ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 10
ए॒ष उ॒ स्य पु॑रुव्र॒तो ज॑ज्ञा॒नो ज॒नय॒न्निष॑: । धार॑या पवते सु॒तः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । ऊँ॒ इति॑ । स्यः । पु॒रु॒ऽव्र॒तः । ज॒ज्ञा॒नः । ज॒नय॑न् । इषः॑ । धार॑या । प॒व॒ते॒ । सु॒तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष उ स्य पुरुव्रतो जज्ञानो जनयन्निष: । धारया पवते सुतः ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । ऊँ इति । स्यः । पुरुऽव्रतः । जज्ञानः । जनयन् । इषः । धारया । पवते । सुतः ॥ ९.३.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 10
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एष स्यः) सोऽयं परमात्मा (पुरुव्रतः) अनन्तकर्मा (जज्ञानः) सर्वत्र प्रसिद्धः (इषः) सर्वं लोकलोकान्तरम् (जनयन्) उत्पादयन् (सुतः) स्वसत्तया विराजमानः (धारया) स्वपीयूषवर्षेण (पवते) सर्वं पवित्रयति ॥१०॥ तृतीयं सूक्तं एकविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
(स्यः) वह पूर्वोक्त परमात्मा (पुरुव्रतः) अनन्तकर्मा है (जज्ञानः) सर्वत्र प्रसिद्ध (इषः) सम्पूर्ण लोक-लोकान्तरों को (जनयन्) उत्पन्न करता हुआ (सुतः) स्वसत्ता से विराजमान (एषः) यह (धारया) अपनी सुधामयी वृष्टि की धाराओं से (पवते) सबको पवित्र करता है ॥१०॥
भावार्थ
जो परमात्मा अनन्तकर्म्मा है, वही अपनी शक्ति से सब लोक-लोकान्तरों को उत्पन्न करता है और वही अपनी पवित्रता से सबको पवित्र करता है। अनन्तकर्म्मा, यहाँ परमात्मा को उसकी अनन्त शक्तियों के अभिप्राय से वर्णन किया है, किसी शारीरिक कर्म के अभिप्राय से नहीं ॥१०॥२१॥ तीसरा सूक्त और इक्कीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
English (1)
Meaning
This spirit of divinity, power of infinite law and action, creating and providing food, energy and sustenance for life, flows on in continuum, self- sustained, self-revealed, discovered, self-realised.
मराठी (1)
भावार्थ
जो परमात्मा अनंत कर्म करणारा आहे. तोच आपल्या शक्तीने सर्व लोक-लोकांतरांना उत्पन्न करतो. तोच आपल्या पवित्रतेने सर्वांना पवित्र करतो. अनंतकर्मा हे येथे परमात्म्याला त्याच्या अनंत शक्तीच्या अभिप्रायाने वर्णन केलेले आहे. एखाद्या शारीरिक कर्माच्या अभिप्रायाने नाही. ॥१०॥
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