ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 33/ मन्त्र 4
ति॒स्रो वाच॒ उदी॑रते॒ गावो॑ मिमन्ति धे॒नव॑: । हरि॑रेति॒ कनि॑क्रदत् ॥
स्वर सहित पद पाठति॒स्रः । वाचः॑ । उत् । ई॒र॒ते॒ । गावः॑ । मि॒म॒न्ति॒ । धे॒नवः॑ । हरिः॑ । ए॒ति॒ । कनि॑क्रदत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तिस्रो वाच उदीरते गावो मिमन्ति धेनव: । हरिरेति कनिक्रदत् ॥
स्वर रहित पद पाठतिस्रः । वाचः । उत् । ईरते । गावः । मिमन्ति । धेनवः । हरिः । एति । कनिक्रदत् ॥ ९.३३.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 33; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(धेनवः गावः) इन्द्रियवृत्तयः (तिस्रः वाचः उदीरते मिमन्ति) तिस्रोः वाचः समुच्चारयन्त्यः परमात्मानं प्रापयन्ति (हरिः) स च परमात्मा (कनिक्रदत् एति) गर्जन् तेषां ज्ञानविषयो भवति ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(धेनवः गावः) इन्द्रियवृत्तियें (तिस्रः वाचः उदीरते मिमन्ति) तीनों वाणियों को उच्चारण करती हुयी परमात्मा का साक्षात्कार कराती हैं (हरिः) और वह परमात्मा (कनिक्रदत् एति) गर्जता हुआ उनके ज्ञान का विषय होता है ॥४॥
भावार्थ
जो लोग वैदिक सूक्तों द्वारा वर्णित परमात्मा के स्वरूप को अपने ध्यान में लाना चाहते हैं, वे भली-भाँति परमात्मा का साक्षात्कार करते हैं। तात्पर्य यह है कि परमात्मा शब्दगम्य है, तर्कों से उसका साक्षात्कार नहीं होता, क्योंकि तर्क की कोई आस्था नहीं। प्रथम के तर्क को द्वितीय, जिसकी अधिक बुद्धि है, काट देता है। द्वितीय के तर्क को तृतीय, तृतीय के तर्क को चतुर्थ। वेद पूर्ण पुरुष का ज्ञान है, इसलिये उसमें दोष नहीं ॥४॥
विषय
तिस्रो वाचः
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के अनुसार सोम के शरीर में सुरक्षित होने पर (तिस्रः वाचः) = ' ऋग्-यजु- साम' रूप तीनों वाणियाँ हमारे हृदयों में (उदीरते) = उच्चरित होती हैं। हम मस्तिष्क में विज्ञान से दीप्त होते हैं, हाथों से यज्ञात्मक कर्मों को करनेवाले बनते हैं और हृदय में उपासना की वृत्तिवाले होते हैं। [२] इस सोम के रक्षित होने पर (धेनवः) = ज्ञानदुग्ध का पान करानेवाली (गावः) = ये वेदवाणीरूप गौवें [ज्ञान की वाणियाँ] (मिमन्ति) = हमारे अन्दर शब्दायमान होती हैं । वस्तुतः (हरिः) = यह दुःखों का हरण करनेवाला सोम (कनिक्रदत्) = गर्जना करता हुआ, प्रभु का उपासन करता हुआ (एति) = हमें प्राप्त होता है । सोमरक्षण से हमारी वृत्ति प्रभु की उपासना की बनती है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम 'ऋग्-यजु - साम' रूप वाणियों को प्राप्त करते हैं, वेदवाणीरूप गौ हमारे में शब्दायमान होती है। हम प्रभु का नाम स्मरण करनेवाले बनते हैं।
विषय
वाणियों का गौओं वा धनुष की डोरियों के समान उद्गम।
भावार्थ
(तिस्रः वाचः) तीनों वाणियें (उत् ईरते) उठती हैं, उच्चारण करते हैं और (गावः धेनवः इव मिमन्ति) विद्वानों की वाणियें और वीरों की धनुष की डोरियां ध्वनि करती हैं और (हरिः) मनोहर ज्ञानी, दुःखहर वीर (कनिक्रदत् एति) शासन और अनुशासन करता हुआ आता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
त्रित ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १ ककुम्मती गायत्री। २, ४, ५ गायत्री। ३, ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Three Vedic voices of knowledge, action and prayer, loud and bold, enlighten and inspire to goodness, organs of perception and volition urge to good action, while earth and milch cows are profuse in fertility, and the lord of bliss, destroyer of suffering, manifests bright and blissful as life goes on in a state of prosperity.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक वैदिक सूक्तांद्वारे वर्णित परमात्म्याच्या स्वरूपाला आपल्या ध्यानात आणू इच्छितात. ते चांगल्या प्रकारे परमेश्वराचा साक्षात्कार करतात. तात्पर्य हे की परमात्मा शब्दगम्य आहे. तर्कांनी त्याचा साक्षात्कार होत नाही कारण तर्कात कोणती आस्था नसते. पहिल्या तर्काला दुसरा बुद्धिमान निरुत्तर करतो. दुसऱ्या तर्काला तिसरा निरुत्तर करतो. तिसऱ्याला चौथा बुद्धिमान निरुत्तर करतो. वेद पूर्ण पुरुषाचे ज्ञान असल्यामुळे त्यात हा दोष नाही. ॥४॥
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