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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 30/ मन्त्र 3
    ऋषिः - बिन्दुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ न॒: शुष्मं॑ नृ॒षाह्यं॑ वी॒रव॑न्तं पुरु॒स्पृह॑म् । पव॑स्व सोम॒ धार॑या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नः॒ । शुष्म॑म् । नृ॒ऽसह्य॑म् । वी॒रऽव॑न्तम् । पु॒रु॒ऽस्पृह॑म् । पव॑स्व । सो॒म॒ । धार॑या ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ न: शुष्मं नृषाह्यं वीरवन्तं पुरुस्पृहम् । पवस्व सोम धारया ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नः । शुष्मम् । नृऽसह्यम् । वीरऽवन्तम् । पुरुऽस्पृहम् । पवस्व । सोम । धारया ॥ ९.३०.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 30; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे परमात्मन् ! (नः) अस्मान् भवान् (शुष्मम्) यद्बलं (नृषाह्यम्) शत्रुनाशकम् (वीरवन्तम्) वीर्य्यवत् (पुरुस्पृहं) सर्वोत्तममस्ति तस्य (धारया) सुवृष्ट्या (आ पवस्व) पवित्रीकरोतुतराम् ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! (नः) हमको आप (शुष्मम्) जो बल (नृषाह्यम्) शत्रु को नाश करनेवाला (वीरवन्तम्) वीरतावाला (पुरुस्पृहं) सर्वोपरि है, उसकी (धारया) सुवृष्टि से (आ पवस्व) भली प्रकार पवित्र करें ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि जो पुरुष सर्वोपरि बल की कामना करते हुए अपने आपको उस बल के योग्य बनाते हैं, उनको संसार में न्याय नियम फैलाने के लिये सर्वोपरि बल अवश्यमेव मिलता है ॥३॥

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    विषय

    नृषाह्य शुष्म

    पदार्थ

    [१] (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू धारया अपनी धारण शक्ति से नः = हमारे लिये शुष्मम् = शत्रु- शोषक बल को आपवस्व = सर्वथा प्राप्त करा । [२] उस बल को प्राप्त करा, जो कि नृषाह्यम् = सब मनुष्यों का पराभव करनेवाला है, जो हमें 'ईश्वरभाव' से युक्त करता है, हमें शासन शक्ति प्राप्त कराता है। वीरवन्तम्- जो बल वीर पुत्रोंवाला है, हमारे सन्तानों को भी वीर बनानेवाला है। पुरुस्पृहम् = पालक व पूरक होता हुआ स्पृहणीय है । यह बल शरीर का पालन करता है, मन का पूरण करता है और अतएव स्पृहणीय होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें 'नृषाह्य- वीरवान्- पुरुस्पृह' बल को प्राप्त कराता है ।

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    विषय

    प्रजा के बीच शासन-बल की उत्पत्ति। पक्षान्तर में जलधारा से यान्त्रिक बल पैदा करने का संकेत।

    भावार्थ

    हे (सोम) शासक ! तू (धारया) अपने धारण सामर्थ्य और आज्ञा बल से (नः) हमें (नृ-साह्यं) सब मनुष्यों को वश करने में समर्थ, (वीरवन्तं पुरु-स्पृह) वीरों वाले, बहुतों को प्रिय लगने वाले (शुष्मं) बल को (नः पवस्व) मेघ से जल धारावत् हमें प्राप्त करा। विद्वान् जल-धारा से यान्त्रिक बल प्राप्त करे, इस का भी इस में उपदेश है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विन्दुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, २, ६ गायत्री। ३-५ निचृद् गायत्री॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, lord of strength and enlightenment, let showers of strength worthy of the brave and victorious inspiring to prowess and chivalry loved by all flow to us in streams of plenty and abundance.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो की जे पुरुष सर्वोत्तम बलाची कामना करत स्वत:ला त्या बलाच्या योग्य बनवितात. त्यांना जगात न्याय नियम प्रसृत करण्यासाठी सर्वोत्तम बल अवश्य मिळते. ॥३॥

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