ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 40/ मन्त्र 3
नू नो॑ र॒यिं म॒हामि॑न्दो॒ऽस्मभ्यं॑ सोम वि॒श्वत॑: । आ प॑वस्व सह॒स्रिण॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठनु । नः॒ । र॒यिम् । म॒हाम् । इ॒न्दो॒ इति॑ । अ॒स्मभ्य॑म् । सो॒म॒ । वि॒श्वतः॑ । आ । प॒व॒स्व॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नू नो रयिं महामिन्दोऽस्मभ्यं सोम विश्वत: । आ पवस्व सहस्रिणम् ॥
स्वर रहित पद पाठनु । नः । रयिम् । महाम् । इन्दो इति । अस्मभ्यम् । सोम । विश्वतः । आ । पवस्व । सहस्रिणम् ॥ ९.४०.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 40; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे परमैश्वर्यसम्पन्न परमात्मन् ! (सोम) हे सौम्य ! (नः) अस्मभ्यं (नु) ध्रुवं (विश्वतः) सर्वतः (सहस्रिणम्) विविधं (महाम्) महत् (रयिम्) ऐश्वर्यं (आपवस्व) देहि ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो) हे परमैश्वर्यसम्पन्न परमात्मन् ! (सोम) हे सौम्य स्वभाववाले (नः) हमारे लिये (नु) निश्चय करके (विश्वतः) सब ओर से (सहस्रिणम्) अनेक प्रकार के (महाम्) बड़े (रयिम्) ऐश्वर्य को (आपवस्व) दीजिये ॥३॥
भावार्थ
सत्कर्मी पुरुष भी जब तक परमात्मा से अपने ऐश्वर्य की वृद्धि की प्रार्थना नहीं करते, तब तक उनका अभ्युदय नहीं होता। यद्यपि अभ्युदय पूर्वकृत शुभकर्मों का फल है, तथापि जब तक मनुष्य का अभ्युदयशाली शील नहीं बनता, तब तक वह अभ्युदय को कदाचित् भी नहीं चाहता, इसलिये अभ्युदयशाली शील बनाने के लिये अभ्युदय की प्रार्थना अवश्य करनी चाहिये ॥३॥
विषय
महान् रयि की प्राप्ति
पदार्थ
[१] हे (इन्दो) = शक्तिशालिन् (सोम) = सोम [वीर्यशक्ते] ! (नः) = हमारे लिये (महाम्) = महनीय (रयिम्) = ऐश्वर्य को (नु) = निश्चय से (आपवस्व) = प्राप्त करा । महनीय ऐश्वर्य शरीर के दृष्टिकोण से ओज है, और मस्तिष्क के दृष्टिकोण से ज्ञान है। सुरक्षित हुआ हुआ सोम हमारे लिये इसे प्राप्त कराता है । [२] हे सोम ! तू (विश्वतः) = सब ओर से (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (सहस्रिणम्) = सहस्र संख्यावाले, खूब अधिक अथवा [स+हस्] आनन्दयुक्त धन को प्राप्त करानेवाला हो। यह महान् आनन्दमय ऐश्वर्य 'प्रभु' ही हैं। प्रभु प्राप्ति में सम्पूर्ण धन की प्राप्ति है और इसी में आनन्द का लाभ है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से महनीय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है । सोमरक्षण से ही प्रभु की भी प्राप्ति होती है ।
विषय
जीव को परमेश्वर की ओर जाने का उपदेश।
भावार्थ
हे (सोम) रसस्वरूप ! (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! (नू) शीघ्र ही तू (विश्वतः) सब ओर से (महान्) बड़े भारी (सहस्रिणं) हज़ारों के स्वामी (रयिम्) सुखप्रद, दानशील, ऐश्वर्यवान् को (नः आ पवस्व) ऐश्वर्यवत् हमें प्राप्त करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
बृहन्मतिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २ गायत्री। ३-६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, lord of universal glory, blissful omnipresence, bring us great wealth, honour and excellence of the world from all around, let it flow to us in a thousand streams.
मराठी (1)
भावार्थ
सत्कर्मी पुरुषही जोपर्यंत परमेश्वराला आपल्या ऐश्वर्याच्या वृद्धीची प्रार्थना करत नाहीत तोपर्यंत त्यांचा अभ्युदय होत नाही. जरी अभ्युदय पूर्वकृत शुभकर्माचे फळ आहे तरीही जोपर्यंत माणूस अभ्युदयाची इच्छा ठेवत नाही तोपर्यंत त्याचा अभ्युदय होत नाही. त्यासाठी अभ्युदय व्हावा म्हणून परमेश्वराची प्रार्थना केली पाहिजे. ॥३॥
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