ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 21/ मन्त्र 2
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
प्र॒वृ॒ण्वन्तो॑ अभि॒युज॒: सुष्व॑ये वरिवो॒विद॑: । स्व॒यं स्तो॒त्रे व॑य॒स्कृत॑: ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒ऽवृ॒ण्वन्तः॑ । अ॒भि॒ऽयुजः॑ । सुस्व॑ये । व॒रि॒वः॒ऽविदः॑ । स्व॒यम् । स्तो॒त्रे । व॒यः॒ऽकृतः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रवृण्वन्तो अभियुज: सुष्वये वरिवोविद: । स्वयं स्तोत्रे वयस्कृत: ॥
स्वर रहित पद पाठप्रऽवृण्वन्तः । अभिऽयुजः । सुस्वये । वरिवःऽविदः । स्वयम् । स्तोत्रे । वयःऽकृतः ॥ ९.२१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 21; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(प्रवृण्वन्तः) यो हि जनैः सम्यग्भज्यते (अभियुजः) यश्चान्येषां प्रेरकः (सुष्वये) सेवकाय (वरिवोविदः) धनानां दाता च (स्वयम्) स्वसत्तया विराजमानः (स्तोत्रे वयस्कृतः) स एव स्वस्तुतिकर्त्रे अन्नादीनां प्रदाता चास्ति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(प्रवृण्वन्तः) जो लोगों से भजन किया जाता (अभियुजः) जो दूसरों का प्रेरक (सुष्वये) सेवक के लिये (वरिवोविदः) धन देनेवाला (स्वयम्) स्वसत्ता से विराजमान (स्तोत्रे वयस्कृतः) और स्तोता के लिये अन्नादिकों को देनेवाला है ॥२॥
भावार्थ
जिन लोगों को परमात्मा की विविध प्रकार की रचना पर विश्वास है तथा जो परमात्मा की अनन्य भक्ति करते हैं, उनको परमात्मा अनन्त प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करता है ॥२॥
विषय
'वयस्कृत्' सोम
पदार्थ
[१] ये सोम (प्रवृण्वन्तः) = [ सुवानं संभजन्तः ] उत्पन्न करनेवाले का सम्भजन करनेवाले हैं। जो भी अपने अन्दर इन सोमकणों का सम्पादन करता है, ये सोमकण उसे नीरोग व पवित्र बनाते हुए उसकी सेवा करते हैं। (अभियुजः) = ये सुरक्षित सोमकण उसके शत्रुओं पर आक्रमण करते हैं, उसके अन्दर आ जानेवाले रोगकृमियों को विनष्ट करते हैं और काम-क्रोध आदि को भी उससे दूर करते हैं । [२] (सुष्वये) = उत्तम सवन करनेवाले के लिये (वरिवोविदः) = ये धन को प्राप्त कराते हैं। इनके रक्षण से शरीर के लिये आवश्यक सब वसुओं की प्राप्ति होती है। ये सोम (स्तोत्रे) = प्रभु के स्तवन करनेवाले के लिये (स्वयम्) = अपने आप (वयस्कृतः) = उत्कृष्ट जीवन को करनेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- रक्षित सोम हमारे रोगकृमि रूप शत्रुओं पर आक्रमण करते हैं। उत्तम धनों को प्राप्त कराते हैं । उत्कृष्ट जीवन को करनेवाले हैं।
विषय
उनके गुण।
भावार्थ
(प्र-वृण्वन्तः) उत्तम रीति से सेवा करने वाले, (अभि-युजः) शत्रु पर आक्रामक वीरों के समान लक्ष्य पर मनोयोग देने वाले, (सु-ष्वये) उत्तम प्रेरक को (वरिवः-विदः) धन सेवादि देने वाले, और (स्वयं) स्वयं (स्तोत्रे) उपदेष्टा विद्वान् के लिये (वयस्कृतः) अन्न आदि प्रदान करने वाले हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:-१,३ विराड् गायत्री। २,७ गायत्री। ४-६ निचृद् गायत्री। सप्तर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
These streams of soma are graciously favourable, readily helpful, harbingers of wealth, honour and fame for the devotees and naturally and by themselves givers of health and longevity for the singers and celebrants of divinity in song.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या लोकांना परमेश्वराच्या विविध प्रकारच्या रचनेवर विश्वास आहे व जे परमेश्वराची अनन्यभक्ती करतात त्यांना परमात्मा अनंत प्रकारचे ऐश्वर्य प्रदान करतो. ॥२॥
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