः नरः) विद्वान् लोग (देवतातये) यज्ञ के लिये (तम् उ) पूर्वोक्तगुणविशिष्ट (वाजिनम्) अन्नादि ऐश्वर्य के देनेवाले (त्वा) आपको (धीभिः) अपनी बुद्धियों से (मृजन्ति) बुद्धि की वृत्ति का विषय करते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    याज्ञिक लोग जब ‘यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवम्’ इत्यादि मन्त्रों का पाठ करते हैं, केवल पाठ ही नहीं, किन्तु उसके वाच्यार्थ पर दृष्टि देकर तत्त्व का अनुशीलन करते हैं, तब परमात्मा का साक्षात्कार होता है। इसी अभिप्राय से कहा है कि ‘धीभिः त्वामृजन्ति’ अर्थात् बुद्धि द्वारा तुम्हारा परिशीलन करते हैं ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    That lord of might, all victorious over cosmic dynamics, the leading lights of humanity and vibrant sages in search of peace, protection and advancement discover as pure immaculate universal presence and, by their songs and actions, glorify for attaining the bliss and blessings of divinity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    याज्ञिक लोक जेव्हा ‘यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवम्’ । इत्यादी मंत्रांचा पाठ करतात. केवळ पाठच नव्हे तर त्याच्या वाच्यार्थावर दृष्टी टाकून तत्त्वाचे अनुशीलन करतात तेव्हा परमेश्वराचा साक्षात्कार होतो. याच अभिप्रायाने म्हटलेले आहे की ‘धीभि: त्वामृजन्ति’ अर्थात बुद्धीद्वारे तुमचे परिशीलन करतात. ॥७॥

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