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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 5
    ऋषिः - हिरण्यस्तूपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वं सूर्ये॑ न॒ आ भ॑ज॒ तव॒ क्रत्वा॒ तवो॒तिभि॑: । अथा॑ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । सूर्ये॑ । नः॒ । आ । भ॒ज॒ । तव॑ । क्रत्वा॑ । तव॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । अथ॑ । नः॒ । वस्य॑सः । कृ॒धि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं सूर्ये न आ भज तव क्रत्वा तवोतिभि: । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । सूर्ये । नः । आ । भज । तव । क्रत्वा । तव । ऊतिऽभिः । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥ ९.४.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! (त्वम्) भवान् (नः) अस्मभ्यं (सूर्ये) ज्ञानं प्रदातुम् (आभज) आगत्य तिष्ठतु (क्रत्वा) यज्ञेन (अथ, तव, ऊतिभिः) अथ च स्वीयरक्षाभिः (नः) अस्मान् (वस्यसः, कृधि) सुखिनः करोतु ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! तुम (नः) हमको (सूर्ये) ज्ञान प्रदान के लिये (आभज) आकर प्राप्त हो। (क्रत्वा) यज्ञों द्वारा (अथ तव ऊतिभिः) और अपनी रक्षा द्वारा (नः) हमको (वस्यसस्कृधि) सुखी बनाओ ॥५॥

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! आप ज्ञान और कर्म द्वारा हमारी सर्वदा रक्षा करें और ऐहिक तथा पारलौकिक सुख से हमको सदैव सम्पन्न करें ॥५॥२२॥

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    विषय

    नीरोग प्रकाशमय जीवन

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! (त्वम्) = तू (तव क्रत्वा) = तेरे द्वारा उत्पन्न प्रज्ञान से तथा (तव ऊतिभिः) = तेरे से किये गये रक्षणों से (नः) = हमें (सूर्ये आभज) = ज्ञान सूर्य में भागी बना । सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है, इसी से हमारे जीवनों में ज्ञानसूर्य के उदय का सम्भव होता है। यह सोम हमें रोगों से भी बचाता है और इस प्रकार अविच्छिन्न स्वाध्याय के द्वारा हम ज्ञानसूर्य का अपने में उदय करनेवाले होते हैं । [२] हे सोम ! इस प्रकार प्रज्ञान व रक्षणों के द्वारा (अथाः अव नः) = हमें (वस्यसः कृधि) = उत्कृष्ट जीवनवाला करिये।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमारी ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है तथा रोगों के आक्रमण से हमारा रक्षण करता है । इस प्रकार हमें नीरोग व प्रकाशमय जीवन प्राप्त कराता है ।

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    विषय

    ईश्वरप्राप्ति, राज्यपद, प्राप्ति के लिये अभिषेक

    भावार्थ

    हे राजन् ! प्रभो ! (त्वं) तू (नः) हमें (तव क्रत्वा) अपने ज्ञान और कर्म सामर्थ्य और (तव ऊतिभिः) तेरी रक्षाओं से (नः) हमें (सूर्ये) सूर्य के समान तेजस्वी, सर्वदर्शक, प्रकाशयुक्त शासक वा विद्वान् के अधीन (आ भज) रख, (अथा नः वस्यसः कृधि) और हमें उत्तम धनैश्वर्य का स्वामी और श्रेष्ठ बना। इति द्वाविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    हिरण्यस्तूप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ४, १० गायत्री। २, ५, ८, ९ निचृद् गायत्री। ६, ७ विराड् गायत्री ॥ दशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma take us high to the light of the sun in knowledge and purity by your noble speech and action and by your paths of protection and progress, and thus make us happy and prosperous more and ever more.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे परमात्मा! तू ज्ञान व कर्माद्वारे आमचे सदैव रक्षण कर व ऐहिक आणि पारलौकिक सुखाने आम्हाला सदैव संपन्न कर ॥५॥

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