ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 17/ मन्त्र 8
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
मधो॒र्धारा॒मनु॑ क्षर ती॒व्रः स॒धस्थ॒मास॑दः । चारु॑ॠ॒ताय॑ पी॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठमधोः॑ । धारा॑म् । अनु॑ । क्ष॒र॒ । ती॒व्रः । स॒धऽस्थ॑म् । आ । अ॒स॒दः॒ । चारुः॑ । ऋ॒ताय॑ । पी॒तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मधोर्धारामनु क्षर तीव्रः सधस्थमासदः । चारुॠताय पीतये ॥
स्वर रहित पद पाठमधोः । धाराम् । अनु । क्षर । तीव्रः । सधऽस्थम् । आ । असदः । चारुः । ऋताय । पीतये ॥ ९.१७.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 17; मन्त्र » 8
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 8
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 7; मन्त्र » 8
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! भवानस्मिन्मम यज्ञे (मधोः धाराम् अनुक्षर) प्रेमधारां स्यन्दयतु (तीव्रः) यतो भवान् वेगवान् तथा (चारुः) दर्शनीयश्चास्ति (ऋताय पीतये) सत्यप्राप्तये (सधस्थम् आसदः) यज्ञस्थं मां स्वीकरोतु ॥८॥ इति सप्तदशं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! आप हमारे इस यज्ञ में (मधोः धाराम् अनुक्षर) प्रेम की धारा बहाइये (तीव्रः) आप गतिशील हैं और (चारुः) सुन्दर हैं (ऋताय पीतये) सत्य की प्राप्ति के लिये (सधस्थम् आसदः) यज्ञ में स्थित हुए हमको स्वीकार करिये ॥८॥
भावार्थ
जो लोग सत्कर्मों में स्थिर हैं और सत्कर्मों के प्रचार के लिये यज्ञादि कर्म करते हैं, उनके उत्साह को परमात्मा अवश्यमेव बढ़ाता है ॥८॥ यह सत्रहवाँ सूक्त और सातवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
चारु सोम
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू (मधो:) = मधु की (धाराम्) = धारा को (अनुक्षर) = हमारे में अनुकूलता से क्षरित करनेवाला हो । तेरे रक्षण से हमारा जीवन अतिशयेन मधुर बने। [२] (तीव्रः) = अत्यन्त तेजस्वी होता हुआ तू सधस्थम् = प्रभु के साथ सहस्थिति को (आसदः) = प्राप्त कर । प्रभु के साथ एक स्थान में हमें स्थित करनेवाला कर। [३] (चारु:) = सुन्दर जो तू है वह (ऋताय) = ऋत के लिये हो । हमारे जीवन को ऋतवाला बना । (पीतये) = तू हमारे रक्षण के लिये हो । सोम के रक्षण से जीवन अनृत से रहित होकर बड़ा सुन्दर बनता है। इस ऋत के कारण शरीर सुरक्षित रहता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम जीवन को मधुर व ऋतवाला बनाता है। यही जीवन का रक्षक होता है। अगले सूक्त में इस सोम को 'मदेषु सर्वधा असि' इन शब्दों में स्मरण किया है-
विषय
ज्ञान की प्रार्थना।
भावार्थ
हे परमेश्वर ! तू (तीव्रः) तीक्ष्ण तेजस्वी होकर (ऋताय पीतये) सत्य तत्व, ज्ञान के पालन कराने के लिये (चारुः) सर्वव्यापक होकर (सधस्थम्) इस समस्त संसार में (आसदः) व्याप्त होकर, उस में विराजता है, वह तू (मधोः धाराम्) आनन्द की धारा के समान ज्ञान की वाणी को (अनु क्षर) प्रवाहित कर। इति सप्तमो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः ॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ३-८ गायत्री। २ भुरिग्गायत्री ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of bliss and inspiration, release the showers of honey. You are intensely vibrant, bless our hall of yajna, inspire and energise the yajakas. You are glorious and gracious, give us the taste of truth and nectar of divine law beyond satiety.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक सत्कर्मात स्थिर आहेत व सत्कर्माच्या प्रचारासाठी यज्ञ इत्यादी कर्म करतात. परमात्मा त्यांचा उत्साह अवश्य वाढवितो. ॥८॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal