ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 37/ मन्त्र 5
स वृ॑त्र॒हा वृषा॑ सु॒तो व॑रिवो॒विददा॑भ्यः । सोमो॒ वाज॑मिवासरत् ॥
स्वर सहित पद पाठसः । वृ॒त्र॒ऽहा । वृषा॑ । सु॒तः । व॒रि॒वः॒ऽवित् । अदा॑भ्यः । सोमः॑ । वाज॑म्ऽइव । अ॒स॒र॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
स वृत्रहा वृषा सुतो वरिवोविददाभ्यः । सोमो वाजमिवासरत् ॥
स्वर रहित पद पाठसः । वृत्रऽहा । वृषा । सुतः । वरिवःऽवित् । अदाभ्यः । सोमः । वाजम्ऽइव । असरत् ॥ ९.३७.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 37; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वृत्रहा) अज्ञानच्छेदकः (वृषा) सर्वकामदः (सुतः) स्वयंसिद्धः (वरिवोवित्) विभूतिप्रदः (अदाभ्यः) अदम्भनीयः (सः सोमः) सः परमात्मा (वाजम् इव असरत्) शक्तिरिव व्याप्नोति ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वृत्रहा) अज्ञानों का नाशक (वृषा) कामनाओं की वर्षा करनेवाला (सुतः) स्वयंसिद्ध (वरिवोवित्) ऐश्वर्यों का देनेवाला (अदाभ्यः) अदम्भनीय (सः सोमः) वह परमात्मा (वाजम् इव असरत्) शक्ति की नाईं व्याप्त हो रहा है ॥५॥
भावार्थ
जिस प्रकार सूर्य (वृत्र) मेघों को छिन्न-भिन्न करके धरातल को जल से सुसिञ्चित कर देता है, इसी प्रकार परमात्मा सब प्रकार के आवरणों को छिन्न-भिन्न करके अपने ज्ञान का प्रकाश कर देता है ॥५॥
विषय
वृत्रहा - वृषा
पदार्थ
[१] (सः) = वह (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ सोम (वृत्रहा) = वासना को नष्ट करनेवाला है। ज्ञान की आवरणभूत वासना को विनष्ट करके यह ज्ञान को दीप्त करता है । (वृषा) = शक्ति को देनेवाला है । (वरिवोवित्) = सब वरणीय धनों को प्राप्त कराता है। (अदाभ्यः) = न हिंसित होनेवाला है। शरीर में सोम के सुरक्षित होने पर यह रोगकृमियों का विनाश करता है और इस प्रकार यह हमें रोगों से हिंसित नहीं होने देता। [२] (सोम:) = यह सोम [वीर्यशक्ति] इस प्रकार शरीर में (असरत्) = गतिवाला होता है, (इव) = जैसे कि एक अश्व (वाजम्) = संग्राम में गति करता है। यह सोम इस संग्राम में शत्रुभूत रोगकृमियों को तथा काम-क्रोध आदि वासनाओं को विनष्ट करनेवाला होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम ज्ञान की आवरणभूत वासना को विनष्ट करता है। शरीर में शक्ति को देता है। वरणीय धनों को प्राप्त कराता है और हमें हिंसित नहीं होने देता।
विषय
सर्वशक्तिमान् शक्तिप्रद।
भावार्थ
(सः वृत्रहा) वह सब विघ्नों का नाशक, (वृषा) सब सुखों की वृष्टि करने वाला, सब से अधिक बलवान्, स्वयं (सुतः) सब: से उपासित होकर (अदाभ्यः) अविनाशी, (वरिवोविद्) सब ऐश्वर्यों को प्राप्त करने वाला, (सोमः) सर्वोत्पादक, सर्वसञ्चालक प्रभु (वाजम् इव असरत्) ज्ञान के समान बल, वेग का सञ्चार करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
रहूगण ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः– १-३ गायत्री। ४–६ निचृद गायत्री॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, destroyer of darkness, generous, self- manifestive, self-revealed and self discovered, lord giver of the best of wealth and excellence of the world, fearless and undaunted, pervades and vibrates in existence as Shakti, divine omnipotent energy.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या प्रकाराने सूर्य (वृत्र) मेघांना छिन्नभिन्न करून भूमी जलाने सुसंचित करतो. त्याचप्रकारे परमेश्वर सर्व प्रकारच्या आवरणांना छिन्न भिन्न करून आपल्या ज्ञानाचा प्रकाश करतो. ॥५॥
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