ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 29/ मन्त्र 5
रक्षा॒ सु नो॒ अर॑रुषः स्व॒नात्स॑मस्य॒ कस्य॑ चित् । नि॒दो यत्र॑ मुमु॒च्महे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठरक्ष॑ । सु । नः॒ । अर॑रुषः । स्व॒नात् । स॒मस्य॑ । कस्य॑ । चि॒त् । नि॒दः । यत्र॑ । मु॒मु॒च्महे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
रक्षा सु नो अररुषः स्वनात्समस्य कस्य चित् । निदो यत्र मुमुच्महे ॥
स्वर रहित पद पाठरक्ष । सु । नः । अररुषः । स्वनात् । समस्य । कस्य । चित् । निदः । यत्र । मुमुच्महे ॥ ९.२९.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 29; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (नः) अस्मान् (समस्य कस्यचित् अररुषः) सर्वेषामदातॄणां (स्वनात् रक्ष) निन्दारूपशब्देभ्यो रक्ष (निदः) निन्दकेभ्यश्च रक्ष (यत्र मुमुच्महे) यया रक्षया वयं निन्दादिभ्यो मुक्ताः स्याम ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (नः) हमारी (समस्य कस्यचित् अररुषः) सम्पूर्ण अदाता लोगों के (निदः) निन्दारूप शब्द से रक्षा करिये (निदः) और निन्दक लोगों से भी बचाइये (यत्र मुमुच्महे) जिस रक्षा से हम निन्दादिकों से मुक्त रहें ॥५॥
भावार्थ
अभ्युदयशाली मनुष्य का कर्तव्य यह होना चाहिये कि वह कदर्य कदापि न बने। जो पुरुष कदर्य होता है, वह सर्वदैव संसार में निन्दनीय रहता है, इसलिये हे पुरुषो ! तुम कदर्यता कायरता और प्रमत्तता इत्यादि भावों को छोड़कर उदारता वीरता और अप्रमत्तता इत्यादि भावों को धारण करो ॥५॥
विषय
निन्दनीय बातों से दूर
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू (समस्य कस्य चित्) = सब किसी (अररुषः) = न देने की वृत्तिवाले आत्मम्भरि असुर के (स्वनात्) = शब्दों से 'इदमद्य मया लब्धम्, इमं प्राप्स्ये मनोरथम् ' = ये तो मिल गया, ये भी मनोरथ पूरा हो जाएगा 'असौ मया हतः शत्रुः हनिष्ये चापरानपि' उस शत्रु को तो मार दिया, औरों को भी मार डालूँगा । और तव 'ईश्वरोहं' मैं ही तो ईश्वर हूँगा 'कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया' मेरे समान होगा ही कौन ? इन असुरों की बातों से (नः) = हमें (सुरक्षा) = अच्छी प्रकार बचा। हम असुरों के इन शब्दों से प्रकट होनेवाले विचारों से दूर रहें। [२] हे सोम ! तू हमें आसुर भावों से दूर करके वहाँ पहुँचा (यत्र) = जहाँ कि (निदाः) = सब निन्दात्मक बातों से (मुमुच्महे) = हम अपने को मुक्त कर पायें। सब निन्दनीय आसुरभावों से ऊपर उठकर हम दिव्य जीवनवाले बनें ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें सब आसुरभावों से बचानेवाला होता है, निन्दनीय कर्मों से हम पृथक् हो जाते हैं।
विषय
निन्दकों से रक्षा की प्रार्थना।
भावार्थ
हे परमात्मन् ! आत्मन् ! राजन् ! (समस्य कस्य चित्) समस्त जिस किसी भी (अररूषः) अति क्रोधी कठोर और (निदः) निन्दक से (नः सुरक्ष) हमारी रक्षा कर। (यत्र) जिससे हम (मुमुच्महे) मुक्त हो जावें॥
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नृमेध ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १ विराड् गायत्री। २–४, ६ निचृद् गायत्री। ५ गायत्री॥ षडृर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, save us, protect us fully against the arrogance, pride and malignity of the selfish hoarder and uncharitable exploiter and from whoever else be like that, and let us ever be fearless and free from scandal, malignity and anxiety.
मराठी (1)
भावार्थ
अभ्युदय करणाऱ्या माणसांचे हे कर्तव्य आहे की, त्यांनी कधीही लोभी बनू नये. जो पुरुष लोभी असतो. तो जगात सदैव निंदनीय असतो. त्यासाठी तुम्ही कृपणता, कायरता व प्रमत्तता इत्यादींचा त्याग करून उदारता, वीरता व अप्रमत्तता इत्यादी भाव धारण करा. ॥५॥
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