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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 21 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 21/ मन्त्र 4
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ते विश्वा॑नि॒ वार्या॒ पव॑मानास आशत । हि॒ता न सप्त॑यो॒ रथे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ते । विश्वा॑नि । वार्या॑ । पव॑मानासः । आ॒श॒त॒ । हि॒ताः । न । सप्त॑यः । रथे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एते विश्वानि वार्या पवमानास आशत । हिता न सप्तयो रथे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एते । विश्वानि । वार्या । पवमानासः । आशत । हिताः । न । सप्तयः । रथे ॥ ९.२१.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 21; मन्त्र » 4
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    यथा (सप्तयः) सप्त सूर्यकिरणाः (रथे) अस्मिन् विराड्रूपे रथे (हिताः) निहिताः सन्ति (न) तथैव (एते पवमानासः) सर्वेषां पावयितॄणि इमानि (विश्वानि) सर्वाणि (वार्या) ब्रह्माण्डानि (आशत) परमात्मनि निवसन्ति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    जिस प्रकार (सप्तयः) सात सूर्य की किरणें (रथे) इस विराड्रूपी रथ में (हिताः) निहित हैं, (न) इसी प्रकार (एते पवमानासः) सबको पवित्र करते हुए ये (विश्वानि) सम्पूर्ण (वार्या) ब्रह्माण्ड (आशत) परमात्मा में निवास करते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार उपग्रह सूर्य आदि ग्रहों के इतस्ततः भ्रमण करते हैं, इसी प्रकार सब लोक-लोकान्तर इस विराट् के इतस्ततः परिभ्रमण करते हैं ॥४॥

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    विषय

    सब वरणीय वस्तुओं की प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] (एते) = ये (पवमानासः) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले सोम (विश्वानि) = सब (वार्या) = वरणीय वस्तुओं को आशत व्याप्त करनेवाले होते हैं। सोमरक्षण से सब वरणीय वस्तुएँ हमें प्राप्त होती हैं । [२] ये सोम (रथे) = इस शरीर - रथ में (हिता:) = स्थापित, जुते हुए (सप्तयः न) = घोड़ों के समान हैं। जिस प्रकार घोड़े हमें उद्दिष्ट स्थल पर पहुँचाते हैं, उसी प्रकार ये सोम हमें जीवनयात्रा में इस शरीर रथ के द्वारा उद्दिष्ट स्थल पर पहुँचानेवाले हैं, ये हमें प्रभु के समीप प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें सब वरणीय वस्तुओं को प्राप्त कराते हैं तथा इस शरीर रथ के द्वारा लक्ष्य स्थान [ = ब्रह्म] तक पहुँचाते हैं।

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    विषय

    अश्वों के समान उनकी आगे बढ़ कर ऐश्वर्य प्राप्ति।

    भावार्थ

    (रथे हिताः सप्तयः न) रथ में लगे अश्वों के समान (एते) ये (पवमानासः) वायुवत् आगे बढ़ने या अपने को स्वच्छ करने वाले साधक जन (विश्वानि वार्या) समस्त ऐश्वर्यो को (आशत) प्राप्त करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:-१,३ विराड् गायत्री। २,७ गायत्री। ४-६ निचृद् गायत्री। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    All these streams of soma of the world, pure, purifying and flowing, abide in the One and only One like seven colours of the spectrum abiding in the light of the sun.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या प्रकारे उपग्रह, सूर्य इत्यादी ताऱ्यांच्या भोवती भ्रमण करतात त्या प्रकारे सर्व लोकलोकांतर त्या विराट (परमेश्वर)च्या भोवती फिरतात. अर्थात त्याच्यात निवास करतात. ॥४॥

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