ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 20/ मन्त्र 4
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒भ्य॑र्ष बृ॒हद्यशो॑ म॒घव॑द्भ्यो ध्रु॒वं र॒यिम् । इषं॑ स्तो॒तृभ्य॒ आ भ॑र ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । अ॒र्ष॒ । बृ॒हत् । यशः॑ । म॒घव॑य्त्ऽभ्यः । ध्रु॒वम् । र॒यिम् । इष॑म् । स्तो॒तृऽभ्यः । आ । भ॒र॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभ्यर्ष बृहद्यशो मघवद्भ्यो ध्रुवं रयिम् । इषं स्तोतृभ्य आ भर ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । अर्ष । बृहत् । यशः । मघवय्त्ऽभ्यः । ध्रुवम् । रयिम् । इषम् । स्तोतृऽभ्यः । आ । भर ॥ ९.२०.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 20; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (मघवद्भ्यः) ये भवदुपासकाः धनाद्यैश्वर्यसम्पन्नाः तेषां (रयिम् ध्रुवम्) धनं सुस्थिरं करोतु तथा (बृहद्यशः) अत्यन्तयशः (अभ्यर्ष) प्रयच्छतु तथा (इषम् स्तोतृभ्यः आभर) स्वस्तोतृभ्यो धनाद्यैश्वर्यं ददातु ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (मघवद्भ्यः) जो आपके उपासक धनादि ऐश्वर्यसम्पन्न हैं, उनके (रयिम् ध्रुवम्) धन को अचल सुरक्षित कीजिये और (बृहद्यशः) अत्यन्त यश को (अभ्यर्ष) दीजिये और (इषम् स्तोतृभ्यः आभर) जो आपके स्तोता हैं, उनके लिये धनादि ऐश्वर्य दीजिये ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा सदाचारी और संयमी पुरुषों के धनादि ऐश्वर्य और यश को दृढ करता है ॥४॥
विषय
यश-रयि-इष्
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू हमारे जीवनों को पवित्र करके (बृहद् यशः) = उत्कृष्ट यश को (अभ्यर्ष) [ अभिगमय] = प्राप्त करा । [२] मघवद्भयः- [मघ-मख] यज्ञशील पुरुषों के लिये (ध्रुवं रयिम्) = स्थिर ऐश्वर्य को प्राप्त करा । सोमरक्षण से हम यज्ञों की वृत्तिवाले बनें । यज्ञशीलता से 'ध्रुव रिय' को प्राप्त करनेवाले हों। [३] हम (स्तोतृभ्यः) = स्तोताओं के लिये (इष) = प्रेरणा को (आभर) = सर्वथा प्राप्त करा । हम पवित्र हृदयों में प्रभु की प्रेरणा को सुननेवाले बनें ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से जीवन यशस्वी - स्थिर ऐश्वर्यवाला व प्रभु की प्रेरणा को सुननेवाला बनता है ।
विषय
अन्न-धन की प्रार्थना।
भावार्थ
तू (मघवद्भ्यः) उत्तम धनवानों को (बृहत् यशः) बड़ा भारी यश और (ध्रुवं रयिम्) स्थिर ऐश्वर्य (अभि अर्ष) प्रदान कर या उनसे वा उनके लिये तू यश और धन प्राप्त कर और (स्तोतृभ्यः) विद्वान् जनों के लिये (इषं आ भर) अन्न प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४—७ निचृद् गायत्री। २, ३ गायत्री॥ सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Bring wide and expansive fame for the men of honour and generosity, bring wealth and power, bring food, energy, knowledge and excellence of mind and soul for the celebrants.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा सदाचारी व संयमी पुरुषांचे धन इत्यादी ऐश्वर्य व यश दृढ करतो. ॥४॥
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