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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 30/ मन्त्र 6
    ऋषि: - बिन्दुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    सु॒नोता॒ मधु॑मत्तमं॒ सोम॒मिन्द्रा॑य व॒ज्रिणे॑ । चारुं॒ शर्धा॑य मत्स॒रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒नोत॑ । मधु॑मत्ऽतमम् । सोम॑म् । इन्द्रा॑य । व॒ज्रिणे॑ । चारु॑म् । शर्धा॑य । म॒त्स॒रम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुनोता मधुमत्तमं सोममिन्द्राय वज्रिणे । चारुं शर्धाय मत्सरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुनोत । मधुमत्ऽतमम् । सोमम् । इन्द्राय । वज्रिणे । चारुम् । शर्धाय । मत्सरम् ॥ ९.३०.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 30; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 6
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वज्रिणे इन्द्राय) वज्रोपेताय कर्मयोगिने (सोमम् सुनोत) सोमरसं समुत्पादय यो रसः (चारुम्) सुन्दरः (शर्धाय मत्सरम्) बलाय हर्षप्रदः (मधुमत्तमम्) स्वादुरस्ति ॥६॥ इति त्रिंशत्तमं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (वज्रिणे इन्द्राय) वज्रवाले कर्मयोगी के लिये (सोमम् सुनोत) सोम रस उत्पन्न करो, जो रस (चारुम्) सुन्दर है (शर्धाय मत्सरम्) बल के लिये जो हर्ष उत्पन्न करनेवाला है (मधुमत्तमम्) जो अत्यन्त मीठा है ॥६॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करता है कि हे विद्वान् पुरुषो ! तुम उत्तमोत्तम ओषधियों से सौम्य स्वभाव बनानेवाले रसों को उत्पन्न करो, जिन रसों का पान करके कर्मयोगी पुरुष अपने कर्तव्यों में दृढ़ रहें और जिन रसों से हर्ष को प्राप्त होकर संसार में सर्वोपरि बल को उत्पन्न करें ॥६॥ यह तीसवाँ सूक्त और बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    English (1)

    Meaning

    O yajakas, create the sweetest honeyed soma, delicious and exhilarating, to augment the strength, forbearance and fortitude of the adamantine soul and, through words, thoughts and actions, to offer it in gratitude to Indra, lord omnipotent wielder of the thunderbolt of justice and dispensation.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो की हे विद्वान पुरुषांनो! तुम्ही उत्तमोत्तम औषधींनी सौम्य स्वभाव बनविणाऱ्या रसांना उत्पन्न करा. त्या रसांचे पान करून कर्मयोगी पुरुष आपल्या कर्तव्यपालनात दृढ असावेत. त्या रसांनी आनंदित होऊन त्यांनी जगात सर्वोत्तम बल उत्पन्न करावे. ॥६॥

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