ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 6
ऋषिः - हिरण्यस्तूपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
तव॒ क्रत्वा॒ तवो॒तिभि॒र्ज्योक्प॑श्येम॒ सूर्य॑म् । अथा॑ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ॥
स्वर सहित पद पाठतव॑ । क्रत्वा॑ । तव॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । ज्योक् । प॒श्ये॒म॒ । सूर्य॑म् । अथ॑ । नः॒ । वस्य॑सः । कृ॒धि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तव क्रत्वा तवोतिभिर्ज्योक्पश्येम सूर्यम् । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठतव । क्रत्वा । तव । ऊतिऽभिः । ज्योक् । पश्येम । सूर्यम् । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥ ९.४.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (तव, क्रत्वा) वयं तव ज्ञानयोगद्वारेण (तव, ऊतिभिः) कर्मयोगद्वारेण च (ज्योक्) शश्वत् (सूर्यम्) भवतः प्रकाशरूपम् (पश्येम) अनुभवेम (अथ) अथ च (नः) अस्माकं (वस्यसः) कल्याणं (कृधि) कुरु ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! हम (तव क्रत्वा) आपके कर्मयोग (तव ऊतिभिः) और ज्ञानयोग द्वारा सदैव (सूर्यम्) आपके प्रकाशस्वरूप को (ज्योक्) निरन्तर (पश्येम) अनुभव करें (अथ) और (नः) हमारे (वस्यसः) कल्याण को (कृधि) करिये ॥६॥
भावार्थ
ज्ञानयोगी तथा कर्मयोगी पुरुष अपने आत्मभूत सामर्थ्य से परमात्मा के स्वरूप का अनुभव करके सदैव आनन्द का लाभ करते हैं ॥६॥
विषय
दीर्घकाल तक सूर्य - दर्शन
पदार्थ
[१] ये सोम ! (तव क्रत्वा) = तेरे द्वारा उत्पन्न प्रज्ञान से तथा (तव) तेरे द्वारा की गई (ऊतिभिः) = रक्षाओं से हम (ज्योक्) = दीर्घकाल तक (सूर्यं पश्येम) = सूर्य को देखनेवाले बनें। अर्थात् दीर्घजीवनवाले बनें। सूर्य दर्शन से शीघ्र ही वञ्चित न हो जायें। [२] (अथा) = अब प्रज्ञान व रक्षण को प्राप्त कराके (न:) = हमें (वस्यसः) = उत्कृष्ट जीवनवाला (कृधि) = करिये ।
भावार्थ
भावार्थ- हम सोमरक्षण द्वारा ज्ञान व नीरोगता को प्राप्त करके दीर्घजीवनवाले हों ।
विषय
उससे उत्तम प्रार्थनाएं । दीर्घजीवन, ज्योति-दर्शन की प्रार्थना।
भावार्थ
(तव क्रत्वा) तेरे ज्ञान और (तव ऊतिभिः) तेरी रक्षाओं और शिक्षाओं से हम (ज्योक्) चिरकाल तक (सूर्यम् पश्येम) सूर्य के समान तेरे प्रताप, और ज्योतिर्मय आत्म-स्वरूप को देखें, चिरजीवी हों। (अथ नः० इत्यादि पूर्ववत्)।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
हिरण्यस्तूप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ४, १० गायत्री। २, ५, ८, ९ निचृद् गायत्री। ६, ७ विराड् गायत्री ॥ दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
By your noble actions, O spirit of peace and piety, and by your protections and promotions, bless us that we may ever see and internalise the eternal light of the sun, and thus make us happy and prosperous more and ever more.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्ञानयोगी व कर्मयोगी पुरुष आपल्या आत्मिक सामर्थ्याने परमेश्वराच्या स्वरूपाचा अनुभव घेऊन सदैव आनंदात राहतात. ॥६॥
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